पुण्य की ख़रीदारी

रवि अरोड़ा

उस दिन भी दिवाली थी जब मैंने उस भिखारी को शराब के नशे में झूमते हुए देखा । क़सम से दिल टूट सा गया उसे इस हालत में देख कर । दरअसल उस भिखारी से मेरा एक ख़ास जुड़ाव था । यह बात तब की है जब मैं नवीं क्लास में पढ़ता था और उस गूँगे को बस अड्डे के पास चंद सिक्कों से भरा अपना कटोरा खड़का खड़का कर भीख माँगते देखा करता था । पता नहीं मन इतना क्यों पसीजा की घर से मिलने वाला पूरा जेब यानि ख़र्च तीस पैसे मैंने उसे देने शुरू कर दिए । बात यहीं पर नहीं रुकी और उसके बाद मैंने नियम सा बना लिया कि स्कूल जाते समय पूरा जेब ख़र्च मैं उस भिखारी को दे देता था । स्कूल से उस भिखारी का ठीया कम से कम आधा किलोमीटर दूर था और मेरे पास साईकिल भी नहीं सो उसे पैसे देने पैदल ही जाना पड़ता था । दिन भर का पूरा जेब ख़र्च उस भिखारी को देने के बाद मैं अपना पूरा दिन किस तरह मन मारकर बिताता था , उसके भी कई अफ़साने हैं । ख़ैर दिवाली वाले दिन घर से तीन किलोमीटर दूर चल कर उस गूँगे को पैसे देने गया तो उसे नशे में टुन्न देखा । मैं समझा नहीं सकता तेरह-चौदह साल का मेरा बाल मन उस दिन कितना छलनी हुआ । मुझे महीनो की अपनी तपस्या का एसा मज़ाक़ उड़ता दिखा कि आज भी किसी भिखारी को ख़ुद से याचना करते देखता हूँ तो लगता है कि वही गूँगा वेश बदल कर फिर मेरी संवेदनाओं का मजाक उड़ाने आया है और मैं नाराज़गी से अपना मुँह फेर लेता हूँ ।

भिखारियों के प्रति मेरी इस वितृष्णा को एसी ख़बरों और बढ़ा देती हैं जिसमें दावे किए जाते थे कि देश में इतने भिखारी करोड़पति हैं अथवा इतने भिखारियों की महीने की आमदनी इतने लाख रुपये है । बेशक कुछ बेबस लाचार लोग भी भीख माँगते हैं मगर कामचोर और निठल्ले ही भीख माँगते ज़्यादा दिखते हैं । साल 2011 की जनगणना के अनुसार देश में तीन लाख बहत्तर हज़ार भिखारी हैं । उधर लोकसभा में पेश किये गए आँकड़ों के अनुसार सरकार भी चार लाख तेरह हज़ार भिखारियों की ही बात स्वीकार करती है हालाँकि सब जानते हैं कि असली संख्या इससे कई गुना अधिक होगी । धार्मिक नगरियों और बड़े मंदिर-मस्जिदों अथवा मज़ारों पर जाओ तो एसा लगता है कि देश में सामान्य नागरिकों से भिखारियों की संख्या अधिक है । ख़ास बात यह है कि अधिकांश भिखारी हट्टे कट्टे और भले चंगे होते हैं । सरकारी आँकड़ा ही कहता है कि देश में इक्कीस परसेंट भिखारी बारहवीं पास हैं और हज़ारों की संख्या में ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट हैं । भरत जैन और पंजाजी काले जैसे भिखारियों की संख्या भी बहुत बड़ी है जो करोड़पति हैं और आये दिन अख़बारों में उन पर लेख छपते रहते हैं । भीख मंगवाने के लिए बच्चों के अपहरण की ख़बरें भी आए दिन सुनने को मिलती हैं ।

रामायण, महाभारत और अपने तमाम पुराण उठा कर हम देखें तो भीख माँगने और भीख देने के अनेक क़िस्से हमें नज़र आते हैं । हमारे सभी पीर फ़क़ीर और भक्त कवि भी भीख देने को महान कार्य की तरह पेश करते दिखते हैं । अजब संस्कृति है हमारी जो भीख जैसे निकृष्ट कार्य को भी महिमा मंडित करती है । भक्ति , धर्म और आध्यात्म का तो पता नहीं मगर देश में आसानी से भीख मिलने से भी लाखों लोग साधू-सन्यासी बने घूम रहे हैं । कई बार तो भीख भी किसी बड़े बिज़नस मौड्यूल सा जान पड़ती है । भिखारी हमें परलोक का प्रलोभन बेचता जैव और हम सस्ते दामों पर उसे ख़रीदने को लप लेते हैं । बिना हाथ अथवा पैर वाला भिखारी अपना कटा अंग दिखा कर हमारी संवेदनाओं को ललकारता है और हम अपनी ही नज़र में गिरने से बचने को जेब में झट हाथ डाल बैठते हैं । चौराहों पर खड़े पेशेवर भिखारी एसा दयनीय भाव अपने चेहरे पर दिखाते हैं कि महिलायें बच्चे तुरंत करुणा की ख़रीदारी कर लेते हैं । मुझे पक्का विश्वास है कि आर्थिक तंगी से आत्महत्या करने वाले अथवा भूख से तड़प कर जान देने वाले लोग ही भीख माँगने के सही पात्र होते हैं मगर ख़ुद्दारी में वे एसा नहीं कर पाते । एसे लोगों की न सरकार परवाह करती है और ना ही समाज और निकम्मे भिखारियों को हम सिर चढ़ाये घूम रहे हैं । शुक्र है कि जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने हाल ही में भीख माँगने पर रोक लगा दी है । उम्मीद है कि देर सवेर केंद्र और राज्य सरकारें भी संवेदनाओं के इस कारोबार के बाबत कोई ठोस कदम उठाएँगी । तब तक तो आप भी कथित पुण्य की ख़रीदारी कीजिये ।

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