तुम हैरान हो ना ?

तुम हैरान हो ना ?
इतने पुराने जोक पर भी मै क्यों खिलखिलाया ?
तुम्हारा सवाल जायज है
सौ बार सुनी बात पर कोई कैसे हंस सकता है ।
नहीं नहीं पगलाया नहीं हूं मै
कतई नहीं
मगर तुम्हें कैसे समझाऊं
शरीर को मिलने वाली धमकियाँ
जब विस्तार लेने लगती हैं
तब शरीर स्वयं जीवन को धमकाने पर उतर आता है
हुई दुर्घटनाएं एक साथ आकर
जब रात मे सताती हैं
तब गुजरे हुए हंसी के पल ही तो मुझे बचाने आते हैं
आज की हंसी भी बचाएगी  पंचभूत के अहंकार से मुझे किसी दिन
सचमुच बौना ही तो है मेरा अहंकार उसके समक्ष
न जाने क्यों पंचभूत को नागवार गुजरता है मेरा अहंकार
तभी तो वह खील-खील कर देता है इसे
नित नए रूप मे आकर
न जाने क्यों मेरे विचार भी लगते हैं उसे बेमानी
शरीर से इतर तांक झांक करना उसे लगता है अपराध सरीका
इसी ङर से तो हंसता हूं मै
बार बार
तुम फिर सुनाओ
मुझे कोई चुटकुला
बेशक पुराना ही सही
मै हसूंगा इस बार भी खुलकर
हर बार की तरह।

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