लंका में सभी बावन गज़ के
रवि अरोड़ा
मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह की एक चिट्ठी से आजकल बवाल मचा हुआ है । बक़ौल परमबीर महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने पुलिस को हर महीने 100 करोड़ रुपये इकट्ठा करने का टार्गेट दिया था । बेशक हमारे मुल्क में राजनीतिक भ्रष्टाचार कोई मुद्दा न हो मगर फिर भी ऐसी ख़बरों से थोड़ा-बहुत होहल्ला तो मचता ही है । सो मचा हुआ है । वैसे आप ही बताइये, सौ में से 98 नेताओं के चोर और बेईमान होने के बावजूद सज़ा पाने वालों की सूची लालू यादव और ओम प्रकाश चौटाला जैसे इक्का दुक्का नेताओं तक ही क्यों सिमटी हुई है ? इस ताज़ा मामले में भी बात बयानों से आगे बढ़ेगी, यदि आपको ऐसी उम्मीद है तो जनाब आप मुग़ालते में ही हैं। दशकों तक अख़बारों में क़लम घसीटने और राजनीति व राजनेताओं को नज़दीक से देखने के बावजूद मैं तो दावे से नहीं कह सकता कि फ़लाँ नेता दूध का धुला हुआ है । यहाँ तो ब्रह्मचारी वही है जो हिजड़ा है । नोट उसी ने नहीं छापे, जिन्हें मौक़ा नहीं मिला । हो सकता है कि मेरे इस दावे के जवाब में आप दो चार ईमानदार नेताओं के नाम गिना दें मगर हमारी राजनीति में उन जैसे और कितने हैं , यह आप नहीं बता पाएँगे ।
कल से कुछ क़िस्से याद आ रहे हैं । राजनीतिक अस्थिरता के दौर में ग़ाज़ियाबाद के उस सेठ की शक्ल याद आ रही है जिसके घर पर एक बड़े नेता ने विधायक ख़रीदने के लिये दो सौ करोड़ रुपये रखवाये थे । वह विधायक भी याद आ रहा है जिसे एमएलसी ही इस लिये बनाया गया था कि पार्टी का पैसे एक जिले से दूसरे जिले में भेजने के लिये लाल बत्ती वाली गाड़ी और सरकारी सुरक्षा का इंतज़ाम हो सके । यह जुगाड़ भी इसलिए करना पड़ा था कि पूरब के बाहुबली ने पार्टी का पाँच करोड़ रुपया सरेराह लूट लिया था और अपनी सरकार होते हुए भी दो नम्बर का यह पैसा लुटने की रिपोर्ट नहीं करा सके थे । साउथ का वह बिशन भी याद आ रहा है जो कई महीने दिल्ली में पड़ा रहा और पचास फ़ीसदी रिश्वत से कम पर कोई भी मंत्री उनकी सैंकड़ों करोड़ रुपये की विदेशी फ़ंडिंग को भारत लाने की अनुमति नहीं दिला सका था । हवाला कारोबारियों के बीच से आई वह ख़बर भी याद आ रही है कि पार्टी कोई भी हो नम्बर दो का पैसा विदेश भेजने का काम सात-आठ ख़ास लोगों को ही मिलता है ।
नॉएडा में इंडस्ट्रियल प्लॉट बाँटने का ठेका दशकों से पार्टी के विश्वसनीय नेता को ही मिलता रहा। आधा पैसा प्राधिकरण
का और आधा नेता जी का । नोटबंदी में एनसीआर में नेताओं की गाड़ियाँ घूमती थीं कि जिसे पैसे उधार चाहिये , बिना ब्याज के ले लो । शर्त यही है कि पैसे सौ करोड़ से कम नहीं देंगे और एक साल बाद नये नोटों में वापिस लेंगे । एनसीआर का कोई बड़ा बिल्डर नहीं बचा था, जिसने इस बहती गंगा में हाथ न धोया हो । एमएलए, एमपी, एमएलसी और राज्य सभा मेम्बरी का हर पार्टी का अपना रेट होता है और कोई इन बात को छुपाता भी नहीं है । क्या क्या गिनाऊँ, दिल्ली से छन छन कर ऐसी ऐसी ख़बरें आती हैं कि आँखें फटी की फटी रह जाती हैं । वे चेहरे जिन्हें हम अवतारी पुरुष समझते हैं , असलियत में वे उतने ही बड़े चोट्टे हैं । कोढ़ में खाज यह है कि अपनी इस लूट को वे पार्टी चलाने की मजबूरी बता देते हैं । ऊपर से कहते हैं की हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं । अब कोई इनसे पूछे कि इस चुनावी तंत्र में लोक आख़िर है कहाँ ? वैसे पूछे भी तो क़िससे ? लंका में तो सभी बावन गज के हैं ।