हर कोई नहीं कर सकता
रवि अरोड़ा
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के अयोध्या में भव्य मंदिर के शिलान्यास पर उनके सभी भक्तों को बहुत बहुत बधाई । आरएसएस व भारतीय जनता पार्टी के तमाम कुनबे को भी बधाई कि उसकी वर्षों की मेहनत सफल हुई । तमाम विपक्षी दलों को भी बहुत बहुत बधाई जो उन्होंने देश को लगातार पीछे खींचने वाले इस मामले मे इस बार कोई अड़चन नहीं डाली । तमाम मुस्लिमों को भी बधाई कि अब उनकी एसे मुद्दे से जान छूटी जो उनके ख़िलाफ़ ध्रुवीकरण का सबसे बड़ा कारण था । लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह और उमा भारती जैसे नेताओं को भी बधाई कि उनके जीते जी मंदिर का काम शुरू हो गया । बधाई उन लाखों राजनीतिक कार्यकर्ताओं को भी जो राम मंदिर के नाम पर वर्षों एक पाँव पर खड़े रहे और देश को भी उन्होंने इस दौरान चैन नहीं लेने दिया । बधाई मुझे, बधाई आपको , बधाई इसे, बधाई उसे , बधाई सबको, बधाई बधाई बधाई ।
अब आप पूछ सकते हैं कि बाक़ी सबको तो बधाई ठीक है मगर घोर अपमान के बावजूद पुरानी पीढ़ी के भाजपाई नेता आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह और उमा भारती आदि को मैंने बधाई किस तंज में दी ? जिन नेताओं ने राम मंदिर आंदोलन शुरू किया और इस मंदिर के निर्माण को सम्भव बनाया उन्हें ही इस कार्यक्रम से दूर रखा गया तो फिर बधाई कैसी ? तो जनाब इन नेताओं ने जो बोया, वही तो काटा है । अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिल कर आडवाणी ने जिस तरह से अपने नेता और जनसंघ के संस्थापक बलराज मधोक को हाशिये पर भेजा वही तो अब उनके चेले मोदी जी उनके साथ कर रहे हैं । उधर, खेमेबंदी के युग में जोशी जी, कल्याण सिंह, उमा भारती और विनय कटियार आदि भी आडवाणी की जिस नाव में बैठे, वह अब डूब रही है तो फिर उन्हें अफ़सोस कैसा ? राजनीति में तो यह होता ही है । आदमी जिस सीढ़ी से ऊपर चढ़ता है सबसे पहले उसे ही तो गिराता है । यही काम अब मोदी जी कर रहे हैं तो आश्चर्य क्यों ? सो मेरी सलाह मानिये और आप भी इन बुज़ुर्ग नेताओं को बधाई दीजिये और उन्हें कहिये कि बुढ़ापे में कोई और फ़ज़ीहत नहीं करवानी तो बधाई लेते देते रहें।
पता नहीं किस रौ में साध्वी ऋतंभरा कह रही हैं कि बिना बुनियाद के शिखर चमका नहीं करते । आडवाणी और जोशी को कार्यक्रम से दूर रखने पर उनकी यह प्रतिक्रिया बहुत चर्चित हुई है । विनय कटियार भी यही कह रहे हैं कि बुज़ुर्ग नेताओं को मंदिर के कार्यक्रम में अवश्य बुलाया जाना चाहिये था । कुछ अन्य नेता भी दबी ज़ुबान से यही दोहरा रहे हैं मगर मैं इससे सहमत नहीं । अजी मोदी जी वही कर रहे हैं जो राजनीति का पहला पाठ उन्होंने सीखा है । वो अच्छी तरह यह भी जानते हैं कि भविष्य में उनके साथ भी एसा हो सकता है, इसलिए हर बढ़ती बेल को काटते छाँटते रहते हैं ।
बहुत पुरानी बात नहीं है कि जब गुजरात दंगों से ख़फ़ा तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चाहते थे कि राज्य के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इस्तीफ़ा दें मगर आडवाणी साहब नरेंद्र मोदी के पक्ष में अड़ गए और उनकी कुर्सी बचा ली ।उन्हें उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जब उनका नम्बर आएगा तो मोदी मदद करेंगे मगर उनके नेतृत्व में उनकी पार्टी 2004 व 2009 के दो आम चुनाव पार्टी हार गई । इस पर संघ ने जब नये नेतृत्व के विचार को आगे बढ़ाया तो आडवाणी-जोशी की टीम अटक गई और उन्होंने मोदी की राह में काँटे बिछाने शुरू कर दिये । नतीजा मोदी जी के नेतृत्व में भारतीय राजनीति का एक निर्मम इतिहास लिख दिया गया । उन्ही कंधों को छील दिया गया जिन पर कभी सवारी की गई थी । सच कहूँ तो शिलान्यास कार्यक्रम में भाजपा के बुज़ुर्ग नेताओं की उपेक्षा से मैं बहुत प्रसन्न हूँ । मेरी प्रसन्नता का कारण इन नेताओं से किसी क़िस्म की खुन्नस नहीं वरन अपने लोगों का वह अनुभव है जो मुझे अक्सर बताता है कि राजनीति बहुत कुत्ती चीज़ है । इसे हर कोई नहीं कर सकता ।