सुन जोमेटो

रवि अरोड़ा

अमाँ जोमेटो वाले भईया तुम भी ग़ज़ब हो । क्यों बैठे बैठाये पंगा ले लिया । तुम्हें किसने सलाह दी थी कि कहो- खाने का कोई धर्म नहीं होता । भई तुम भारत में ही पैदा हुए हो न ? फिर तुम्हें कैसे नहीं पता कि अपने यहाँ खाना ही नहीं हवा-पानी और और तमाम अमूर्त चीज़ों का भी धर्म होता है । भईया दीपेन्द्र गोयल कोई बता रहा था कि तुम पंजाब के मुक्तसर शहर में पैदा हुए हो , फिर तुम्हें कैसे नहीं पता कि हमारे यहाँ धार्मिक स्थलों का तो धर्म होता ही है , उसकी जाति भी होती है । क्या पंजाब के गाँवों में जातियों के आधार पर अलग अलग गुरुद्वारे तुमने नहीं देखे ? कैसे बंदे हो भाई , वहाँ तो सबको पता होता है कि फ़लाँ गुरुद्वारा जट्टाँ दा है और फ़लाँ रामगड़ियों दा अथवा रैदासों दा । क्या तुमने कभी नहीं सुना कि हमारे यहाँ कुएँ और तालाब भी जातियों के होते हैं ? क्या तुम्हारे घर में पिता जी के दोस्त रहीम चाचा के बर्तन अलग से नहीं होते थे ? क्या किसी मुस्लिम शादी में तुमने हिन्दू खाना नहीं देखा ? क्या तुम्हारे घर के बाथरूम साफ़ करने वाली को कभी कभी दी जाने वाली चाय तुम्हारे ही कप मिलने लगी है ? भाई जोमेटो कम्पनी शुरू करने के बाद तुम बेशक दिल्ली में रहते हो मगर अपने शहर तो कभी जाते ही होगे , तुमने रास्ते में कहीं लिखा नहीं देखा- वैष्णव भोजनालय या मुस्लिम ढाबा ? फिर क्यों पगला गए हो और एसा बयान दे रहे हो जो बैठे बैठाए तुम्हें सेकुलर क़रार दे रहा और बिना कभी जेएनयू गए भी जेएनयू वादी कहला रहे हो ?

वैसे दीपेन्द्र मुझे लगता है कि तुम जबलपुर वाले अमित शुक्ला को अकेला समझ कर ही शायद यह भूल कर बैठे होगे। उसने मुस्लिम डिलीवरी ब्याय से खाना लेने से मना किया तो तुमने समझा कि उसे हड़का लोगे मगर बंधू ये जबलपुर वाला अकेला कहाँ है । देख नहीं रहे देश भर से उसके हिमायती निकल रहे हैं । अब तो गणेश जी को दूध पिलाने वाले भी मैदान में आ गए हैं और दावा कर रहे हैं कि तुमने कहा है कि मुझे हिंदू ग्राहक नहीं चाहिये । अब तुम कितना भी सफ़ाई दो कि तुमने बस यही कहा था कि हम भारत के विचारों और हमारे ग्राहकों-पार्टनरों की विविधता पर गर्व करते हैं , हमारे इन मूल्यों की वजह से अगर बिजनेस को किसी तरह का नुकसान होता है तो हमें इसके लिए दुख नहीं होगा । मगर भाई इसे कलेजे पर लेने वाले तो कलेजे पर ले गए न । अब वे प्रचारित करते घूम रहे हैं कि तुम जानबूझ कर हिंदू लड़कियों का ओर्डर मुस्लिम लड़कों से भिजवाते हो ताकि वे लव जेहाद कर सकें ।

दीपेन्द्र गोयल शायद तुम कुछ ज़्यादा ही पढ़-लिख गए । अख़बार वाले बता रहे हैं तुम शायद दिल्ली से आईआईटियन हो और तुम्हारे माता-पिता और पत्नी सभी शिक्षक हैं । शायद इसलिए ही तुम उन शोधों पर विश्वास करने लगे जो कहते हैं कि इंसानी दिमाग़ की संवेदनशीलता वक़्त के साथ धीरे-धीरे कम हो रही है और वर्ष 1980 से अब तक उसमें लगभग चालीस फ़ीसदी की कमी आई है । भाई ज़रा पता तो करना कि इस शोध में हम भारतीय कितने थे और शोध में धर्म से जुड़े सवाल भी थे क्या ? शायद तब ही तुम्हें पता चलेगा कि धर्म के मामले में हम एक इंच भी नहीं हिलते और अपनी संवेदनशीलता से भी कोई समझौता नहीं करते । पत्ता भी खड़के तो हमें अपना धर्म ख़तरे में नज़र आने लगता है और हम पिल पड़ते हैं ।

भाई बुरा मत मानना । तुम धंधा करने आये हो तो चुपचाप धंधा करो । हमें सही ग़लत मत समझाओ । तुमसे पहले भी कई बड़े बड़े अपना सिर फोड़ कर चले गए । तुम किस खेत की मूली हो । ठीक है कि तुमने अपनी कम्पनी हज़ार करोड़ की बना ली और 19 देशों में अपना व्यापार फैला लिया मगर तुम क्या चाहते हो कि हम भी तुम्हारे जैसे हो जायें , अधर्मी ? ख़बरदार जो हमें बताया कि कभी दुनिया की अर्थव्यवस्था में हम भारतीयों का हिस्सा तीस फ़ीसदी था और आज मात्र दो परसेंट है । भईया रे चाहे हम एक परसेंट पर ही क्यों न आ जायें । हम तो एसे ही हैं और एसे ही रहेंगे । हम अपने संस्कार एसे कैसे आसानी से छोड़ दें ? अब ग़ौर से सुनो। मेरी नेक सलाह है कि तुम चुपचाप माफ़ी माँग लो और नेताओ की तरह कहो कि मेरे कहने का यह मतलब नहीं था और मीडिया ने मेरी बात को तोड़ मरोड़ कर पेश किया वरना अपना बोरिया-बिस्तर लेकर पाकिस्तान चले जाओ । हमें तुम्हारे जैसे अधर्मियों की कोई ज़रूरत नहीं है । नहीं है मतलब नहीं है ।

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