याद बाबा मरदाना की
रवि अरोड़ा
एक मित्र ने गुरुनानक देव और उनके दो परम सहयोगियों बाला और मरदाना की सैंकड़ों साल पुरानी उस पेंटिंग की आभासी प्रति मुझे आज भेजी जो हाल ही में लाहौर में सिख धर्म के 550वें जन्मदिवस पर हुए एक जलसे में प्रदर्शित की गई थी । अब बाबा नानक को कौन नहीं जानता मगर उनके पहले शिष्य, मित्र और परम सहयोगी भाई मरदाना के बाबत हमारी जानकरियाँ बेहद कम क्यों हैं ? क्या सिख इतिहास में उनकी भूमिका नहीं है ? कहीं एसा तो नहीं कि भाई मरदाना की इतिहासकारों और स्वयं हम लोगों ने इस वजह से उपेक्षा की हो कि वे मुस्लिम थे और बाद के दिनो में मुग़ल और मुस्लिम बादशाहों ने हमारे सिख गुरुओं पर बहुत ज़ुल्म किए ? मगर फिर भी ज़रा यह तो सोचिए कि उसी भाई मरदाना को कैसे भूला जा सकता है जिनके सहयोग और समर्पण के बिना नानक शायद गुरु नानक न कहलाते और उनकी बानी का प्रकाश भी शायद इतनी दूर दूर तक न फैलता ?
इतिहासकार बताते हैं कि भाई मरदाना जाति से मुस्लिम मिरासी थे । मिरासी पंजाब की वह जाति है जो गीत-संगीत के माध्यम से लोगों का मनोरंजन करके अपनी आजीविका जुटाती है । वैसे तो मिरास का मतलब विरासत होता है और अपने पूर्वजों की विरासत को संभाल कर रखने वाले ही मिरासी कहलाये मगर इस्लाम में संगीत को चूँकि अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता अतः मिरासी छोटी जाति मान लिए गए । ये मिरासी हिंदू, मुस्लिम और सिख तीनों में पाये जाते हैं । उधर, भाई मरदाना के नाम का भी बड़ा रोचक क़िस्सा है और यह नाम उन्हें स्वयं बाबा नानक ने दिया था । उन दिनो बच्चों को अकाल मौत से बचाने के लिए माँ बाप उनके बेहद अटपटे नाम रख देते ताकि बच्चे को किसी की नज़र ना लगे । इसलिए ही बाबा का नाम रखा गया मरजाना जिसे बाद में गुरु नानक ने नया शब्द दिया मरदाना । ख़ैर गुरुनानक के मन में जब देशाटन का ख़याल आया तो उन्होंने उम्र में अपने से बारह साल बड़े अपने मित्र मरदाना से साथ चलने का अनुरोध किया । भाई मरदाना रबाब बहुत अच्छी बजाते थे और अनेक रागों के भी जानकार थे । अपने एक अन्य मित्र भाई बाला को भी बाबा नानक ने साथ ले लिया और फिर उन तीनों ने चौबीस साल तक चलीं एक के बाद एक पाँच लम्बी यात्राएँ कीं जो सिख इतिहास में उदासियों के नाम से दर्ज हैं । सम्पूर्ण भारत वर्ष, अफगानिस्तान, फ़ारस और अरब तक यह यात्राएँ की गईं और इसी दौरान विभिन्न रागों पर आधारित अनेक महत्वपूर्ण बानियाँ सृजित हुईं जिनसे आजतक मानवता प्रकाशवान है ।अब मुझ जैसा सहज बुद्धि व्यक्ति इस महत्वपूर्ण कार्य में बाबा मरदाना और उनकी रबाब की भूमिका को कम करके कैसे आंक सकता है जिसकी तान पर बाबा नानक के मुख से सैकड़ों बाणियाँ दुनिया में आईं ।
भाई मरदाना ही क्यों मुस्लिम पीरों और फ़क़ीरों की एसी लम्बी शृंखला है जिनके बिना सिख इतिहास की कल्पना भी नहीं की जा सकती । गुरु ग्रंथ साहब में संत कबीर और बाबा फ़रीद की बानियाँ भी उतने ही मनोयोग से समाहित की गईं जितनी कि सिख गुरुओं की । गुरु नानक के पहले मुरीद हुए मुस्लिम संत राय बुलार । स्वर्ण मंदिर की नींव रखी साईं मियाँ मीर ने । गुरु गोविंद सिंह की पहली जीवनी लिखी अल्लाह यार खान ने । पंजाब वह हिस्सा जो अब पाकिस्तान कहलाता है और जहाँ गुरु नानक देव जी का जन्म और निधन हुआ वहाँ आज भी उन्हें नानक शाह और नानक पीर के नाम से याद किया जाता है । अब आप पूछ सकते हैं कि बाबा मरदाना के बहाने मैं आज सिख धर्म और उसमें मुस्लिमों की भूमिका का राग क्यों अलाप रहा हूँ । तो जनाब आपको बता दूँ कि इसके पीछे मेरा कोई ख़ास मक़सद नहीं है । मैं तो बस यूँही साम्प्रदायिकता से भरे इस ज़हरीले माहौल में बस पीछे मुड़ कर देख रहा हूँ । शायद कुछ सुहाना सा लगे ।