आस्थाओं की चोटी नंदा देवी

इस तस्वीर में मेरे पीछे जो सबसे ऊँची चोटी आप देख रहे हैं वह नंदा देवी है । आस्था , रहस्य और रोमांच की केंद्र नंदा के बारे में पर्वतीय दुनिया के बाहर लोगबाग़ बहुत कम ही जानते हैं। मैं भी उन लोगों में से एक हूँ । दरअसल हाल ही में मित्र उमेश चोपड़ा जी के मुक्तेश्वर स्थित रिसोर्ट कासा ड्रीम में जाना हुआ । वादियों में तस्वीरें खिंचवाते समय यूँ ही हिमालय की ऊँची चोटियों के बाबत पूछताछ करते समय पता चला कि मेरे ठीक सामने नंदा देवी हैं । वही नंदा देवी जिनका हिमालयी संस्कृति में बेहद ऊँचा स्थान है । नंदा चोटी का नाम सुनते ही मन अनेक कहानियों के हवाले हो गया । उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री रमेश पोखरियाल निशंक ने एक मुलाक़ात में नंदा देवी के बाबत विस्तार से बताया था और इसी पर लिखी अपनी बेहतरीन पुस्तक नंदा राजजात भी भेंट की थी । इसी पुस्तक में निशंक बताते हैं कि नंदा देवी के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति को राज्य में हर बारह अथवा उससे अधिक वर्षों में एक आस्थाओं का महाकुंभ होता है और उसका नाम है नंदा राजजात ।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नंदा पार्वती की बहन हैं और पहाड़ी राजाओं की देवी हैं । देवी के प्रति अपनी आस्था प्रगट करने को की जाने वाली यह यात्रा चमोली के नौटी गाँव से शुरू होती है और लगातार उन्नीस दिन चलती है । ढाई सौ किलोमीटर की इस पैदल यात्रा का सबसे रोचक पहलू है चौसिंघा खाडू यानि चार सींग वाला भेड़ । यह भेड़ यात्रा से पूर्व ही निकट के किसी गाँव में पैदा हो जाता है और उसके पैदा होने के संकेत के रूप में गाँव में शेर आने लगता है । भेड़ में चौसिंघा होने के लक्षण पता चलते ही यात्रा शुरू हो जाती है । भेड़ की पीठ पर माँ नंदा के शृंग़ार का सामान दो थैलों में बाँध कर उसे छोड़ देते हैं और सैंकड़ों लोग उसके पीछे चल पड़ते हैं । यह चौसिंघा जहाँ रुकता है यात्रा वहीं रुक जाती है और जब वह चलता है तो यात्रा पुनः चल पड़ती है । यात्रा के दौरान चौसिंघा घने जंगलों , पथरीले मार्गों , दुर्गम चोटियों और बर्फ़ीले पहाड़ों से होता हुआ हिमालय में कहीं गुम हो जाता है ।

छोटे भाई और उत्तराखंड के पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री सच्चिदानंद शर्मा बताते हैं कि इस यात्रा के साथ साथ लोक गायक और कथा वाचक भी चलते हैं और इसे यादगार बना देते हैं । जिस गाँव में यात्रा रुकती है उस गाँव के लोग अपना अपना घर यात्रियों के लिए भी ख़ाली कर देते हैं । यात्रा के दौरान अनेक नर कंकाल भी मिलते हैं और मार्ग में आठवीं सदी का सिद्ध विनायक मंदिर भी पड़ता है । साढे सत्रह हज़ार फ़ुट की ऊँचाई तक जाने वाली यह यात्रा पिछली बार वर्ष 2012 में हुई थी । अब बताइए क्या आपका भी मन मचल नहीं रहा इस यात्रा के लिए ? तो ज़रा धैर्य रखिए क्योंकि अब अगली बार यह यात्रा सन 2023 में ही निकलेगी ।

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