शुक्रिया रिया चक्रवर्ती
रवि अरोड़ा
आज सुबह एक मित्र का फ़ोन आया और उसने सुशांत सिंह राजपूत के मामले में मेरी राय जाननी चाही । दरअसल वह रिया चक्रवर्ती को लेकर बहुत उद्देलित था और जानना चाह रहा था कि क्या रिया की गिरफ़्तारी होगी ? बेहद पढ़े लिखे और सामाजिक रूप से जागरूक अपने इस मित्र के सवालों से मैं चौंका । दरअसल आज ही अख़बार में ख़बर थी कि दुनिया भर में सबसे तेज़ी से कोरोना संक्रमण के मामले भारत में बढ़ रहे हैं और वह दिन दूर नहीं कि कोरोना के मामले में हम दुनिया में नम्बर वन होंगे , बावजूद इसके मेरे मित्र के दिमाग़ में सुशांत और रिया ही क्यों चल रहे हैं ? पहले मैंने समझा कि यह सब ख़बरिया चैनलों का असर होगा मगर बातचीत लम्बी खिंचने पर स्पष्ट हो गया कि बात केवल इतनी भर ही नहीं है । इन हवा हवाई सवालों के स्रोत बेहद गहरे हैं । सवाल सुशांत अथवा रिया का नहीं होता तो और किसी काल्पनिक विषय का होता । दरअसल ये सवाल कोई सवाल नहीं वरन मूल सवालों के विकल्प होते हैं । आप कुछ और न सोचें इस लिए ही इस तरह के सवाल सृजित किये जाते है । हमारे देश को जो भी ताकते चला रही हैं , वे अपने इस काम में माहिर हैं और भारतीय मानस और उसके मनोविज्ञान को भली भाँति समझती हैं । उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि भारतीय मानस को कब क्या सोचवाना है और कब क्या सोचने से रोकना है । बेशक इस पूरी एक्सरसाइज़ में सारी गालियाँ मीडिया और सोशल मीडिया को पड़ें मगर वे तो इस पूरे क्रियाकलाप के छोटे से टूल भर हैं । असल खेल तो इन सर्वशक्तिमान ताक़तों का ही होता है ।
सवाल मौजू है कि सुशांत सिंह राजपूत और रिया चक्रवर्ती जैसे सवाल यदि हवा में नहीं दागे जाते तब भारतीय मानस किस विषय पर विमर्श करता ? इस संकटकाल में क्या वह एक दूसरे से पूछता कि तमाम दावों के बावजूद देश में कोरोना इतनी तेज़ी से क्यों बढ़ा ? क्या वह सोचता कि नौकरियाँ कब और कैसे बहाल होंगीं और काम धंधे कब पटरी पर लौटेंगे ? प्रधानमंत्री ने झूठ क्यों बोला कि चीन ने हमारी ज़मीन नहीं क़ब्ज़ाई ? क्या हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों, रेल गाड़ियों और बेशक़ीमती सरकारी संस्थानों की बिक्री उसकी सोच के केंद्र में स्थान पाती ? पेट्रोल-डीज़ल के दाम क्यों बढ़े, भारतीय रुपया क्यों गिरा और माँग के बिना भी महँगाई क्यों बेक़ाबू है, क्या एसे सवाल दिमाग़ों में कौंधते ? आपका उत्तर आप जानें मगर मेरा जवाब तो न में ही है । आप स्वयं सोचिये देश चलाने वाली ताक़तें क्या दिमाग़ों को भला इतना खुला छोड़तीं कि आप कुछ भी सोच सकें ?
ताली-थाली बजाने, मोमबत्ती-दीये जलाने, तबलीगी जमात, राफ़ेल, चीन-पाकिस्तान, राम मंदिर, ट्रम्प, मोर और बढ़ी दाढ़ी और न जाने कौन कौन से विषय ऊपर से नीचे भेजे ही इसलिए जाते हैं कि दिमाग़ों में असली सवाल न उगें। ये ताक़तें जानती हैं कि भारतीय मानस तार्किकता से नहीं वरन सहज भावनाओं से प्रेरित होता है और उसकी कोमल भावनाओं को कब कौन सी दिशा देनी है , वे जानते हैं । सच कहूँ तो मैं इस रिया चक्रवर्ती का शुक्रगुज़ार हूँ । यदि वह परिदृश्य में आकर रिक्त जगह नहीं भरती तो सर्वशक्तिमान ताक़तों को न जाने कौन कौन से नए विषय करने पड़ते । यह सोच कर भी मन डरता है कि ये विषय क्या हो सकते थे ? पुराना अनुभव तो यही कहता है कि कुछ न कुछ हिंदू-मुस्लिम अथवा मंदिर-मस्जिद मार्का ही होता । अब इस हिसाब से तो मेरा रिया चक्रव्रती को धन्यवाद कहना बनता है कि सारी मुसीबतें उसने ख़ुद झेल कर पूरे मुल्क को किसी बड़ी ख़ुराफ़ात से बचा लिया । शुक्रिया रिया चक्रवर्ती ।