विश्वसनीयता का सवाल

रवि अरोड़ा
हाल ही में अपने एक मुस्लिम मित्र की मेहमान नवाज़ी का लुत्फ उठाने का मौका मिला। मुस्लिम बहुल इलाके कैला भट्टा में रहने वाले यह मित्र सामाजिक और राजनीतिक रूप से बेहद सक्रिय हैं और क्षेत्र में होने वाले हर कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं । धार्मिक आधार पर समाज में हो रहे बंटवारे पर अपना दर्द सांझा करते हुए उन्होंने एक ऐसी बात बताई जिसे सुनकर मैं भी हैरत में पड़ गया। मित्र ने बताया कि सांप्रदायिक सौहार्द को हर बार की तरह होने वाले ईद मिलन समारोह में इस बार कोई हिंदू नेता नहीं पहुंचा । जबकि इससे पूर्व हर दल के नेता ऐसे कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते आए हैं । बता दूं कि आज़ादी के बाद से ही प्रशासन के सहयोग से क्षेत्र में ऐसे समारोह आयोजित होते हैं और हिंदूवादी दल हों या मुस्लिम परस्त, सेकुलर हों या विशुद्ध जातिवादी सभी पार्टियां अपनी नुमाइंदगी जोरदार तरीके से इसमें करती रही हैं । सपा, बसपा और कांग्रेस जैसे दलों के नेता वोटों की लहलहाती फसल देख कर यहां आते हैं तो भाजपा नेता इसलिए हाजिरी भरते थे कि ऐसा ना करने पर उन्हें कहीं सांप्रदायिक ना समझ लिया जाए । लेकिन हाल ही में गुजरी ईद पर यह औपचारिकताएं भी धाराशायी हो गईं ।

मित्र की बात की तस्दीक को थोड़ी बहुत खैर खबर ली तो बात भी हैरान कुन ही निकली। दरअसल गाज़ियाबाद विधान सभा क्षेत्र जिसके तहत यह मुस्लिम इलाका आता है, वहां 70 बूथ हैं। हरबार की तरह इसबार के विधानसभा चुनावों में भी सभी दलों ने अच्छा खासा खर्चा कर सभी बूथों पर अपने बस्ते लगाए थे मगर इलाके का सारा वोट इकतरफा समाजवादी पार्टी के ही खाते में गया । समाजवादी पार्टी ने इस बार एक ऐसे व्यक्ति विशाल वर्मा को टिकिट दिया जिसे ना चुनाव से पहले कोई जानता था और ना बाद में उसने अपनी सक्रियता दिखाई। करारी हार के बाद अब शायद वो सक्रिय राजनीति से किनारा भी कर चुके हैं अतः ईद मिलन में जाने की जरूरत उन्होंने नहीं समझी। कांग्रेस ने अपने दिवंगत नेता सुरेंद्र गोयल के पुत्र सुशांत गोयल को टिकिट दिया था । सुरेंद्र गोयल पालिका चेयरमैन, विधायक और सांसद सभी कुछ रहे और मुस्लिम इलाके में भी उनकी बहुत पूछ थी मगर मुस्लिमों ने सपा प्रेम में इस बार उनके पुत्र को टके सेर भी नहीं पूछा और उसकी जमानत जब्त करा दी। ऐसे में दुखीमना वे भी भला क्यों वहां जाते ? बसपा ने बागी भाजपाई केके शुक्ला पर दाव लगाया था जो हार के बाद घर वापसी की तैयारी में हैं सो उनकी भी ईद मिलन से दूरी रहस्य नहीं है। रहा सवाल एक लाख से अधिक वोटों से जीते भाजपा विधायक अतुल गर्ग का तो उन्हें दशकों से इलाके के छोटे बड़े तमाम निजी और सार्वजनिक कार्यक्रमों में शिरकत करने के बावजूद 70 बूथों से मात्र तीन सौ वोट मिले। साल 2017 में भी उन्हें मुस्लिमों के लगभग इतने ही वोट मिले थे । खास बात यह है कि भट्टे पर हुई उनकी चुनावी सभा में हजारों लोगों ने हिस्सा लिया था और भाजपा जिंदाबाद के नारे भी लगाए थे मगर वोट अतुल गर्ग को फिर भी नहीं दिए । वैसे इस इलाके में केके शुक्ला और सुशांत गोयल की सभाएं भी जोरदार हुई थीं मगर वोट नहीं मिले । यानी साथ होने का दिखावा तो खूब किया मगर किया वही जो मस्जिद से कहा गया । अब आप ही बताइए ईद मिलन में ना जाने वाले इन तमाम हिंदू नेताओं को ही सारा दोष कैसे दे दें ? पूरे पांच साल नेताओं से अपनी जूतियां उठवाने की चाह रखने वाले मतदाताओं को भी तो थोड़ी बहुत अपनी विश्वसनीयता साबित करनी पड़ेगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED POST

जो न हो सो कम

रवि अरोड़ाराजनीति में प्रहसन का दौर है। अपने मुल्क में ही नहीं पड़ोसी मुल्क में भी यही आलम है ।…

निठारी कांड का शर्मनाक अंत

रवि अरोड़ा29 दिसंबर 2006 की सुबह ग्यारह बजे मैं हिंदुस्तान अखबार के कार्यालय में अपने संवाददाताओं की नियमित बैठक ले…

भूखे पेट ही होगा भजन

रवि अरोड़ालीजिए अब आपकी झोली में एक और तीर्थ स्थान आ गया है। पिथौरागढ़ के जोलिंग कोंग में मोदी जी…

गंगा में तैरते हुए सवाल

रवि अरोड़ासुबह का वक्त था और मैं परिजनों समेत प्रयाग राज संगम पर एक बोट में सवार था । आसपास…