वे कहते हैं

रवि अरोड़ा

मैं बेहद डरपोक हूँ । बात बात पर डर जाता हूँ । मेरे डरपोक होने की अब इससे बड़ी मिसाल क्या होगी कि कठुआ में आठ साल की बच्ची के साथ हुई दरिंदगी पर मैं चुप हूँ । उन्नाव में विधायक और उसके गुर्गों द्वारा किए गए सामूहिक दुष्कर्म पर भी मैं कुछ नहीं बोल रहा । अख़बार में रोज़ छप रहे बच्चियों से हैवानियत पर भी मेरा मुँह सिला हुआ है । अब मैं क्या करूँ , मेरे बोलने से पहले ही वे मुझे धमका देते हैं । चिल्ला चिल्ला कर पूछते हैं कि मैं तब कहाँ था जब पिछली सरकार में यह सब होता था । तब कहाँ गुम था जब कश्मीर में हिंदू महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहा था । ढूँढ ढूँढ कर हिंदुओं के साथ हुए हज़ार साल पहले तक के मामलों से भी वे मेरी ग़ैरत को ललकारते हैं । उन्नाव की पीड़िता को तो वे बदचलन साबित कर ही रहे हैं कठुआ में आठ साल की बच्ची के साथ हुई हैवानियत को भी वे कांग्रेस और कम्यूनिस्टों की चाल बता रहे हैं । बच्चियों से दरिंदगी तो उन्हें विपक्ष का खेल लगता ही है । बक़ौल उनके यह सब मोदी जी को गद्दी से उतारने का षड्यंत्र है और जो एसे मामलों में बोला वह हिंदू विरोधी है।

सच कहूँ तो महिलाओं और बच्चियों के साथ आए दिन हो रही दरिंदगी के मैं बेहद डरा हुआ हूँ । कोई बाल बच्चेदार आदमी डरने के अलावा और कर भी क्या सकता है । मगर वे मेरे डरने पर मुझे कोसते हैं । उन्हें लगता है कि डरने के लिए इस्लामिक आतंकवाद के क़िस्से ही काफ़ी हैं । इसके लिए वे बाबर और ओरंगजेब जैसों की कहानियाँ मुझे सुनाते हैं । वे रोज़ मुझे मैसेज भेजते हैं कि 2050 तक देश में हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएँगे । वे डराते हैं कि मोदी गद्दी से हटे तो भारत दूसरा पाकिस्तान बन जाएगा । मेरी हर बात पर वे बस एक ही बात पूछते हैं कि तुम तब कहाँ थे ? तुम तब क्यों नहीं बोले ? हालाँकि मैं उनके द्वारा याद दिलाई गई तमाम बातों पर भी बोला था मगर यह उन्हें याद नहीं । वे सुबह शाम निर्देश देते हैं कि वह बोलो और यह मत बोलो । वे गालियाँ देने में सिधस्त हैं और मैं इस विद्या में अनाड़ी हूँ । सो डर जाता हूँ । उनकी माँग है कि मैं स्वीकार करूँ कि नेहरू अय्याश थे और सोनिया गांधी इटली की किसी बार में काम करती थीं । वे मेरे मुँह से राहुल गांधी के लिए पप्पू और मंदबुद्धि जैसे विश्लेषण सुनना चाहते हैं । वो चाहते हैं कि मैं हामी भरूँ कि आज़ादी के बाद के साठ सालों में हमने बस घास खोदी और देश अब चलना शुरू हुआ है । देश की बर्बादी के लिए गांधी-नेहरू को ज़िम्मेदार ठहराने की माँग वे हड़का कर मुझसे करते हैं । उनकी हिदायत है कि मैं स्वीकार करूँ कि कम्युनिस्ट सबसे बड़े ग़द्दार हैं । उन्हें मेरी उठ बैठ पसंद नहीं । वे चाहते हैं कि मैं अपने लोगों में ही रहा करूँ । खाने के बाबत उनकी हिदायतें मुझे घेर लेती हैं ।

हालाँकि उनसे डर के बावजूद मैं कभी कभी कुछ बोल देता हूँ और बस यही मेरी नींद हराम कर देता है । मैं जब कभी भी काम-धंधों की बात करता हूँ तो वे मुस्लिमों के अत्याचार गिनाने लगते हैं । मैं खेत-किसान की बात करूँ तो वे तीन तलाक़ का राग छेड़ देते हैं । मेरे मुँह से आपसी मेलजोल और भाईचारे की बात निकले तो वे लव जेहाद की कहानियाँ गढ़ने लगते हैं । मैं धर्म के नाम पर हुई किसी की हत्या के बाबत पूछूँ तो वे गाय के बारे में बताने लगते हैं । वैसे निजी तौर पर मुझे लगता है कि इंसान होना ही काफ़ी है मगर उन्होंने मुझे कहा कि नहीं तुम हिंदू हो । उन्होंने मुझे डाँटा कि तुम कैसे हिंदू हो जिसे अपने हिंदू होने पर गर्व नहीं ? उन्होंने मुझे मेरी जाति बताते हुए मेरे पूर्वजों की विरासत का वास्ता देकर भी ललकारा ।दरअसल मेरी हर बात उन्हें नापसंद है मगर वे चाहते हैं कि मैं उनकी हर बात पर वाह वाह करूँ । मेरे इर्द-गिर्द वे शुरू से थे मगर इतने वाचाल नहीं थे । हालाँकि उनकी तल्ख़ी कभी कभी सामने आती थी मगर अब तो वे संगठित होकर मुझे घेरते हैं । असमंजस में रहता हूँ कि बात करूँ भी या और लोगों की तरह चुप हो जाऊँ । हूँ तो आदमी ही , डर तो लगता ही है । आप ही बताइए मेरा डर ग़ैरवाजिब है क्या ?

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