श्रावण बनाम श्रवण
रवि अरोड़ा
पिताजी के घुटने में दर्द था । इलाज के लिए डॉक्टर अखिलेश गर्ग के यहाँ जाना हुआ । इससे पहले कि डॉक्टर साहब पिताजी से कुछ पूछते मैंने पहले ही बता दिया कि वृद्धावस्था के कारण पिताजी अब सुन नहीं पाते । इसपर डॉक्टर गर्ग बोले कि यह समस्या केवल इनकी नहीं पूरे देश की है । उन्होंने पलट कर मुझसे ही पूछ लिया कि बताओ आजकल कौन किसकी सुनता है ? सरकार सुनती है क्या , नेता सुनते हैं क्या , अफ़सर सुनते हैं क्या , पत्नी सुनती है क्या ? और तो और अपने ही बच्चे सुनते हैं क्या ? अब मैं क्या कहता, चुपचाप दवा का पर्चा लिखवाया और घर लौट आया । हाँ सवाल साथ ही था कि आजकल सुनना इतना अप्रिय क्यों हो चला है ? डॉक्टर साहब ठीक ही तो कह रहे थे । वाक़ई अब कौन किसकी सुनता है ? सामने वाले ने कहना शुरू किया नहीं कि हम उसे टोक देते हैं । हर कोई कहने पर उतारू है । जिसे देखो वही बोलना चाहता है । सबको सब कुछ पता है । उसी के प्रचार-प्रसार में मशगूल हैं । अपना कुछ नहीं है । सुबह अख़बार में पढ़ा अथवा रात को जो टीवी में देखा बस वही उगल दिया । तमाम जानकारियाँ यहीं थम जाती हैं । सबकी राय जड़वत हैं । सब कुछ ब्लैक एंड वाइट में । बीच के मीलों लम्बे ग्रे एरिया की कोई गुंजाइश नहीं ।
बुज़ुर्ग बताया करते थे कि केवल कान ही हमारे एसे अंग हैं, जो हमें दूसरों से जोड़ते हैं । संवाद की पहली शर्त सुनना है । सामने वाले को सुन कर ही हम उससे सरोकार स्थापित करते हैं । बाक़ी के सभी अंग तो सिर्फ़ हमारे अपने लिए ही कार्य करते हैं । अन्य सभी अंग जहाँ हमें स्वार्थी बनाते हैं मगर वहीं कान परमार्थ से जोड़ते हैं । बचपन में यह भी पढ़ाया गया था कि मूक-बधिर लोगों के दरअसल कान ही काम नहीं करते । ज़बान तो पैदाईशी स्वस्थ ही होती है । अब चूँकि वह सुन नहीं पाते अतः बोलना भी नहीं सीख पाते । कान का महात्म मन में गुथते-बुनते कान पर मोहित सा हो गया मगर भीतर ही भीतर शक भी होने लगा कि क्या अब कान परमार्थी रह भी गए हैं ? सामने खड़ा व्यक्ति कुछ कहे हम सुनने की बजाय उसे क्या जवाब देना है , इस पर विचार करने लगते हैं । लोग तो लोग हम तो सरकार की भी नहीं सुनते । सरकार कहती है सफ़ाई पर ध्यान दो , हम सुनते हैं क्या ? सरकार कहती है भोजन बर्बाद मत करो , कोई मानता है क्या ? समाज सेवी कहते है जल बचाओ , हम बचाते हैं क्या ? सामाजिक संगठन बार बार बोलते हैं- बच्चियों को गर्भ में मत मारो , बच्चों को शिक्षित करो , हम सुनते हैं क्या ? यही नहीं सड़क दुर्घटना अथवा अन्य किसी विपदा में भी हम किसी की कातर चीख़ो-पुकार सुनते हैं क्या ? हम तो उसका विडीओ बनाने लगते हैं ।
श्रावण माह चल रहा है । यह माह शिव की भक्ति का माह है । वर्षा के कारण शिव को यह माह बेहद प्रिय है । इस माह को लेकर पुराणों में अनेक कहानियाँ हैं मगर इसकी मूल भावना अब कही गुम हो गई है । दरअसल श्रवण नक्षत्र के कारण इस माह को श्रावण कहा गया । श्रवण यानि सुनना । वर्षा ऋतु में वनों में रहना मुश्किल होता था और भ्रमण भी कष्टकारी होता था अतः ऋषि मुनि इस माह आम लोगों यानि संसारियो के बीच आ जाते थे । इन्ही ऋषि-मुनियों व साधू- संतों से परमार्थ का मार्ग जानने को लोग उनकी वाणी का श्रवण करते थे । कथा वाचन और कीर्तन भी यहीं से उत्पन्न हुए । श्रावण के इसी मास में श्रवण पर चर्चा करते हुए आइए मिलकर प्रार्थना करें कि भोलेनाथ हमें और कुछ ना भी दें मगर कम से कम हमारी श्रवण क्षमता में तो कुछ इजाफा कर ही दें । बोल बम ।