सेवइयां और गुझिया की भूल भुलैया
सेवइयां और गुझिया की भूल भुलैया
रवि अरोड़ा
देखते ही देखते जमाना कितना बदल गया है। सेवइयां और गुजिया अब केवल मिठाई नहीं रहीं बल्कि दो धर्मों की अस्मत का प्रतीक बन गई हैं। नहीं विश्वास हो तो संभल के पुलिस अधिकारी अनुज चौधरी का वह बयान देख लीजिए जिसमें वह चेतावनी दे रहा है कि आप सेवइयां खिलाना चाहता हो तो उनकी गुझिया भी खानी पड़ेगी । गोया सेवइयों पर केवल मुस्लिमों का अधिकार है और गुझिया हिंदुओं के पाले में है। खास बात यह है कि यह सब वह ईद के मौके पर बुलाई गई शांति बैठक में कह रहा था । अब सारा दोष इस पुलिस अधिकारी को ही क्यों दें, यहां तो अब जिसे देखो वही यह भाषा बोल रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शब्द याद कर लीजिए कि सड़कें चलने के लिए होती हैं, नमाज पढ़ने के लिए नहीं। यह तो तब था जब पंद्रह दिन पहले ही सड़कों पर होली खेली गई और अब कुछ महीनों बाद कांवड़ यात्रा भी सड़कों पर निकलेगी जिस पर योगी सरकार हेलीकॉप्टर से फूल बरसाएगी। ताजियों को लेकर उनके शब्द भी कम से कम किसी मुख्यमंत्री जैसे तो कतई नहीं थे । वक्फ बिल को लेकर संसद और संसद के बाहर सत्तारूढ़ भाजपा के नेताओं की भाषा भी वहीं है जैसी इस पुलिस अधिकारी की थी । समझ से परे है कि देश को कहां ले जाया जा रहा है ?
आज जब देश में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की टैरिफ वॉर पर हाहाकार मचना चाहिए था , हम वक्फ बोर्ड , ईद, होली , मंदिर के दीयों की संख्या और गुझिया सेवईं की बातें कर रहे हैं। कोई नहीं पूछ रहा कि भारत से अमेरिका को होने वाला निर्यात कितना कम होगा, भारत में कितने लोग बेरोजगार होंगे, रुपए के मूल्य में और कितनी गिरावट आएगी अथवा कितने भारतीय अब अमेरिका से भारत लौटने पर मजबूर होंगे । सब एक ही बात कर रहे हैं कि देश को नए वक्फ कानून की कितनी सख्त आवश्यकता थी अथवा सत्तर सालों में वक्फ बोर्ड ने क्या क्या घोटाले किए थे वगैरह वगैरह । साफ दिख रहा है कि अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप भारत से दुश्मनों जैसा व्यवहार कर रहे हैं मगर फिर भी न जाने क्यों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुंह में दही जमाए बैठे हैं ? ट्रंप को अपना मित्र बताने वाले मोदी जी क्यों कुछ नहीं कर पा रहे जबकि चाइना और कनाडा जैसे देशों ने अमेरिका को नाकों चने चबवा दिए हैं ? कम से कम यह सवाल तो मोदी जी से बनता ही है कि क्यों आप ट्रंप द्वारा मुंह पर दी गई धमकियों पर भी मुस्कुरा कर रह गए और क्यों मस्क ने आपसे अपने बच्चे खिलवाने की हिमाकत की ? मगर सवाल उठने की बजाय हो कुछ और ही रहा है । सवालों को थामने को नित नई और गैर जरूरी खबर गढ़ ली जा रही हैं । पहले दिल्ली के चुनावों और केजरीवाल के कथित भ्रष्टाचार ने सारी सुर्खियों पर कब्जा जमाए रखा और फिर बजट ने चर्चाओं का मुंह मोड़ दिया । कभी प्रधानमंत्री और आरएसएस के रिश्तों के बहाने प्रमुख खबरों का रास्ता रोका गया तो कभी ईद कभी होली और अब वक्फ के बहाने हमारी आँखें बंद की जा रही हैं जबकि दुश्मन बिल्ली ठीक सिर पर खड़ी है।
बताया जा रहा है कि अमेरिका में इस समय भारतीय मूल के कुल 54 लाख लोग रहे हैं और विभिन्न तरह के वीजा और ग्रीन कार्ड संबंधी नई नीतियों के चलते लगभग 21 लाख लोगों को भारत लौटना पड़ सकता है। हर साल जो तीन लाख लोग रोजगार के सिलसिले में अमेरिका जाते हैं, वे तो खैर अब जा ही नहीं पाएंगे । इतनी ही संख्या में डंकी के मार्फत अमेरिका गए भारतीय भी बेड़ियों और हथकड़ियों से बंध कर भारत लौटेंगे, इसके भी आसार बन गए हैं। ये तमाम वे लोग हैं जो भारतीय खजाने को अमेरिकी डॉलर से लबालब रखते हैं और इनके वापिस लौटने पर डॉलर का क्या होगा यह सवाल तो है ही साथ ही यह भी संकट है कि भारत में पहले से ही इतनी बेरोजगारी है, इन लोगों के लिए काम कहां से आएगा ? ट्रंप ने जो टैरिफ वॉर भारत से शुरू की है, उसके नतीजे भी यकीनन भयावह होने जा रहे हैं। निर्यात में कमी, रोजगार और उद्योगों पर संकट के साथ कृषि और समुंद्री उत्पाद के क्षेत्र में भी हाहाकार मचने वाला है मगर इस ओर कोई विमर्श दिखाई नहीं पड़ रहा ।
नए वक्फ कानून को लेकर लोगों में दिलचस्पी का कोई कारण नहीं है मगर ऐसे पेश किया जा रहा है जैसे कोई क्रांति आ गई है। यकीनन वक्फ बोर्ड में तमाम गड़बड़ियां हैं मगर ऐसी गड़बड़ियां किस धर्म और उसकी संस्थाओं में नहीं हैं ? खैर, होली बीत चुकी है। ईद भी जा चुकी है। वक्फ कानून बन चुका है, राम नवमी पर लाखों दीये राम मंदिर परिसर में जल चुके हैं, क्या अब हम जरूरी मुद्दों पर बात कर लें, या अभी इनकी खुमारी में कुछ दिन और काटने हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि मुल्क को इस खुमारी से बाहर ही न आने दिया जाए । क्या सचमुच हमें अपने देश को सेवइयां और गुझिया में ही अटकाए रखना है ?