रात बेरात का खौफ

रवि अरोड़ा
शहर में एक संस्था है ज्योति सेवा न्यास । यह संस्था गांव देहात के मेधावी छात्रों को न केवल मुफ्त शिक्षा देती है अपितु अपने गुरुकुल में रखकर उनका लालन पालन भी करती है । इस संस्था ने हाल ही में एक काम और जोड़ा है और वह यह है कि संस्था के छात्र अपनी शिक्षा के साथ साथ उन अभिभावकों का भी ख्याल रखते हैं , जिनके बच्चे विदेशों में हैं और ये बूढ़े यहां अकेले रहते हैं । दरअसल संस्था के गुरुकुल में आए एक पति पत्नी ने एक दिन अपना डर व्यक्त किया कि रात बेरात उन्हें अगर कुछ हो गया तो किसी को पता भी नही चलेगा । कोई दुःख दर्द बांटने आए यह तो दूर की बात है । बस यही बात संस्था के संचालक आदरणीय महेश गोयल जी को कचोट गई और उन्होंने यह नई योजना शुरू की । इस गुरुकुल के छात्र अब ऐसे बुजुर्गों के यहां नियमित रूप से जाते हैं और फोन के माध्यम से भी उनके संपर्क में रहते हैं । दरअसल केंद्रीय गृह राज्यमंत्री ने हाल ही में संसद में बताया है कि पिछले पांच सालों में छह लाख से अधिक लोग भारतीय नागरिकता छोड़कर विदेशों में बस चुके हैं । यह खबर पढ़ते ही मुझे ऐसे माता पिता बहुत याद आए जिनके बच्चे तरक्की की चाह में विदेश चले गए और यहां अब बूढ़ों को पानी पूछने वाला भी कोई नहीं है ।

हालांकि भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों का यह सरकारी आंकड़ा भी आइस बर्ग ही है और सच्चाई यह है कि लगभग ढ़ाई करोड़ भारतीय विदेशों में रह रहे हैं । इनमें 1 करोड़ 34 लाख तो एनआरआई ही हैं । बेशक ये लोग एक मोटी रकम हर माह अपने परिवार को यहां भेजते हैं और देश को भी इनसे विदेशी मुद्रा मिलती है , मगर किस कीमत पर यह सवाल मौजू है । मुल्क में ब्रेन ड्रेन की समस्या कोई नई नही है मगर पता नहीं क्यों हाल ही के वर्षों में इसमें तेजी आई है । पढ़ाई के नाम पर विदेश जाने वाले युवाओं की संख्या में हर साल इजाफा हो रहा है और हर कोई बाहर जाकर सैटल होने का ख्वाब संजोए हुए है । कोरोना संकट के चलते एक साल तक हालात ठंडे रहे मगर अब इसमें पुनः अभूतपूर्व रूप से तेजी आ गई है । जानकार लोग आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कारणों के अतिरिक्त प्रदूषण भी इसकी एक बड़ी वजह मानते हैं । । मगर मेरे हिसाब से स्वयं माता पिता की अतिमहत्वाकांक्षा, पारिवारिक मूल्यों का ह्रास और जल्दी से जल्दी सब कुछ पा लेने की हवस भी बड़े कारण हैं । मैं अपनी बात करूं तो मेरे परिचितों में भी एक तिहाई से अधिक युवाओं ने इंग्लैड, अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया जैसे मुल्कों में वीजा एप्लाई किया हुआ है । उधर, सरकारी आंकड़ा भी कहता है कि हाल ही में साढ़े सात लाख युवा पढ़ाई के नाम पर विदेश चले गए हैं और अगले तीन सालों में यह संख्या बढ़ कर 18 लाख तक पहुंचने वाली है ।

खबर चर्चाओं में है कि ट्विटर ने अपना सीईओ भारतीय पराग अग्रवाल को बनाया है । माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, फिलिप्स, पेप्सी और पैनासोनिक जैसी बड़ी बड़ी कंपनियों में भी भारतीयों का जलवा है । जाहिर है कि ऐसी खबरें हमें गौरवान्वित भी करती हैं । अखबारों में आए दिन छपता रहता है कि पराग को इतनी सेलरी मिलती है और सुंदर पिचाई को इतनी । सत्य नडेला सालाना इतना कमाते हैं और अरविंद कृष्ण इतना । जाहिर है भारतीय युवाओं में ऐसी खबरें जोश ही भरती होंगी और कुछ कर गुजरने का जज्बा भी पैदा होता होगा । बेशक ऐसी खबरें मुझे भी उत्साहित करती हैं मगर मन तब उदास हो जाता है जब यहां अकेले रह रहे माता पिता कहते हैं कि यदि रात बेरात उन्हें कुछ हो गया तो क्या होगा ? यह भी कैसे भूल जाऊं कि कोरोना काल कई माता पिता के शव यहां फ्रिज में पड़े अपने बच्चों का इंतजार करते रहे मगर वे आ ही नही पाए ।

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