याद तो आयेगा यह जोहड़
रवि अरोड़ा
लगभग रोज ही राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 9 से गुजरना होता है। हापुड़ की तरफ जाते हुए घनी आबादी कल्लू गढ़ी राह में ही पड़ती है। पिछले लगभग तीस सालों से यहां राजमार्ग से सटा एक जोहड़ देखने की आंखें अभ्यस्त सी हो गईं थीं। आध्यात्मिक नगर पुलिस चौकी से बिलकुल सटे इस जोहड़ में आसपास की आबादी का दशकों में इतना कूड़ा फेंका गया कि जोहड़ धीरे धीरे दलदली भूमि में तब्दील हो गया। इस दलदल में जानवरों को फंसा हुआ खुद मैंने कई बार देखा है। अभी कुछ साल पहले ही पता नही रात के अंधेरे में कहां से कोई हिरण आया और उसमें फंस गया । हिरण को देखने को दिन भर मजमा लगा रहा था और बड़ी मशक्कत से उसे वहां से निकाला गया । यह पंक्तियां लिखते समय भी मैं इसी जोहड़ के पास से गुजर रहा हूं मगर आज यहां पूरी तरह कब्जा दिखाई पड़ रहा है और जोहड़ के एक कोने में चारदीवारी भी बनाई जा रही है। समझ नहीं आ रहा, यहां से तो हजारों लोग रोज गुजरते हैं, आसपास बड़ी आबादी भी है और सबसे खास बात एक दम बगल में पुलिस चौकी भी है। क्या किसी को भी दिखाई नहीं दे रहा कि यह क्या हो रहा है ? कोई बताए जरा कि रेवेन्यू रिकॉर्ड आखिर किस दिन के लिए संभाल कर रखे जाते हैं ?
भूजल स्तर बढ़ाने को तालाबों और जोहड़ों के संरक्षण को सर्वोच्च न्यायालय और एनजीटी ने अनेक लंबे चौड़े आदेश दे रखे हैं मगर जमीनी हालात जस के तस हैं। पर्यावरणविद सुशील राघव की एक याचिका पर एनजीटी ने सख्ती बरती तो गाजियाबाद ही नहीं प्रदेश भर में तालाबों के संरक्षण को अमृत सरोवर योजना बनाई गई । गाजियाबाद में सौ तालाबों में वर्षा का जल पहुंचाने, उसके सौंदर्यीकरण और उन्हें पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का काम भी प्रशासन ने अपने हाथ में लिया और दावा किया कि विगत 15 मार्च तक उसने 66 तालाबों का जीर्णोधार कर दिया है और गाजियाबाद का काम पूरे प्रदेश में अव्वल है। प्रशासनिक दावा यह भी है कि जनपद के 703 तालाब कब्जा मुक्त हैं। हालांकि प्रशासन ने बड़ी सफाई से यह तथ्य छुपा लिया है कि जनपद के लगभग चार सौ तालाबों पर पूरा कब्जा है और सैंकड़ों अन्य पर आंशिक कब्जा है। दरअसल तत्कालीन जिलाधिकारी ऋतु महेश्वरी ने छह साल पहले एनजीटी मे एक शपथ पत्र दाखिल कर इसकी पुष्टि की थी। उस समय उन्होंने ही लिखित रूप से स्वीकार किया कि जनपद में 1153 वाटर बॉडी हैं। हालांकि पर्यावरणविद बताते हैं कि असली संख्या कभी 1553 थी। इन तमाम तालाबों की कैसी देखभाल हो रही होगी, इसे समझने के लिए कल्लू गढ़ी की यह वाटर बॉडी ही काफी है।
लगभग पचास साल पहले सनातन धर्म इंटर कालेज में पढ़ते पैदल जाता था । रास्ते में चार तालाब दिखते थे । आज जहां नेहरू नगर और अशोक नगर हैं, वहां भी कभी तीन तालाब दिखते थे मगर धीरे धीरे इंसानी आबादी उन्हें खा गई । आज जिन तालाबों के जीर्णोद्धार का दावा हो रहा है, उन्हें भी प्राकृतिक रूप से जल संचय योग्य न बना कर ट्यूबवेलों से भरा जा रहा है। जाहिर है, आज नहीं तो कल ये नकली तालाब भी लुप्त होंगे। कुछ इसी तरह शहर से लुप्त हो चुके अनेक अन्य तालाब स्मृतियों में हैं। अब चाहूं या न चाहूं मगर कल्लू गढ़ी का यह जोहड़नुमा तालाब भी याद तो आया ही करेगा ।