मेरे हिस्से का देश
रवि अरोड़ा
घर के बाहर नगर निगम की क़ूड़ा उठाने वाली गाड़ी आई थी । गाड़ी के आगे आगे एक नवयुवक कर्मचारी चल रहा था जो अपने हाथ में थामे लकड़ी के फट्टेनुमा दो टुकड़ों से ढूँढ ढूँढ कर क़ूड़ा उठाकर गाड़ी में डाल रहा था । युवक की नज़रों से कोई तिनका भी शायद नहीं बच पा रहा था और वह गली में खड़ी कारों के नीचे से भी झुककर क़ूड़ा निकाल रहा था । मैंने ग़ौर से देखा , उसके साथ निगम का सुपरवाइज़र नुमा जैसा कोई आदमी भी नहीं था , जिसे प्रभावित करने को वह युवक इतनी फुर्ती से काम कर रहा हो। जहाँ तक मैं अपने नगर निगम को जानता हूँ , बाद में भी शायद कोई अधिकारी यह जाँचने मेरी गली में नहीं आएगा कि कितना क़ूड़ा उठा और कितना रह गया । मैं हैरान था कि फिर भी यह युवक इतनी लगन और मेहनत से अपना काम क्यों कर रहा है ? युवक के हाव-भाव, कपड़े लत्ते और तौर तरीक़े बता रहे थे कि वह शायद कुछ ख़ास पढ़ा-लिखा नहीं रहा होगा । ज़ाहिर है कि दीन-दुनिया के बाबत उसकी समझ भी कोई ख़ास न होगी । मिसाल के तौर पर यदि मैंने उसे रोक कर पुलवामा के हमले और हमारी सेना के पाकिस्तान में घुसकर किए गए एयर स्ट्राइक के बाबत पूछा होता तो शर्तिया वह किसी सवाल का जवाब नहीं दे पाता । ज़ाहिर है उसने हमारे जवानों की शहादत पर कोई मोमबत्ती किसी चौक पर नहीं जलाई होगी । पाकिस्तान को मुँहतोड़ जवाब देने के लिए निकाले गए किसी जुलूस में भी वह शामिल नहीं हुआ होगा । यक़ीन से कह सकता हूँ कि अपनी देशभक्ति साबित करने को उसने किसी अख़बार में कोई विज्ञप्ति भी नहीं छपवाई होगी और टीवी पर किसी डिबेट में भी वह ज़ोर ज़ोर से नहीं चिल्लाया होगा । यह भी तय है कि मेरी और आपकी तरह देशभक्ति के मुद्दे पर वह सुबह शाम गला भी साफ़ नहीं कर रहा होगा मगर आप बुरा न माने तो उसकी देशभक्ति के आगे मुझे अपना और आपका देश प्रेम बौना ही लगा ।
मैं दिन भर लोगों के बीच रहता हूँ । कई सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक आयोजनों में भी जाना होता है । पिछले सवा महीने से जिसे देखो वही अपना काम धाम छोड़ कर अपनी देशभक्ति साबित करने में लगा है । बाबू फ़ाइलों पर कुंडली मारे बैठे हैं और अफ़सर मीटिंगों के बहाने एक दूसरे की देशभक्ति की माप तौल कर रहे हैं । मोहल्ले के मोहल्ले देशभक्ति साबित करो अभियान में मशगूल हैं । बात यहीं पर थम जाए तो सब्र कर लें मगर लोगबाग तो दूसरे की देशभक्ति को ही चुनौती देने में तल्लीन दिख रहे हैं । हालात यह हो चले हैं कि हर कोई दावा कर रहा है मेरी देशभक्ति तेरी देशभक्ति से ज़्यादा सफ़ेद है । सफ़ेदी की चमकार , बार बार लगातार । जो ज़रा सा भी देशभक्ति की हमारी परिभाषा पर फ़िट नहीं हुआ वही ग़द्दार और उसे पाकिस्तान भेजने का फ़रमान जारी हो रहा है ।सोशल मीडिया पर यह अभियान कुछ ज़्यादा ही तेज़ है ।
चुनाव सिर पर हैं और देशभक्ति भी इस बार एक चुनावी मुद्दा है । सच कहूँ तो शायद यही सबसे बड़ा मुद्दा है । एसा मुद्दा जिसके तले दबकर अन्य सभी मुद्दे गौण हो चले हैं । अब जो अन्य मुद्दों की बात करता है , उसकी देशभक्ति शंकाओं में घिर जाती है । वैसे डर तो लगता है मगर फिर भी पूछ रहा हूँ कि आख़िर ये देशभक्ति होती क्या है ? कैसे की जाती है ये ? तिनका भी तोड़े बिना कैसे कोई देशभक्त हो जाता है और दिन रात मशक़्क़त करने वाले को हम देशप्रेमी तो दूर देश का हिस्सा ही नहीं मानते ? और ऊपर से तुर्रा ये कि बया चिड़िया की तरह हम आसमान की तरफ़ पैर करके बैठे हैं कि आकाश गिरेगा और गोया हम उसे अपने पैरों से रोक लेंगे । सेना सरकार और पूरी व्यवस्था के ज़िम्मे कोई काम हम छोड़ ही नहीं रहे । अकेले ही दुश्मन के घर घुसने पर आमादा हैं । अमाँ छोड़िये ये लफ़्फ़ाज़ी और अपने काम को ईमानदारी से करिये । देश के प्रति वफ़ादार हुए बिना जनाब देशप्रेम किस काम का ? ये देशभक्ति जिसका राग सुबह शाम आप सुन जा रहे हैं न , चुनाव बाद खोजने से भी नहीं मिलेगा । कुछ काम धाम करिये । पूरा देश सम्भालने का वहम छोड़िये और उस सफ़ाई कर्मचारी की तरह अपने हिस्से के देश पर ध्यान दीजिये ।