ताश बनाम जिंदगी
सीख रहा हूं मैं भी अबताश खेलनाजिंदगी जैसा ही तो है यह खेलअगले पल क्या होगाकुछ पता नहींबेशक चलाकियां अक्सर काम आती हैंमगरदांव उल्टा भी पड़ जाता हैकभी कभी सयानपंती सेधीरे धीरे जान गया हूं मैं भीसारा खेल पत्तों के…
Golden Words Always
सीख रहा हूं मैं भी अबताश खेलनाजिंदगी जैसा ही तो है यह खेलअगले पल क्या होगाकुछ पता नहींबेशक चलाकियां अक्सर काम आती हैंमगरदांव उल्टा भी पड़ जाता हैकभी कभी सयानपंती सेधीरे धीरे जान गया हूं मैं भीसारा खेल पत्तों के…
अच्छे लगते हैंरेस्टोरेंट या पार्क मेंटाइम फोड़तेलड़के और लड़कियांअच्छी लगती हैउनकी बेपरवाहीमन करता हैउन्हें करूं सचेतबताऊं उन्हेंअगले मोड़ पर खड़ा हैटाइमउन्हें फोड़ने कोफिर याद आते हैंअपने जीवन के वे सभी खलनायकजिन्होंने टोका था मुझे कभीफिर ठिठक जाता हूं मैंऔर मुस्कुरा…
गंगा से निकलीं तीन नहरेंदो सूखी और एक बहती ही नहींजो बहती ही नहींउसमें नहाने गए तीन पंडितदो डूब गए और मिला ही नहींजो मिला ही नहींउसे मिलीं तीन गायेंदो बाँझ और एक ब्याही ही नहींजो ब्याही ही नहींउसने दिए…
सुनो भई गप सुनो भई शपके नदिया नाँव में डूबी जायसुनो भई गप सुनो भई शपके नदिया नाँव में डूबी जायसुनो भई गपसुनो भई शपलौंग और इलायची नहाने चलेऔर इलायची ने मारी डुबकीलौंग ज़ोर से रोने लगाहाय हाय इलायची डूबीसुनो…
जीवन में उत्साह ढूँढते हैं बूढ़ेउत्साहजो कहीं छूट गया हैपिछले किसी स्टेशन परअबसमय भी तो नहीं कटता बूढ़ों कातभी तोपास से गुज़री हर ख़बर में ढूँढते हैं बूढ़ेउत्साह का कोई झोंकाख़बरें जो दूर से ही गुज़र जाती हैंऔर नहीं पहुँचतीं…
सेवा भारती के राष्ट्रीय संघटन मंत्री व संघ के वरिष्ठ प्रचारकों में से एक बड़े भाई श्री राकेश जैन जी ने दुल्ला भट्टी वाले के बाबत कुछ और जानकारी भेजी है । कहा गया है कि यह इतिहास में दर्ज…
तू हीतू ही तू ही तू हीमेरे जिस्म के बाहर मेरा जिस्ममेरी रूह के बाहर मेरी रूहमेरे कुल वजूद के बाहर मेरा वजूदतू हीतू ही तू ही तू हीमुझ सी अक्खड़ मुझ सी अड़ियलमुझ सी कोमल मुझ सी सख़्तमुझ सी…
मित्र , आओ खड़ताले बजायें एक दूसरे की शान में चिमटे, छैने , झाँझ-मंजीरे सब बजायें परस्पर क़सीदे पढ़ें और एक दूसरे की जय जयकार करें मैं तुम्हारी हर बात पर वाह वाह कहूँ तुम बात बेबात पर मेरी बलायें…
मेरी चीज़ें अक्सर हो जाती हैं गुम ना जाने कौन चुरा ले जाता है उन्हें हासिल करने तक वे रहती हैं हरदम मेरे साथ मगर मेरी होते ही वो हो जाती हैं गुम बचपन से लेकर आजतक यही खेल होता…
शर्मीली हैं मेरी यादेंनंग-धड़ंग आने से डरती हैंमुझ तकअदाएँ भी कुछ कम नहींख़ुद से पहले भेजती हैंफ़ुटनोट का हरकाराखट्टा , मीठा , कड़वाऔर दूसरे सभी स्वादों का फ़ुटनोटहर याद पर चिपकी हैदुख या सुख की पर्चीक्या करूँइन पर्चियों के पीछेकहीं…