मानेंगे नहीं बिगाड़खाते वाले

रवि अरोड़ा
पिछले हफ़्ते मित्र मंडली तिरुपति बाला जी मंदिर जा रही थी । जिज्ञासु मना मैं भी साथ हो लिया । बेहद रमणीय स्थल है तिरुपति शहर । तिरुमाला पहाड़ी की चोटी पर बना विष्णु भगवान के अवतार वेंकटेश्वर स्वामी का मंदिर तो शिल्प व वास्तुकला का अनूठा नमूना है । आन्ध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थापित डेड हज़ार पुराना यह मंदिर मज़बूत भी इतना है कि अभी कम से कम इतने ही साल तो और खड़ा ही रहेगा । भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक इस मंदिर में प्रतिदिन लगभग एक लाख लोग भगवान के दर्शन को आते हैं मगर कोरोना महामारी के चलते यह संख्या आजकल मात्र बीस हज़ार तक ही सिमट गई है । अब चूँकि धर्म कर्म में मेरा हाथ ज़रा हल्का है अतः पूजा-पाठ और कर्मकांड की बजाय इधर-उधर निगाहें ज़्यादा दौड़ाता रहा । टैक्सी ड्राइवर्स, दुकानदारों व स्थानीय लोगों से गप शप भी ख़ूब की । नतीजा कई चौंकाने वाली जानकरियाँ वहाँ मिलीं । उम्मीद है कि इन्हें पढ़ कर हैरान तो आप भी ज़रूर होंगे ।

पता चला कि इस शहर की कुल आठ लाख की आबादी में लगभग एक लाख मुस्लिम हैं और सारे के सारे भगवान वेंकटेश्वर के भक्त हैं । चूँकि पूरे शहर के एक एक व्यक्ति का रोज़गार स्थानीय मंदिरों से चलता है अतः धर्म यहाँ कोई बाधा ही नहीं है । शनिवार को भगवान वेंकटेश्वर का दिन माना जाता है अतः उस दिन शहर की एक भी माँस-मछली की दुकान नहीं खुलती । मेरे मन का सहज भाव था कि दुकानें खुलने देने अथवा न खुलने देने का निर्णय तो स्थानीय प्रशासन लेता है अतः इसका श्रेय स्थानीय मुस्लिम आबादी को देना कुछ अधिक ही धर्मनिरपेक्षता होगी मगर जब पता चला कि शनिवार को किसी मुस्लिम परिवार में माँस-मछली नहीं पकती तो जान कर बड़ी हैरानी हुई । टैक्सी ड्राइवर रफ़ीक अहमद ने बताया कि जुम्मे की नमाज़ के बाद वह भगवान के दर्शन करने मंदिर ज़रूर जाता है और उसके बड़े भाई यामीन तो वेंकटेश्वर भगवान के इतने बड़े भक्त हैं कि भगवान के दिन यानि शनिवार को जूता-चप्पल भी नहीं पहनते और उस दिन नंगे पाँव ही रहते हैं । रफ़ीक और यामीन कोई इकलौते उदाहरण नहीं हैं बल्कि इस शहर अधिकांश मुस्लिम आबादी भी उनके जैसी है । पाई वाइसरॉय होटल के सहायक प्रबंधक गिरधर ने बताया कि इस शहर में कभी साम्प्रदायिक दंगा तो दूर मामूली हिंदू-मुस्लिम झगड़ा भी नहीं हुआ । टैक्सी वाला रमेश बताता है कि वेंकटेश्वर भगवान की सहचारिकाओं में से एक महिला नानचारम्मा मुस्लिम थी और भगवान के सीने पर लक्ष्मी जी के अतिरिक्त जो दूसरी महिला का वास है मुस्लिम उसे नानचारम्मा ही मानते हैं । एक अन्य मुस्लिम भक्त महमूद ने बताया कि तेलगू साल के पहले दिन यानि उगाड़ी पर अधिकांश मुस्लिमों द्वारा भगवान के दर्शन करने की परम्परा है और उस दिन मंदिर में हर चौथा भक्त मुस्लिम होता है और बुर्क़ाधारी महिलाओं से मंदिर परिसर पट जाता है ।

अब जहाँ सब कुछ अच्छा अच्छा हो वहाँ ऐसे कैसे हो सकता है कि बिगाड़खाते वाले न पहुँचें । बजरंग दल की स्थानीय कमेटी ने आजकल एक माँग ज़ोर शोर से मंदिर ट्रस्ट और स्थानीय प्रशासन से करनी शुरू कर दी है कि ग़ैर हिंदुओं से मंदिर में प्रवेश से पहले फ़ेथ फ़ार्म भरवाया जाये जिसमें वे लिख कर दें कि वे ग़ैर हिंदू हैं मगर भगवान वेंकटेश्वर में आस्था रखते है अतः उन्हें मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी जाये । हालाँकि मंदिर में इस फ़ेथ फ़ार्म का प्रावधान पुराना है मगर लाखों ग़ैर हिंदू भक्तों के कारण इसका अनुपालन न तो कराया जा सकता है और न ही होता है मगर अब बिगाड़ खाते वाले है कि यह बात मानने को तैयार ही नहीं । अब पता नहीं इन बिगाड़ खाते वालों के सामने तिरुपति का साम्प्रदायिक सौहार्द कब तक टिकता है ? पुराना अनुभव तो यही कहता है कि वहाँ भी बँटाधार किए बिना मानेंगे नहीं ये बिगाड़खाते वाले ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED POST

जो न हो सो कम

रवि अरोड़ाराजनीति में प्रहसन का दौर है। अपने मुल्क में ही नहीं पड़ोसी मुल्क में भी यही आलम है ।…

निठारी कांड का शर्मनाक अंत

रवि अरोड़ा29 दिसंबर 2006 की सुबह ग्यारह बजे मैं हिंदुस्तान अखबार के कार्यालय में अपने संवाददाताओं की नियमित बैठक ले…

भूखे पेट ही होगा भजन

रवि अरोड़ालीजिए अब आपकी झोली में एक और तीर्थ स्थान आ गया है। पिथौरागढ़ के जोलिंग कोंग में मोदी जी…

गंगा में तैरते हुए सवाल

रवि अरोड़ासुबह का वक्त था और मैं परिजनों समेत प्रयाग राज संगम पर एक बोट में सवार था । आसपास…