शॉर्ट टर्म मैमोरी लॉस

रवि अरोड़ा
बेशक मुल्क में चुनाव कराना एक महंगी प्रक्रिया है और इसका बोझ जनता पर ही पड़ता है मगर पता नहीं क्यों चुनाव अब अच्छे लगने लगे हैं । हालांकि मैं बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक काशी राम की तरह यह नहीं कह रहा कि चुनाव पांच साल में नहीं वरन और जल्दी जल्दी होने चाहिए । राम मनोहर लोहिया की तरह कोई भारी भरकम नारा भी नहीं उछालना चाहता कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करतीं मगर फिर भी दिल करता है कि देश में माहौल तो हमेशा चुनावी ही रहना चाहिए । अब देखिए न बड़े बड़े लोग गली गली घूम रहे हैं । जिन्होंने कभी महंगी कारों से नीचे कदम नहीं रखा था , वे भी घर घर जाकर हाथ जोड़ रहे हैं । जिस आम आदमी की कीमत दो कौड़ी की नहीं कभी मानी गई , वही अब सबका माई बाप बन गया है । महंगाई जैसे थम गई है । सरकारी वसूली क्या होती है , यह लोग भूल गए हैं । जब तक बेहद जरूरी न हो पुलिस बदमाशों को गिरफ्तार नहीं कर रही । जो भी रियायत दी जा सकती है वह दी ही नहीं जा रही बल्कि बरसाई जा रही है । सभी दलों ने जो वादे किए हैं , उनमें से आधे भी पूरे हो गए तो पब्लिक की बल्ले बल्ले ही हो जायेगी ।

अखबार बता रहे हैं कि दुनिया में कच्चे तेल के दाम आसमान छू रहे हैं मगर हमारे देश में तो लोग बाग भूल ही गए हैं कि हमारे यहां पेट्रोल डीजल के दाम बाजार के हिसाब से कभी रोज बढ़ते थे । शायद ही कोई ऐसा दिन होता था जब दाम न बढ़ें । हां जिस दिन दाम न बढ़ें तो उस दिन हैरानी अवश्य होती थी । रसोई गैस का भी यही हाल था मगर आजकल पूरा राम राज है । सरकारी कृपा ऐसी बरस रही है कि बिजली के दाम भी चुनावी बेला में कम हो गए हैं । यही नहीं कुछ ऐसे आदेश भी ऊपर से आए हुए हैं कि बिजली का बिल जमा न करवाने वालों की बत्ती भी नहीं कट रही । साल भर सर्दी गर्मी बरसात झेल कर किसान जो कृषि कानून वापिस नहीं करवा सके , चुनावों ने एक झटके में करवा दिए । सरकारी कंपनियों की बिक्री भी जैसे सरकार भूल गई है । छोटे मोटे मामलों में पुलिस जेल न भेज कर मुलजिमों को थाने से ही जमानत दे रही है । वारंट तो खैर तामील ही नहीं हो रहे । अमीन मस्ती काट रहे हैं और विभिन्न करों की वसूली में भी पूरी ढील बरती जा रही है । परेशानी का सबब बने डिजिटल स्टांप बंद कर दिए गए हैं और लाखों स्टांप वेंडर के घर फिर से चूल्हा जल रहा है । एडीएम एफ के दफ्तरों में स्टांप अदालतें लग रही हैं और कम स्टांप लगाने के वाद आनन फानन निपटाए जा रहे हैं । ठेली पटरी वालों को ठीए अलॉट किए जा रहे हैं । अभी तो यह शुरुआत भर है । परिणाम आने दीजिए , पूरी कृपा बरसेगी । सरकार किसी की भी आए , झोली तो पब्लिक की ही भरेगी ।

मुझे मालूम है कि अब आप हमारे राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को मन ही मन कोस रहे होंगे मगर मेरी पूछें तो मैं अपने इन नेताओं के ही साथ हूं । दरअसल हमारे नेता बहुत विद्वान हैं । मनोविज्ञान और हमारे समाज की सोच समझ पर भी उनकी गहरी पकड़ है । उन्हें पता है कि पब्लिक गजनी फिल्म के आमिर खान जैसी शॉर्ट टर्म मैमोरी लॉस की शिकार है । पुरानी बात वह बहुत जल्दी भूल जाती है और सिर्फ ताजा बात ही याद रखती है । जाहिर है कि वोट भी वो ताज़ा बात पर करेगी । हर चुनाव में ऐसा ही होता है । अब आप ही हिसाब लगाइए कि पैट्रोल, डीजल और गैस के बढ़े दाम ताज़ा मुद्दा हैं क्या ? धरना रत सात सौ किसानों की मौत की बात कोई आज की है क्या ? किस सरकार के कार्यकाल में महंगाई और बेरोजगारी नहीं रही ? आज की बात होनी चाहिए । हमारे नेता भी तो यही कह रहे हैं कि बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले । उनका कसूर भी क्या है , शॉर्ट टर्म मैमोरी लॉस वालों से ऐसी उम्मीद नहीं की जानी चाहिए क्या ?

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