बिरादरी पहले अपराध बाद में !

रवि अरोड़ा
अजब स्थिति है । जो कदापि नहीं होना चाहिए वही हो रहा है । कुछ नादान लोग विकास दुबे के एनकाउंटर में मारे जाने को जातिगत राजनीति से जोड़कर देख रहे हैं और इसे बक़ायदा ब्राह्मण उत्पीड़न ही क़रार दे रहे हैं । सोशल मीडिया पर सुबह शाम एसी पोस्ट डाली जा रही हैं जिसमें दावा किया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण अब सुरक्षित नहीं हैं और चुन चुन कर उनकी हत्याएँ की जा रही हैं । यह कुत्सित प्रयास केवल कुछ नासमझ लोगों द्वारा ही नहीं किया जा रहा अपितु विपक्ष की राजनीति के धुरंधर भी इसे हवा दे रहे हैं । प्रदेश में मंदी पड़ती जा रही ठाकुर बनाम ब्राह्मण की राजनीति को भी इसी बहाने ज़िंदा करने के प्रयास हो रहे हैं । कोई नहीं कह रहा कि पूर्व राज्यमंत्री संतोष शुक्ला और सीओ देवेंदे मिश्रा समेत वे एक दर्जन लोग भी ब्राह्मण थे जिनकी हत्याएँ विकास दुबे ने की थी । कोई उस ब्राह्मण विनय तिवारी की निंदा नहीं कर रहा जिसकी मुख़बरी से आठ पुलिस कर्मी शहीद हुए । उन्हें तो बस विकास दुबे का एनकाउंटर दिख रहा है और इसी के कारण प्रदेश में ब्राह्मणों का उत्पीड़न नज़र आ रहा है । शुक्र है कि अभी एसे नादानों की संख्या अधिक नहीं है और विवेकशील लोगों की तादाद उनसे कई गुना अधिक है मगर सपा, बसपा और कांग्रेस की ओर से जिस तरह की बयानबाज़ी की जा रही है वह कब फ़िज़ाँ बिगाड़ दे , कहा नहीं जा सकता ।
प्रदेश में ठाकुर बनाम ब्राह्मण की राजनीति बहुत पुरानी है और इसका केन्द्र मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि गोरखपुर ही हमेशा से रहा है । सातवें दशक में छात्र संघ की एक मामूली सी लड़ाई ने ही इस सदियों से दबी चिंगारी को हवा दी थी। छात्र नेता हरीशंकर तिवारी और रवींद्र सिंह की दुश्मनी देखते ही देखते बाहुबलियों की आपसी गैंगवार में तब्दील हो गई । मामले में नया मोड़ तब आया जब रविंद्र सिंह की हत्या हो गई और उनके शागिर्द ठाकुर विरेंद्र शाही ने विरोधी गुट की कमान सम्भाली । इस गैंगवार ने ही प्रदेश में दशकों तक वैमनस्य के बीज बोए रखे और इन दो प्रभावी जातियों में आपसी फूट डालने का काम किया । हरिशंकर तिवारी 1985 से 2007 तक गोरखपुर से विधायक रहे और उसी दौरान क्षेत्र ही नहीं पूरे प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों का प्रभाव बना रहा । सात फ़ीसदी आबादी के बावजूद प्रदेश में आठ बार ब्राह्मण मुख्यमंत्री बना । मगर गोरखनाथ मठ का प्रभाव बढ़ने से तिवारी गुट कमज़ोर हो गया । 1998 से 2017 तक लगातार योगी आदित्यनाथ के सांसद बनने से रही सही कसर भी पूरी हो गई । ठाकुर बिरादरी से आने वाले योगी जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद हरिशंकर तिवारी के आवास पर छापेमारी हुई तो इसे भी इसी राजनीति से जोड़ कर देखा गया । छात्रा से बलात्कार के आरोपी ठाकुर बिरादरी व अपनी पार्टी के पूर्व केंद्रीय मंत्री चिम्यानंद और कुलदीप सेंगर के प्रति भी प्रदेश सरकार के कोमल रूख को भी जाति का प्रभाव माना गया । कहते हैं कि हाल ही में भाजपा सांसद शरद त्रिपाठी व पार्टी के विधायक ठाकुर राकेश सिंह बघेल के बीच जूते चलना इसी बिरादाना द्वेष का परिणाम था ।
इस एनकाउंटर के बाद ब्राह्मण गर्व और ब्राह्मण शोषण को धुरी बना कर राजनीति करने वाले अब दावा कर रहे हैं कि प्रदेश में सात फ़ीसदी आबादी के बावजूद योगी मंत्रालय में 16 फ़ीसदी मंत्री ठाकुर हैं । यही नहीं सरकार की सभी प्रमुख कुर्सियों पर भी इसी बिरादरी के लोग हैं । अधिकांश थानों में भी इसी बिरादरी के थाना प्रभारी हैं और इसी के चलते प्रदेश में पिछले 13 दिनो में 37 ब्राह्मणों की हत्याएँ हुई हैं । अब राजनीति तो राजनीति है । इसे भी कहाँ तक कोसें , इनकी तो खुराक ही जातिगत और साम्प्रदायिक वैमनस्य है । पिछले सत्तर सालों से तो यही तो हो रहा है मगर अब ये क्या हुआ है जो विकास दुबे जैसे ख़ूँख़ार अपराधी की भी जाति देखी जा रही है ? विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम के जिन वंशजों ने हज़ारों वर्षों तक समाज का नेतृत्व किया है उन्ही में अब एसे लोग भी निकलें जो बिरादरी पहले और अपराध बाद में देखें तो उनसे सुबह शाम सोशल मीडिया पर बाबस्ता होना वाक़ई बेहद दुखद होता है ।

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