रफ़ाल, अम्बानी और बीरा मिस्त्री
रवि अरोड़ा
1992 में पहली बार कार ख़रीदी- मारुति 800 । दोस्तों ने ख़ूब समझाया कि मारुति के अधिकृत सर्विस स्टेशन से ही कार की सर्विस और मरम्मत कराना मगर पता नहीं क्यों मुझे अपने पड़ौस के एक मिस्त्री बीरा पर बहुत भरोसा था । कुछ महीने पहले ही मेरे कार्यालय के निकट उसने अपनी दुकान खोली थी । कार मरम्मत का उसे कितना तजुर्बा है यह तो मैं नहीं जानता था मगर मुझे इतना पता था कि मुझे नमस्ते वह बड़े प्यार से करता था । यही नहीं कार ख़रीदने की मुझे बधाई देने भी वह आया था । नतीजा अपने जीवन की पहली कार की मरम्मत का काम मैंने उसे ही सौंप दिया । कई महीने बाद मेरी समझ में आया कि बीरा अनाड़ी है और कार के बारे में उसे कुछ भी नहीं पता । धीरे धीरे यह बात औरों को भी पता चल गई । नतीजा साल भर बाद बीरा मिस्त्री की दुकान बंद हो गई और मुझे भी अपनी प्यारी कार कौड़ियों के दाम बेचनी पड़ी । ख़बरों की दुनिया के नए तूफ़ान राफ़ेल जहाज के देश में पहुँचने और एवीएशन की दुनिया के नए बीरा मिस्त्री अनिल अम्बानी का कार्यालय यस बैंक द्वारा अपने क़ब्ज़े में लेने के समाचारों के बीच आज मुझे अपना बीरा मिस्त्री बहुत याद आया ।
बीरा मिस्त्री से रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड के मालिक अनिल अम्बानी की तुलना हो सकता है कि आपको कुछ अजीब लगे मगर परिस्थितियाँ कुछ कुछ वैसी ही हैं । पिछले लोकसभा चुनाव में राफ़ेल हवाई जहाज की ख़रीद में घोटाले के आरोप लगाने वाले राहुल गांधी ने इस ख़रीद में अनिल अम्बानी की भूमिका पर भी ऊँगली उठाई थी । अनिल की उक्त कम्पनी राफ़ेल की निर्माता कम्पनी डसॉल्ट एविएशन की ऑफ़्सेट पार्टनर है और राफ़ेल के रखरखाव का तीस हज़ार करोड़ रुपए का ठेका अनिल अम्बानी की कम्पनी को ही मिला है । चुनाव ख़त्म होते ही राफ़ेल की ख़रीद और अनिल अम्बानी की उसमें भूमिका की ख़बरें भी ठंडे बस्ते में चली गईं मगर अब फिर से गड़े मुर्दे चलने लगे हैं । पाँच राफ़ेल जहान अंबाला में उतरने के बाद भारतीय मीडिया और ख़ास कर न्यूज़ चैनल्स ने जिस तरह का भौकाल बनाया है साबित किया जा रहा देश में कोई बड़ी क्रांति हुई है उससे और कुछ हो अथवा नहीं मगर पुराने सवाल ज़रूर सामने आन खड़े हुए हैं । एसा शायद नहीं भी होता मगर इसी बीच यह ख़बर भी आ गई कि देनदारी न चुकाने पर यस बैंक ने अनिल अम्बानी की तमाम कम्पनियों के मुंबई साँताक्रूज़ वाला मुख्यालय अपने क़ब्ज़े में ले लिया है । यस बैंक का अनिल की कम्पनियों पर दो हज़ार 892 करोड़ रुपया बक़ाया है । यही नहीं कम्पनी के साउथ मुंबई स्थित दो फ़्लैट भी बैंक ने अपने अधिपत्य में ले लिए हैं ।
हालाँकि यह सवाल पुराना है कि लगभग कंगाल हो चुके अनिल अम्बानी को इतना महत्वपूर्ण ठेका क्यों दिया गया मगर राफ़ेल की जिस तरह से आरतियाँ मीडिया में उतारी जा रही हैं उससे यह सवाल तो खड़ा होता ही है कि यह जहाज यदि इतना महत्वपूर्ण है तो उसके रखरखाव को लेकर लापरवाही क्यों ? सबको पता है कि अनिल अम्बानी की तमाम कम्पनियाँ दिवालिया हो चुकी हैं अथवा उनकी हिस्सेदारियाँ बिक चुकी हैं । उनकी कोई भी कम्पनी चल नहीं रही और कभी 45 अरब डॉलर का रहा उनका आर्थिक साम्राज्य अब लगभग डूब चुका है । कुछ माह पूर्व लंदन की एक अदालत में उन्होंने लिखित रूप से स्वीकार किया था कि उनके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है और इस समय उनकी नेट वर्थ शून्य है । अब एसे में यह सवाल तो उठना लाज़िमी है कि एसे व्यक्ति के ज़िम्मे उस राफ़ेल की देखभाल का काम क्यों लगाया जा रहा है जो किसी भी प्रकार से इसके योग्य नहीं । दुनिया भर में एसे संवेदनशील कामों के ठेके दिवालिया होने की कगार पर खड़ी कम्पनियों को नहीं दिए जाते मगर भारत में फिर भी मोदी सरकार की अनिल अम्बानी पर मेहरबानियाँ कम नहीं हो रहीं । आरोप शारोप तो मैं नहीं लगा रहा । मैं तो बस डर रहा हूँ कि कहीं मेरी तरह मोदी जी भी बीरू मिस्त्री के चक्कर में लुट न जायें ।