दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस वे को पूरा होना था 2017 में, चुनाव तक पूरा होगा इसमें संदेह, फिर भी उद्घाटन तो हो ही जाएगा

रवि अरोड़ा

नई दिल्ली। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के इन दिनों बहुत चर्चे हैं। वह भाजपा के ’विकास पुरुष’ माने जाने लगे हैं। उनकी नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। इसलिए उनके कामकाज का एक नमूना दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस वे के रूप में प्रस्तुत करना जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मार्ग का शिलान्यास 31 दिसंबर, 2015 को नोएडा आकर किया था। उस समय दावा किया गया था कि 24 माह, यानी दिसंबर, 2017 तक इसका काम पूरा हो जाएगा। मगर इस पर काम अब भी खरामा-खरामा ही चल रहा है। गाजियाबाद के सांसद और विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह का दावा है कि मार्च तक काम पूरा हो जाएगा। खुद गडकरी कह रहे हैं कि अप्रैल माह तक काम पूरा कर लिया जाएगा। मगर जमीनी हकीकत यह है कि मार्ग के चैथे चरण के लिए भूमि अधिग्रहण का कार्य भी अभी पूरा नहीं हुआ है। वैसे, आला अधिकारी यह भी कह रहे हैं कि काम भले पूरा नहीं हो, लोकसभा चुनाव से पहले मार्ग के केवल दूसरे चरण का उद्घाटन जरूर करा लिया जाएगा।

यह एक्सप्रेस वे 96 किलोमीटर लंबा है। इस पर कुल 7856 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। यह मार्ग जब पूरी तरह बनकर चालू हो जाएगा, तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं, उत्तराखंड के लोगों को भी आसानी हो जाएगी। यह चार चरणों में बन रहा है। पहले चरण निजामुद्दीन पुल से यूपी बोर्डर तक का काम पूरा हो चुका है। मगर यह मात्र 8.7 किलोमीटर का ही है। पहले चरण के उद्घाटन के समय सरकार ने खूब वाहवाही लूटने का प्रयास किया था। उस वक्त कैराना में उपचुनाव था। सो, प्रधानमंत्री ने इस रूट पर बाकायदा रोड शो किया था और टीवी चैनल्स ने भी उनके इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया था।

इसका दूसरा चरणयूपी बाॅर्डर से डासना तक का 19.2 किलोमीटर है। इसमें सबसे बड़ी बाधा मसूरी नहर का ब्रिज है। पिलखुआ निवासी राकेश बंसल बताते हैं कि यहां वैकल्पिक मार्ग न होने से सौ मीटर के इस पुराने पुल को पार करने में एक घंटे से अधिक समय लगता है और इसके हाल में पूरा होने के तो कोई आसार नहीं दिखते। पहले मार्ग में आ रहे पुराने मकानों को हटाने को लेकर काम महीनों बाधित रहा और बाद में एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण के चलते काम रोक दिया गया। गाजियाबाद की जिलाधिकारी ऋतु महेश्वरी बताती हैं कि एनजीटी के आदेश पर नवंबर माह में काम रोका गया था। उधर, तीसरे चरण में डासना से हापुड़ तक के 22.2 किलोमीटर लंबे मार्ग में पिलखुआ में बन रहा फ्लाईओवर सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है।

चैथे चरण डासना से मेरठ तक के 46 किलोमीटर मार्ग की हालत सबसे पतली है। इसके लिए गाजियाबाद और मेरठ के 33 गांवों की 464 हेक्टेयर जमीन की जरूरत है। इस रूट पर किसानों ने अब तक पूरी तरह जमीन का कब्जा भी सरकार को नहीं दिया है। पहले मुआवजे की राशि और फिर इसमें हेराफेरी के आरोपों के चलते मामला जांच में लटक गया। यहां भूमि अधिग्रहण का मसला ढाई वर्ष तक पचड़े में रहा और मार्च में इस चरण का काम शुरू हो सका है। इसकी शुरुआत के समय ही एनएचएआई के चेयरमैन राघव चंद्र कहा था कि यह कार्य अट्ठारह महीने, यानी सितंबर, 2019 में पूरा होगा। मगर इस मार्ग का नितिन गड़करी ने उसी समय दौरा किया था और कहा था कि यह मार्च, 2019 तक पूरा हो जाएगा। पर अभी दिसंबर के आखिरी सप्ताह में उन्होंने कहा कि यह मार्ग अप्रैल तक पूरा हो जाएगा। वैसे, यह जानने की जरूरत है कि इस मार्ग को जल्द पूरा करने के लिए सड़क की ऊंचाई घटाकर सात मीटर कर दी गई है। मगर उससे कोई खास अंतर नहीं पड़ा है।

अब ’विकास पुरुष’ के विकास की गति का अंदाजा हमें-आपको खुद ही लगाना है!

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क्या है योजना

कुल लंबाई 96 किलोमीटर

वर्ष 2010 में यूपीए सरकार ने बनाई थी योजना

वर्ष 2012 में बन कर तैयार हुई थी डीपीआर

दिल्ली से यूपी बोर्डर तक 14 लेन का होगा

2.5 मीटर का साइकल ट्रैक भी होगा

18 माह में पूरा होना था इसे

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