गंगा , राजनीति और डॉलफिन
रवि अरोड़ा
इलाहाबाद में मेरी ससुराल है । ज़ाहिर है वहाँ आना-जाना भी लगा रहता है । परिवार के लोग अक्सर मुझे संगम पर ले जाते हैं । हर बार मैं वहाँ जलेबी आदि खा कर लौट आता हूँ मगर गंगा में डुबकी लगाने का साहस नहीं जुटा पाता । क्या करूँ वहाँ गंगा है ही इतनी प्रदूषित कि मुझ जैसा वहमी आदमी उसमें उतरने की हिम्मत ही नहीं करता । मगर नरेंद्र मोदी जी ने वर्ष 2014 में वाराणसी से चुनाव लड़ते हुए जब कहा कि माँ गंगा ने मुझे बुलाया है और गंगा की सेवा का कार्य मेरे भाग्य में लिखा है तो सच कहूँ मैं उनके घोर समर्थकों से भी अधिक प्रसन्न हुआ था । मुझे लगा कि अब गंगा तीरे जाकर स्नान से मुँह चुराने का वक़्त समाप्त होने जा रहा है और शीघ्र ही मैं भी परिजनों की तरह जी भर के गंगा में डुबकी लगाया करूँगा । अपनी सरकार बनते ही मोदी जी ने जब नमामि गंगे प्रोजेक्ट शुरू किया और गंगा की सफ़ाई के लिए अलग से मंत्रालय बना कर उमा भारती जैसी साध्वी को इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी तो मैं पूरी तरह से ही आश्वस्त हो गया कि गंगातट जाकर भी उसमें आचमन न करने का पाप अब और नहीं करना पड़ेगा । लेकिन अब जब गंगा के लिए लड़ते हुए 111 दिन के अनशन के बाद प्रोफ़ेसर जीडी अग्रवाल यानि स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद की मृत्यु की ख़बर पढ़ी-सुनी तो एक सपना टूटता सा दिख रहा है । गंगापुत्र कहे जाने वाले प्रोफ़ेसर अग्रवाल वही सब माँग रहे थे जिसकी 2014 से पहले भाजपा पक्षधर थी और अपनी चुनावी सभाओं में भी जिनका ज़िक्र भी करती थी । अब उन्ही बातों को दोहराते हुए प्रोफ़ेसर साहब का गंगा के लिए शहीद हो जाने से साफ़ लग रहा है कि गंगा के मामले में भी मोदी जी ने गाल बजाई ही की और अन्य दावों की तरह गंगा को निर्मल व अविरल करना भी उनके बस का रोग नहीं है ।
प्रोफ़ेसर अग्रवाल आईआईटी के प्रोफ़ेसर थे और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य रह चुके थे । उनकी सलाहों का इतना महत्व था कि मनमोहन सिंह सरकार ने अपने मंत्री जयराम रमेश को उनसे मिलने भेजा और उनकी सलाह पर गंगा पर निर्माणाधीन तीन प्रोजेक्ट अविलंभ रद्द कर दिए जबकि उन प्रोजेक्ट्स पर हज़ारों करोड़ रुपए ख़र्च भी हो चुके थे । संघ के निकट माने जाने वाले वही प्रोफ़ेसर अग्रवाल बार बार अपनी सरकार के मुखिया मोदी जी को पत्र लिखते रहे और भूखे प्यासे दुनिया से चले गए मगर मोदी जी ने उनसे बात करना तो दूर उनके पत्रों का जवाब देना भी उचित नहीं समझा । अब प्रोफ़ेसर साहब की मृत्यु पर शोक का ट्वीट कर मोदी जी गंगा प्रेमियों के जले पर नमक और छिड़क रहे हैं।
सरकारी आँकड़े बता रहे हैं कि वर्ष 2017 तक नमामि गंगे योजना के कुछ बजट बीस हज़ार करोड़ रुपयों में से 7303 करोड़ रुपए ख़र्च हो चुके हैं मगर काम अभी तक 10 फ़ीसदी भी नहीं हुआ है जबकि काम की समय सीमा समाप्त होने में भी मात्र डेड साल बचा है । नमामि गंगे के कुल बजट में से ग्यारह हज़ार करोड़ रुपया सीवेज पर ख़र्च हो रहा है और उसका काम अभी तक केवल तीन फ़ीसदी हुआ है । पहले साल में 151 घाट बनने थे जो साढ़े चार साल में केवल 36 बने हैं । गंगा में आज भी तीन लाख टन कचरा प्रतिदिन डाला जा रहा है और वह आज भी परमाणु बिजली घर, चमड़ा और रासायनिक जैसे उद्योगों का कचरा और दर्जनों नगरों का मल-मूत्र ढोने वाला नाला ही बनी हुई है । विश्व बैंक दावा करता है कि गंगा दुनिया की पाँच सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में से एक है और हमारी बारह फ़ीसदी बीमारियों की जननी भी गंगा ही है ।
जानकर बताते हैं कि गंगा में पाई जाने वाली डॉलफिन अंधी होती हैं । मीठे पानी में पाई जाने वाली यह अनोखी प्रजाति है । पता नहीं ये डॉलफिन पहले से ही अंधी थीं या गंगा की गंदगी ने उन्हें अंधा किया । यह भी हो सकता है कि गंगा की गंदगी न देखनी पड़े इसलिए उन्होंने अपनी आँखों को त्याग दिया हो अथवा हमारे नेताओं से उन्होंने यह अंधापन उधार लिया हो । अब देखिए न हमारे नेता भी तो डॉलफिन जैसे हैं और उन्हें आज भी गंगा का मैलापन दिखाई नहीं देता । उनके लिए गंगा नहीं उस पर आश्रित देश की चालीस फ़ीसदी आबादी के वोट महत्वपूर्ण है । तभी रोज़ नई नई झूठी कहानियाँ सुना रहे हैं । इस बार ये कहानियाँ सुनाने की बारी नए जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी की है ।