शेर का मुंह बनाम विपक्ष का मुंह

रवि अरोड़ा
मेरे गुरू स्वर्गीय डॉक्टर वी के रॉय बेहद शालीन और गंभीर व्यक्तित्व के मालिक थे अतः वे गाली गलौच के बेहद खिलाफ थे। हालांकि हमारे इर्द गिर्द की दुनिया इतनी बीहड़ है कि कई बार जीभर के गाली देने को मन मचल ही उठता है। ऐसे में रॉय साहब प्रतीकों में गाली देने की सलाह हमें दिया करते थे । जैसे किसी बेवकूफ को हम कह देते कि वह तो कतई ..तिया है, तो रॉय साहब समझाते थे कि सिर्फ इतना कहो कि ‘ निपट वो ‘ है। गुस्से में कोई छात्र सामने वाले के घर की महिलाओं को गाली में शामिल करता तो वे कहते इतना गिरने की क्या जरुरत है ‘ उसकी फलां का फलां ‘ कह दो बात तब भी समझ आ जायेगी। अब आप पूछ सकते हैं कि आज बेहूदा गालियों और अपने गुरू रॉय साहब क्या जिक्र क्यों ? तो दरअसल बात यह है कि रॉय साहब संसदीय-असंसदीय शब्दों का अंतर हम लोगों को बेहद बारीकी से समझाते थे और कहा करते थे कि व्यक्ति अथवा मूल्यों की आलोचना और मूल्यांकन उचित शब्दों में नहीं किया जाए तो कही गई बात अर्थहीन हो जाती है । अब जब लोकसभा सचिवालय ने एक बुकलेट जारी कर असंसदीय शब्दों की नई सूची जारी की है और उन तमाम शब्दों को प्रतिबंधित कर दिया है जो विपक्ष अक्सर सरकार को कहता है, तो मुझे अपने रॉय साहब बहुत याद आ रहे हैं । वे आज होते तो अवश्य ही इन तमाम प्रतिबंधित शब्दों का कोई तोड़ निकाल लेते और विपक्षी नेताओं के विरोध की धार बिलकुल कुंद नहीं होने देते।

वैसे कमाल ही है कि सरकार जुमलों से चल रही है मगर उसे अब जुमलाजीवी नहीं कहा जा सकता । आधे से अधिक मंत्री बच्चें से भी अधिक अज्ञानी हैं मगर उन्हें बाल बुद्धि कहना प्रतिबंधित हो गया है । जनता की आवाज सरकार तक नहीं पहुंच रही मगर उसे बहरा भी नहीं कहा जा सकता। देश में आए दिन दंगे होते हैं मगर दंगा शब्द भी अब नहीं कहा जा सकता । करप्शन तो किया जा सकता है मगर कहा नहीं जा सकता । आला मंत्री तड़ीपार हुआ था तो हुआ था मगर कह नहीं सकते ।उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, उचक्के, अहंकार, कांव-कांव करना, काला दिन, गुंडागर्दी, गुलछर्रा, गुल खिलाना, गुंडों की सरकार, दोहरा चरित्र, चोर-चोर मौसेरे भाई, चौकड़ी, तलवे चाटना, तानाशाह और दादागिरी जैसे लगभग पंद्रह सौ शब्द अब संसद में नहीं बोले जा सकते । अंग्रेजी की बात करें तो अब्यूज़्ड, ब्रिट्रेड , ड्रामा, हिपोक्रेसी और इनकॉम्पिटेंट, कोविड स्प्रेडर और स्नूपगेट शब्दों पर भी बैन लग गया है। खास बात यह है कि ये तमाम शब्द वही हैं जो विपक्षी दल सरकार के लिए इस्तेमाल करते हैं । सरकार द्वारा विपक्ष के लिए बोले जाने वाले शब्दों को कतई नहीं छेड़ा गया है । समझ नहीं आ रहा कि मुहावरों, ऐतिहासिक प्रतीकों और विरोध लिए शब्दों के बिना विपक्ष संसद में अब करेगा क्या ? उसकी हालत तो कुछ यूं हो जायेगी जैसे युद्धिष्ठर के महल में दुर्योधन । एक एक कदम फूंक फूंक कर उठाना होगा। जरा सा डगमगाए नहीं कि पानी में जा गिरे। गज़ब स्थिति है। अशोक चिन्ह का शेर तो अब दहाड़ सकता है मगर विपक्ष के मुंह पर पट्टी बांध दी गई है।

शब्दों की ताकत से डरी सरकार की नीतियों पर चर्चा को हालांकि प्रियंका गांधी ने प्रतिबंधित शब्दों के कुछ रोचक विकल्प सुझाए हैं मगर उनमें रॉय साहब जैसी बात नहीं है । कुछ और सुझाव भी आ रहे हैं मगर उनमें भी दम नहीं है। हां रॉय साहब होते तो जरूर कोई रास्ता निकाल लेते । मगर जुमलाजीवी, दंगा, तानाशाह, लॉलीपॉप और अहंकार जैसे शब्दों पर तो शायद वे भी गच्चा खा जाते । भला उक्त शब्दों के बिना वर्तमान सरकार पर बात हो ही कैसे सकती है? रात को रात कहे बिना रात की बात कैसे होगी ? अब आपके पास कोई आइडिया हो तो कृपया जरूर बताइएगा ।

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