पाप
अब सुधर गया हूँ मैं
अब नहीं होता
मेरे हाथों कोई पाप
बचपन में रौशनदान की सफ़ाई करते
मेरे हाथों फूट जाते थे
अक्सर चिड़िया के अंडे
शुक्र है
अब नहीं होते
घरों में रौशनदान
ग़र्मियों में
स्कूल से आते ही
चला देता था पंखा
टकरा कर अक्सर मर जाती थी गौरैया
शुक्र है
अब गौरैया ही नहीं है
परछत्ती पर पल रहे बिल्ली के बच्चे
छूट जाते थे अक्सर मेरे हाथों से
और रोते थे
अपनी ही भाषा में
शुक्र है
इन फ़्लैटों में अब परछत्तियां ही नहीं हैं
आँगन धोते समय
पानी में डूब जाती थीं
चींटियों की बांबियाँ
शुक्र है
मेरे घर में अब कोई आँगन ही नहीं
मकोड़ों पर पड़ जाता था
अक्सर मेरा पाँव
मगर
फिनायल के ज़माने में
अब मकोड़े कहाँ
उड़ कर घर में घुस आते थे टिड्डे
मारे जाते थे मेरे ही हाथों
घर से भगाते समय
अब दूर दूर तक खेत ही नहीं
तो टिड्डों की क्या मजाल
कभी छत पर रहता था
जंगली कबूतरों का जोड़ा
पालतू बनाने के जतन में
क़तर देता था मैं उनके पंख
अब पिताजी साथ नहीं रहते
जिन्हें था कबूतरों से प्रेम
तालाब में अक्सर जाते थे
हम बच्चे मछलियाँ पकड़ने
पका कर खा जाते थे
मेरे कुछ दोस्त उन्हें
भला हो उनका
जिन्होंने तालाब पाट दिए
और उगा दीं मल्टी स्टोरीज़
बचा लिया मुझे
कुछ और पाप करने से
सचमुच सुधर गया हूँ मैं
अब नहीं होता मेरे हाथों
कोई पाप