बंद मुट्ठी की रेत

रवि अरोड़ा
ये अदब की दुनिया वाले लोग भी पता नहीं इतनी लम्बी लम्बी क्यों हाँकते हैं । ख़ासकर कवि और शायर तो कुछ ज़्यादा ही गपौड़ी नज़र आते हैं । अब ये लोग तो लिख-पढ़ कर मर खप जाते हैं मगर हम इनके झूठ को सदियों तक ढोते रहते हैं । अब मरहूम अलामा इक़बाल के इस गीतनुमा ग़ज़ल को ही लीजिए- सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा…। अब इसी तराने में वे ऐसी गप भी मार गए कि उसे लिखे जाने के दिन से ही हम उसे सच माने बैठे हैं । यही नहीं पाँच दशक से दूरदर्शन तो इसे सुबह शाम दोहराकर हमें गुमराह ही किये दे रहा है । शायद इसी गफ़लत मे हम इस गीत को क़ौमी तराने का दर्जा भी दे बैठे। इलबाल अपने इस गीत में कहते हैं- मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना …। झूठ सरासर झूठ, कोरी हवाबाज़ी और बहुत लम्बी छोड़ी गई गप है ये । ज़मीनी हक़ीक़त तो यह है इस पूरी कायनात में केवल मज़हब ही ऐसी शय है जो आपस में बैर रखना सिखाती है । पूरा इंसानी इतिहास उठा कर देख लीजिये । बैर की जड़ें कहीं न कहीं किसी न किसी मज़हब से ही जुड़ी मिलेंगी । हज़ारों-लाखों उदाहरण हैं इसके । एक से बढ़ कर एक दुःखदाई कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं हमारे इर्दगिर्द । ताज़ी कहानी की पटकथा लिखी गई मेरे शहर ग़ाज़ियाबाद के ही इलाक़े डासना में जहाँ एक मुस्लिम बालक को हिंदू धर्म के एक कथित झंडाबरदार युवक ने इस वजह से बेरहमी से पीटा कि वह प्यास लगने पर पानी की आस में मंदिर परिसर में चला आया था । यह वहशियाना हरकत किसी तात्कालिक उन्माद में इस झंडाबरदार ने नहीं की अपितु सोच समझ कर की और इसका अपने साथी से न केवल वीडियो बनवाया बल्कि उसे सोशल मीडिया पर वायरल भी कर दिया । उसके मन में धार्मिक ज़हर इस क़दर है कि पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर भी वह कह रहा है कि यह बालक मंदिर में दोबारा आया तो वह फिर ऐसा करेगा ।
धर्म कोई भी हो , गधे हर जगह भरे पड़े हैं । अब यह बात और है कि धार्मिक उन्माद में हमें अपने गधे नज़र ही नहीं आते । अब मैं अपने हिंदू धर्म को ही लूँ । हज़ारों सालों तक हमने अपने मंदिरों में दलितों को आने नहीं दिया । अब जब दलित वर्ग के लोग ईसाई, मुस्लिम अथवा बौद्ध बनने लगे तो हमने उन्हें कुछ रियायतें दीं । कई मंदिर सैकड़ों सालों से महिलाओं को लेकर मन मैला किये बैठे हैं और उन्हें अपने भीतर आने नहीं देते । ऐसा धार्मिक आतंक है इन मंदिरों का कि ग़ैर धर्म अथवा छोटी जाति के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भी भीतर नहीं आने दिया जाता । ढकोसलों का ऐसा माहौल बना दिया गया है कि पढ़ी-लिखी और युवा पीढ़ी धीरे धीरे इन मंदिरों से अब दूर होती जा रही है । देश के अधिकांश मंदिरों में होकर आने के बाद मैं अपने अनुभव से यह कह रहा हूँ । दूसरे धर्मों की मूर्खतायें तो हमें बख़ूबी पता हैं मगर क्या हमने कभी सोचा कि आख़िर क्या वजह रही कि अपनी तमाम सिफ़तों के बावजूद हिंदू धर्म केवल इसी क्षेत्र का होकर रह गया ? दुनिया भर में हिंदू केवल वहीं पर ही क्यों मिलते हैं जहाँ उन्हें अंग्रेज़ों ने बसाया अथवा रोज़गार के लिये वे ख़ुद वहाँ गये ? कृपया अब आप यह तर्क न दें कि ईसाई और इस्लाम धर्म तो तलवार के दम पर दुनिया भर में फैला । क्योंकि इस तर्क के बाद आपको इस सवाल का जवाब भी देना पड़ेगा कि फिर बौद्ध धर्म कैसे दुनिया भर में पहुँचा , उसने कौन सी तलवार का सहारा लिया ? हो सकता है कि यह बात आपको बुरी लगे और यदि बुरी लगे तो यक़ीनन बालक की पिटाई करने वाले इस झंडाबरदार की तरह आपने भी अभी हिंदू धर्म को नहीं समझा । हिंदू धर्म की किसी पुस्तक में भेदभाव की ऐसी घटिया सीख नहीं है । इस धर्म की नींव ही सम्पूर्ण प्राणी जगत के सुख की कामना के इर्द गिर्द है । सच कहें तो इस झंडाबरदार जैसे हिंदू धर्म के ख़ैरख़्वाह ही धर्म के असली दुश्मन हैं । ये लोग रेत को जितना कस कर अपनी मुट्ठी में भींचना चाह रहे हैं , उतनी ही यह हाथ से फिसल रही है । अब इन गधों को कौन समझाये कि भैया ज़रा अपनी मुट्ठी ज़रा ढीली छोड़ करके भी देख लो । खुले हाथ में ही रेत रुकती है ।

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