पैरोल, बेशर्मी और मौज

रवि अरोड़ानेता लोगों को अक्सर यह कहते सुना जाता है कि राजनीति में व्यक्ति की चमड़ी मोटी होनी चाहिए । हो सकता है कि यह बात सही भी हो मगर क्या कोई चमड़ी इतनी भी मोटी हो सकती है कि…

जो कृष्ण नहीं वह कौरव है

रवि अरोड़ाकम से कम मुझे तो अब पक्का यकीन हो चला है कि महाभारत वेदव्यास की कोरी कल्पना थी और इस तरह का कुछ भी भारत में कभी घटित नहीं हुआ होगा । यदि कोई अपनी तर्क शक्ति से इसकी…

पुष्प वर्षा के असली हकदार

रवि अरोड़ाचारों ओर बाढ़ जैसे हालात हैं और हर बार की तरह इस बार भी सिख कौम सेवा में जुटी हुई है। हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, दिल्ली और उत्तर प्रदेश से ऐसे सैंकड़ों समाचार मिल रहे हैं जहां परेशान हाल लोगों…

शुक्रिया सीमा हैदर

रवि अरोड़ाप्रिय सीमा हैदर भाभी,खुश रहो। कृपया भाभी शब्द को अन्यथा मत लेना । तुम गरीब की जोरू हो इस नाते हमारा हक है कि तुम्हें भाभी कहें । खैर, इस पत्र का मकसद यह है कि मैं तुम्हारा दिल…

बहुत कठिन है डगर ज्योति मोर्यों की

रवि अरोड़ाकायदे से तो इस महिला का नाम ही सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए था मगर अब ज्योति मोर्या केवल नाम भर भी कहां रह गया है । ' बेटी पढ़ाओ-पत्नी नहीं ' का नारा बुलंद करने वाली पुरूष सत्तात्मक…

बराबरी का हक या यूसीसी

रवि अरोड़ायूनिफॉर्म सिविल कोड यानी यूसीसी में क्या होगा अथवा क्या नहीं यह तो अभी किसी को नहीं मालूम मगर यह सबको पता है कि देश की 17 करोड़ मुस्लिम आबादी की चूड़ियां कसने के इरादे से यह कानून बनाया…

यह आचरण क्या कहलाता है !

रवि अरोड़ारविवार के तमाम अखबारों में तीन ऐसी प्रमुख खबरें थीं जो एक साथ पढ़े जाने की मांग करती हैं । पहली यह कि महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में हुए एक भीषण सड़क हादसे में पच्चीस लोग जिंदा जल गए…

धर्म की गठरी में लागा चोर

रवि अरोड़ामेरे एक मित्र अब नमस्कार की जगह जय गुरू जी कहने लगे हैं। अभिवादन के लिए इससे पहले वे राम राम कहा करते थे । पता चला कि उनकी धार्मिक आस्थाएं अब छतरपुर वाले गुरू जी से जा जुड़ी…

पट्ठों और पेठों की दुनिया

रवि अरोड़ाहाल ही में जब धनौल्टी गया तो निकट के पहाड़ी गांव चलचला में काश्तकार यशपाल सिंह के यहां ठहरा। उसके खेत में पेठानुमा एक बड़ा सा फल उगा देखा । पूछने पर पता चला की कुम्हड़ा है। मेरे अनुरोध…

अलग अलग चश्मे

रवि अरोड़ामुझे अब पक्का विश्वास हो चला है कि सरकार चाहे तो कुछ भी कर सकती है। भूमि अपनी हो अथवा विदेश की, इच्छा शक्ति हो तो सरकार के लिए कोई भी लक्ष्य बड़ा नहीं है। याद कीजिए चार दिन…