राम सेतु या हमारी अपरिपक्वता

रवि अरोड़ा
यह एक बार फिर साबित हो गया है कि हम एक अपरिपक्व मुल्क हैं। पूरे मुल्क को अपरिपक्व कहने पर यदि आपको एतराज हो तो अपने दावे में संशोधन करते हुए मैं कहना चाहूंगा कि हमारे तमाम राजनीति दल और उसके नेता अपरिपक्व हैं। अब यदि आपको इस पर भी एतराज़ है तो मुझे अपनी बात पर अड़ना पड़ेगा । अपने इस दावे को सही साबित करने के लिए मुझे उस राम सेतु पर बात करनी पड़ेगी जिसके बाबत अब स्वयं मोदी सरकार ने संसद में लिखित बयान दे दिया है कि राम सेतु के मानव निर्मित होने के कोई सबूत नहीं हैं। कमाल की बात देखिए इसी एडम ब्रिज अथवा राम सेतु को भगवान राम द्वारा लंका पर चढ़ाई के लिए बनाया पुल बता कर मनमोहन सिंह नीत यूपीए सरकार का भाजपाइयों ने अरसे तक जीना हराम किए रखा और इतनी अड़चने डालीं कि उसकी सेतु समुद्रम योजना सिरे ही नहीं चढ़ सकी। रोचक तथ्य यह भी है कि इस योजना से देश को अरबों रुपयों का लाभ होगा, यह सोच कर स्वयं भाजपा शिरोमणि अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने यह योजना 2004 में बनाई थी मगर इसका उद्घाटन मनमोहन सिंह की सरकार के कार्यकाल में हुआ तो भाजपा को हिंदुओं की धार्मिक आस्थाएं याद आ गईं। पिछले नौ सालों से फिर भाजपा की सरकार है और वह भी चाहती है सेतु समुद्रम योजना सिरे चढ़े मगर उसकी पुरानी राजनीतिक खुराफातें ही अब यह उसके गले में हड्डी बन गई हैं।
भारत में धनुषकोटि और श्रीलंका के उत्तर पश्चिम के बीच उभरी 48 किलोमीटर लंबी चूना पत्थर की रेंज के बीच से रास्ता बनाने का विचार सबसे पहले अंग्रेजों के दिमाग में साल 1860 में आया था। करोड़ों साल पुरानी इस रेंज के कारण भारत के पूर्वी और पश्चिमी तट के बीच का सफ़र पानी के जहाजों को श्रीलंका से घूम कर तय करना पड़ता है। पश्चिमी देशों ही नहीं बांग्लादेश और चीन के साथ व्यापार भी इस रेंज के कारण अधिक खर्चीला हो जाता है। यही सोच कर अटल बिहारी वाजपेई ने सेतु समुद्रम योजना बनाई। उस समय तो भाजपा ने इसे लेकर अपनी पीठ थपथपाई मगर जब सारा श्रेय मनमोहन सरकार के पाले में जाने लगा तो उसने तूफान खड़ा कर दिया । भाजपा, विश्व हिंदू परिषद ही नहीं उनकी मातृ संस्था आरएसएस भी मैदान में कूद पड़ी और इस योजना को हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं पर कुठाराघात बताने लगी। यह योजना सिरे चढ़ जाए तो दुनिया में स्वेज नहर और पनामा नहर जितनी महत्वपूर्ण हो जायेगी और भारत की झोली डॉलरों से भर जायेगी मगर ऐसा तब ही तो होगा जब हमारे नेता इसे करने दें।
यह पुल मानव निर्मित है तो बेशक इसका संरक्षण होना चाहिए। यदि इसके बीच से मार्ग निकालने से कोई प्राकृतिक नुकसान होता है, तब भी इससे छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए मगर यदि ऐसा कुछ भी नहीं है तो क्यों देश का नुकसान किया जा रहा है ? क्यों नहीं रेडियोमैट्रिक डेटिंग करा कर दूध का दूध और पानी का पानी कर लिया जाता ? क्या देश की तरक्की से जुड़े इस मामले को भी अयोध्या के राम जन्म भूमि विवाद जैसा बनाना जरूरी है ? वैसे क्या अब भी आपको लगता है कि हमारे नेता परिपक्व हैं ?

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