रंगों का धर्म और कटोरा
रवि अरोड़ा
शाहरुख खान की फिल्में न तो मैं पहले देखता था और न ही अब उसकी आगामी फ़िल्म पठान देखने का अपना कोई इरादा है । यह फिल्म फ्लॉप हो अथवा मोटी कमाई करे, इसका अपनी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। हां इस बात का जरूर पड़ता है कि समाज को भेड़ बकरियों की तरह ठेलने का प्रयास सुबह शाम क्यों किया जा रहा है ? जबरन ठेलने की कोशिशें राजनीति तक तो चलो फिर भी समझ आती हैं मगर अब पहनावे, खान पान और मनोरंजन के मामले में भी हांक लगाई जाने लगे तो कोफ्त होना स्वाभाविक है। कौन सी फ़िल्म कौन देखे और कौन नहीं यह खुद दर्शक पर क्यों नहीं छोड़ दिया जाता ? पठान फ़िल्म का गाना बेशरम रंग दो कौड़ी का भी नहीं है मगर उसके नाम पर जम कर बवाल किया जा रहा है। मंत्री संत्री जहरीले बयान दे रहे हैं तो उसके चेले चांटे धरने प्रदर्शन कर रहे हैं । कहीं फिल्म के बहिष्कार का अभियान चलाया जा रहा है तो कहीं धमकी दी जा रही है कि यह फ़िल्म लगी तो सिनेमा घर में आग लगा देंगे। पता नहीं कुछ लोगों की धार्मिक भावनाएं उनसे आगे आगे क्यों चलती हैं और गाहे बगाहे किसी न किसी शय से टकरा कर आहत हो ही जाती हैं ? माना भगवा रंग उन्हें प्रिय है मगर क्या उसका पेटेंट उनके पास है ? होना तो यह चाहिए रंगों के धर्म पर बात हो मगर इन्होंने तो रंगों को ही धर्म के हिसाब से आपस में बांट लिया है।
पता नहीं कैसा समाज हम बनाना चाहते हैं जहां भगवाधारी बलात्कार तो कर सकता है मगर कोई फिल्म अभिनेत्री भगवा कपड़े नहीं पहन सकती। देश में संन्यासियों के 13 अखाड़े हैं और लगभग सभी से जुड़े लाखों संन्यासी बाहरी वस्त्र ही नहीं लंगोट भी भगवा पहन सकते हैं मगर कोई फिल्मी हीरोइन इस रंग के छोटे कपड़े पहन ले तो हंगामा हो जाया है। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर 24 घंटे नंगई हो सकती है मगर सिनेमा में हो तो उन्हें तिलमिलाहट होती है। राजनीतिक दल पहले केवल युवाओं, महिलाओं, छात्रों, किसानों और मजदूरों के नाम पर सहयोगी संगठन चलाते थे मगर अब सारे काम सोशल मीडिया टीम के हवाले हैं। वहीं नेरेटिव सेट होते हैं और वहीं से उसे आगे बढ़ाया जाता है। यह बॉयकॉट गैंग उसी की कोई शाखा जान पड़ती है। जनता के दुःख सुख की कोई बात नहीं। बात होगी तो केवल धर्म और धार्मिक भावनाओं की । पता नहीं हम किसी देश में रह रहे हैं अथवा मन्दिर मस्जिद में ?
वैसे भगवा रंग तो बहाना है। असली बात तो यह है कि पठान फ़िल्म का विरोध इसलिए हो रहा है कि यह फिल्म शाहरुख खान की है । मुसलमान होने की सजा पहले उसके बेटे को ड्रग केस में फंसा कर देने का प्रयास किया गया और अब कह रहे हैं कि उसके हाथ में कटोरा थमा देंगे। यह गैंग नहीं जानता कि वो जिसका विरोध कर रहे हैं वह बॉलीवुड का ही नहीं दुनिया भर के सिनेमा का बादशाह है। दुनिया में ऐसे करोड़ों लोग हैं जो भारत को शाहरुख की वजह से ही जानते हैं। उसकी फिल्म पठान में ढाई सौ करोड़ रूपए लगे हैं तो रिलीज होने से पहले ही इस फिल्म ने अपने राइट्स बेच कर चार सौ करोड़ कमा लिए हैं। बेशक कोई जितनी मर्जी बकवास करे मगर बिना किसी फिल्म के भी शाहरुख खान ढाई सौ करोड़ रुपया सालाना कमाता है और पिछले साल आंकी गई उसकी संपत्ति छः हजार करोड़ से अधिक की थी । वैसे शाहरुख के हाथ में कटोरा पकड़वाने की मंशा रखने वाले यह पता करने का प्रयास क्यों नहीं करते कि देश में एक के बाद एक हो रही बेवकूफियों के चलते अब तक कितने करोड़ लोगों के हाथ में कटोरा आ चुका है ?