दाढ़ी का फर्क

रवि अरोड़ा
हालांकि यह कोई अच्छी मिसाल नहीं है मगर न चाहते हुए भी कभी कभी ऐसा करना पड़ ही जाता है । मैं बात कर रहा हूं घटनाओं के तुलनात्मक अध्ययन की । किसी खास घटना के समय हुई राजनीतिक, सामाजिक और प्रशासनिक प्रतिक्रिया आपको सोचने पर मजबूर कर ही देती है कि अरे फलां समय ऐसा क्यों नहीं हुआ ? ताज़ा तरीन मामला यति नरसिंहानंद की गिरफ्तारी का है । उन्हें हरिद्वार में गिरफ्तार तो कर लिया गया मगर उस मामले में नहीं जिसमें वे पूरी दुनिया के समक्ष खलनायक बन कर उभरे थे और स्वयं सर्वोच्च न्यायालय जिस पर निगाहें बनाए हुए हैं । नरसिंहानंद को महिलाओं के प्रति अभद्र शब्दों के प्रयोग के कमोवेश हल्के मामले में पकड़ा गया जबकि एक माह पूर्व हरिद्वार की कथित धर्म संसद में उनके और उनके साथियों के खिलाफ मुस्लिमों के नरसंहार का आह्वान करने का बड़ा गंभीर मामला भी लंबित है । पता नहीं क्यों हमारी पुलिस इस व्यक्ति से इतना डरी हुई है और उनकी इस धमकी को भी नजरंदाज कर गई जिसमें वे मरने मारने की बात कैमरे के समक्ष खुलेआम पुलिस वालों से कह रहे हैं । पुलिस को मारने की धमकी पर चुप्पी और संभल में एक मुस्लिम युवक की इतना कहने पर तुरंत गिरफ्तारी कि हमारी सरकार आएगी तो देख लेंगे ? एक जैसा अपराध, अलग अलग किस्म की दाढ़ी वाले दो अपराधी मगर एक पर मेहरबानी और दूसरे पर चाबुक ?

यकीनन पुलिस को देख लेने की धमकी देना भी अपराध की श्रेणी में आता है और उस पर कार्रवाई होनी ही चाहिए थी मगर भगवा वस्त्र धारी इस व्यक्ति पर रहम क्यों जो पुलिस कर्मियों को सरे आम कह रहा है कि तुम सब मरोगे और अपने बच्चों को भी मरवाओगे ? इस मामले में गिरफ्तारी क्यों नहीं जिसमें एक धर्म के लोगों के कत्लेआम की बात सार्वजनिक रूप से कही गई ? नरसिंहानंद को एक महीने तक खुला घूमने दिया गया और उस प्रबोधानंद गिरी को भी अभी तक छुआ नहीं गया जो इस धर्म संसद में कही गई कत्लेआम की बात अब तक मंचों पर दोहरा रहा है । क्या उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के मद्देनजर उन्हें यह रियायत दी जा रही है ? हिंदू मतदाताओं की नाराजगी को ध्यान में रखते हुए हेट स्पीच के इस मामले में केवल इसलिए ही जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी को पकड़ा गया कि वह तो असल में वसीम रिज़वी यानी मुस्लिम है ?

बेशक राजनीति का नाम ही मजबूरी है और शायद यही वजह है कि हेट स्पीच वालों का कुछ नही बिगड़ रहा । नरसिंहानंद के खिलाफ अनेक आपराधिक मामले दर्ज हैं मगर अब से पहले किसी ने उन्हें छुआ तक नहीं । उनके खिलाफ गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई की फाइल प्रशासन तैयार करता है मगर वोटों का कुछ ऐसा चक्कर है कि गिरफ्तारी तो दूर पुलिस उन्हें और उनके मंदिर को अच्छी खासी सुरक्षा मुफ्त में और दे रही है । उधर, प्रबोधानंद की तस्वीरे उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के साथ छपती रही हैं और यही तस्वीरें उनकी ढाल का काम कर रही हैं । सवाल लखटका है कि क्या कोई मुस्लिम धार्मिक नेता इस तरह की हेट स्पीच देता तो क्या अब तक बचा रहता ? क्या हमारे कथित न्यायप्रिय नेता उसके घर पर बुलडोजर नहीं चलवा देते ? क्या कभी यह सवाल भी पूछा जायेगा कि उत्तर प्रदेश की न्यायप्रिय सरकार ने अब तक कितने हिन्दू बदमाशों के घरों पर बुलडोजर चलाया है ? क्या कभी इस सवाल पर भी गौर किया जाएगा कि क्यों उत्तर प्रदेश की जेलों में 27 फीसदी मुस्लिम कैद हैं , जबकि उनकी तादाद बामुस्किल बीस फीसदी है ? क्या इस कौम में अपराधी अधिक हैं या पुलिस की निगाह केवल उनकी तरफ ही टेढ़ी है ? क्या यही वजह है कि खुलेआम पुलिस को तुम सब मरोगे कहने पर कुछ नहीं होता और देख लेने की बात कहते ही पुलिस घर में घुस कर उठा लाती है । दाढ़ी और दाढ़ी का इतना फर्क ?

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