अभी अलविदा नहीं अटल जी

रवि अरोड़ा

मेरे दादा-दादी , नाना-नानी , बुआएँ और अनेक रिश्तेदार लम्बी आयु पाकर दुनिया से विदा हुए । कई का आख़री वक़्त बेहद कठिन गुज़रा । कृशकाय देह और गम्भीर बीमारियों के चलते महीनों अस्पताल में रहे । एसे में कई रिश्तेदारों को यह कहते सुना कि इनका दुःख अब देखा नहीं जाता और ईश्वर इन्हें इस यातना से मुक्ति ही दे दे । सुन कर बुरा लगता था मगर लोगबाग़ जब यह कहते कि इनके जीवन की लम्बाई नहीं वरन जीवन की गुणवत्ता माँगो तो बात कुछ समझ भी आती थी । सच कहूँ तो अटल जी की सेहत को लेकर वर्षों से मीडिया में जो ख़बरें आती थीं , उसे देख-सुन कर मेरे दोनो हाथ भी इसी प्रार्थना के लिए उठ जाते थे कि ईश्वर अब अटल जी को और दुःख न दे और तमाम परेशानियों से मुक्ति दे ।अटल जी के निधन के बाद देश भर से आ रहे शोक समाचारों पर सकुचाया अब मैं सोच रहा हूँ कि अटल जी की तमाम पीड़ाओं से मुक्ति पर क्या अन्य लोग भी एसा सोच रहे हैं अथवा मैं ही अपने प्रिय नेता के प्रति इतना निर्दयी हूँ । वैसे दशकों तक दैनिक अख़बारों में काम करने के नाते मैं भली भाँति जानता हूँ कि अब शोकगीतों से लदे तमाम मीडिया हाउस पहले से ही इसकी तैयारी कर चुके होंगे । अटल जी से जुड़े तमाम लोगों , राजनीतिक हस्तियों और अतिथि लेखकों से लिखवाए गए लेख भी पहले आ चुके होंगे ताकि अटल जी के न रहने की औपचारिक घोषणा होते ही कई पेज का मसाला पहले से ही तैयार रहे । कुछ ने तो त्वरित प्रतिक्रियाओ को छोड़ कर बाक़ी तैयारी भी उनके एम्स में भर्ती होते ही पूरी कर ली होगी ।

वैसे देखा जाए तो इसमें बुराई भी क्या है । हमारे यहाँ तो मृत्यु को भी सहज रूप से देखने की परंपरा है । जीवन के सोलह संस्कारों में एक संस्कार मृत्यु का भी है । बड़ी उम्र में विदा होने वाले लोगों को बैंड बाजे के साथ और गुब्बारों से सज़ा कर शमशान घाट ले जाने की भी परम्परा है । यही वजह है कि इस जननायक के विदा होने का मेरा दुःख तमाम पीड़ाओं से उनकी मुक्ति के अहसास के नीचे कहीं दब गया । अब चौरानवे वर्ष से अधिक भी कोई मनुष्य भला क्या जीएगा ।

अटल जी अपने जीवन में लाखों लोगों से

मिले होंगे । हज़ारों लोगों से उनसे सम्बंध थे । मुझसे भी थे मगर इकतरफ़ा । बेशक मैं उनसे कई बार मिला मगर मुझ जैसे अदना आदमी को वे भला क्योंकर याद रखते मगर हाँ मैं उनका दीवाना हमेशा बना रहा । मुझे याद नहीं कि सन 1985 के बाद उनकी मेरे ज़िले अथवा आसपास के किसी शहर में कोई जनसभा हुई हो और मैं उन्हें सुनने न गया हूँ । हर बार कोशिश यही रहती कि मंच के इतने पास जगह मिले जहाँ से उनकी भाव भंगिमाएँ भी दिखें । चौंतिस साल पहले जब वे साठ साल के हुए तो नवयुग मार्केट में उनके सम्मान में एक जनसभा हुई । ठिठोली करते हुए वे बोले कि लो आज से मैं भी सठिया गया । लोगों ने जब नहीं नहीं कि आवाज़ लगाई तो हंस कर बोले कि चलो साठा तो पाठा भी कह लो । उन दिनो मैं जन समावेश के नाम से एक दैनिक अख़बार निकालता था । सभा से लौट कर मैंने अपने अख़बार के मुख्यपृष्ठ पर एक अग्रलेख लिखा-वाह अटल जी । चूँकि मेरा झुकाव वामपंथ की ओर था सो इसपर मेरे वामपंथी साथियों ने मेरी ख़ूब खिंचाई की कि अब तुम भी संघी हो गए । हालाँकि मेरे लेख की इस बात से वे भी सहमत थे लोकहित और जन स्वीकार्यता के मामले नेहरू के बाद देश को कोई दूसरा नेता मिला है तो वह अटल जी ही हैं । उधर राम मंदिर आंदोलन के दिनो में चौपला बाज़ार में देर शाम उनकी एक विशाल सभा हुई । हर कोई जानना चाहता था कि अयोध्या में क्या होने वाला है । चूँकि अटल जी मन से मंदिर आंदोलन के साथ नहीं थे अतः मंच के पास खड़ा मैं इस जिज्ञासा में ही बेचैन था कि मंदिर समर्थक इस हज़ारों की भीड़ को अटल जी कैसे संतुष्ट करेंगे ? अटल जी लगभग एक घंटा बोले और लोगबाग़ मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे । उन्होंने एक बार भी राम मंदिर अथवा अयोध्या का नाम नहीं लिया । भाषण ख़त्म करने से पहले वे एक मिनट तक ख़ामोश रहे और फिर बोले कि मैं जानता हूँ कि आप मुझसे पूछना चाहते हैं कि अयोध्या में क्या चल रहा है ? तो चलिए आप को बता दूँ कि अयोध्या में सब ठीक चल रहा है । अटल जी के व्यक्तित्व और बात कहने की कला का एसा परिणाम हुआ कि हाथ नचा कर दिया गया उनका यह गोलमाल जवाब भी पब्लिक को संतुष्ट कर गया और अटल बिहारी ज़िंदाबाद के नारों के साथ सभा ख़त्म हो गई ।

वर्ष 1999 में जब अटल जी प्रधानमंत्री थे उन्होंने अन्नपूर्णा नामक योजना का प्रारम्भ मेरे ही ज़िले के सिखैड़ा गाँव में एक जनसभा के साथ किया । उन्होंने मंच से जैसे ही भाषण प्रारम्भ किया तब रालोद के युवा नेता राजीव त्यागी जो अब कांग्रेस के प्रवक्ता हैं , ने उठ कर उन्हें काला झंडा दिखा दिया । सभा में हड़कम्प मच गया और पुलिस राजीव त्यागी को पकड़ कर ले गई । अपना भाषण पुनः शुरू करते हुए अटल जी ने कहा कि बच्चे को नज़र न लगे इसलिए माएँ उसे काला टीका लगा देती है । मुझे यह काला झंडा भी इसी काले टीके जैसा लग रहा है । ख़ास बात यह थी कि उन्होंने राजीव त्यागी के साहस की प्रशंसा भी मंच से कर दी और उसी का असर हुआ कि पुलिस ने सभा के बाद राजीव त्यागी को रिहा कर दिया और उन्हें एक थप्पड़ तक नहीं खाना पड़ा । आप कल्पना कर सकते हैं कि आज का दौर होता तो राजीव का क्या हाल होता । यही वह कार्यक्रम था जिसमें पहली बार उन्हें सीढ़ियाँ उतरते समय लड़खड़ाते मैंने देखा। इसके बाद से उनके ख़राब स्वास्थ्य की ख़बरें आने लगीं और अब उनके न रहने की आख़िरी ख़बर भी एम्स से आ गई । आज जब सारी दुनिया अटल जी को अलविदा कह रही है , मैं एसा नहीं करना चाहता । मुझे लगता है कि आज के नेताओं को दिखाने के लिए हमें अटल जी को आइने के रूप में संभाल कर रखना चाहिए। अब पता नहीं अटल जी के नाम पर छाती पीट रहे आज के नेता अटल जी जैसा आइना देखना पसंद करेंगे भी या नहीं ।

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