मौसेरे भाई

रवि अरोड़ा

ख़बर मिली कि ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे से चोर सोलर पैनल , बैटरियाँ , लाइटें और लोहे का अन्य सामान चुरा कर ले गए । सच कहूँ तो सुन कर ज़रा भी हैरानी नहीं हुई । मुझे अच्छी तरह मालूम है कि हाल ही प्रधान मंत्री ने इस एक्सप्रेस वे का उद्घाटन नहीं किया होता तो मीडिया के लिए भी यह ख़बर नहीं होती और हम तक यह बात पहुँचती ही नहीं । जिस देश में पूरी-पूरी सड़क ही डकार ली जाती हो वहाँ चंद लाख रुपए के लोहा-लँगड़ की क्या बिसात । अब इसी बीच एक और ख़बर आई कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी अपने सरकारी बंगले में झाड़ू फेर गए और टोंटियाँ तक उखाड़ ले गए । एक बार फिर सच कहूँ तो इस ख़बर ने भी मन को बड़ी राहत दी । मैं पुनः आश्वस्त हुआ कि ऊपर से लेकर नीचे तक हम सभी भारतीय एक ही हैं । अमीर-ग़रीब , राजा-रंक अथवा छोटा बड़ा , कोई फ़र्क़ नहीं । जाति -धर्म का भी कोई बंधन नहीं । बहती गंगा में हाथ धोने को हम सभी एक जैसे ही लालायित हैं । हमारा एक ही सूत्र है- जो माल सरकारी उसकी मल्कियत हमारी ।

जिन दिनो अख़बारों में रिपोर्टिंग करता था तब हफ़्ते दस दिन में एक ख़बर लिखनी ही पड़ती थी कि फ़लाँ जगह पर चोर इतने मीटर हाई टेंशन तार काट कर ले गए । बेशक इससे हज़ारों घरों में कई कई दिन के लिए बिजली गुल हो जाती थी मगर ख़बर आम होने के कारण अख़बारों में इसे सिंगल कालम जगह ही मिलती थी । समय का अंतर देखिए कि छोटे होते होते एसी ख़बरें अब अख़बारों से ग़ायब ही हो गई हैं । एसा नहीं है कि हाई टेंशन तार अब काटे नहीं जाते होंगे मगर आए दिन एक ही ख़बर पढ़वा कर अख़बार वाले भी अपने पाठकों को कब तक बोर करें । काम कोई भी हो , बार-बार हो तो बोर करता ही है । अब चोरी चक़ारी भी कोई ख़बर है । बेशक साइकिल सवार देश में सबसे ज़्यादा हों मगर साइकिल चोरी की ख़बर कहीं छपती देखी है क्या आपने ? पुलिस भी कहाँ इसकी रिपोर्ट दर्ज करती है । व्यवस्था में ग़रीब आदमी का विश्वास अमीर से अधिक होता है सो साइकिल चोरी की रिपोर्ट लिखवाने कोई जाता भी नहीं । चेन झपटने की रपटें भी व्यवस्था में इसी विश्वास के चलते बहुत कम लिखी और लिखाई जा रही हैं । सरकारी माल को अपना माल मानने की हमारी पुरानी परम्परा पुरातन क्या कई दफ़ा सनातन ही लगती है । सरकारी ज़मीन हो या सरकारी सम्पत्ति उसे पिताजी की मान कर चलना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है । रेलगाड़ी से शौच का डिब्बे से लेकर सरकारी बैंकों के अरबों रुपए डकारने के मामले में हम सभी भारतीय का डीएनए एक सा ही तो है ।

एक दौर था जब राजनीति में ईमानदारी की बयार चलती थी और लोगबाग़ लाल बहादुर शास्त्री और राजेंद्र प्रसाद जैसों के क़िस्से नई पीढ़ी को सुना कर प्रेरणा देते थे । मगर अब प्रेरणा देने वाले लोग ही लालूवादी हो गए हैं । अब तो ईमानदार वही है , जो पकड़ा नहीं गया । पकड़े भी जाओ तो क्या फ़र्क़ पड़ता है । ईमानदारी की बातें लोगों को बोर करती हैं जबकि भ्रष्टाचार की ख़बरों में एक ग़ज़ब का आकर्षण है । अब आप ही बताइए अखिलेश यादव ने जिस शान से कहा है कि कोई टोंटी टूट गई है तो नई लगवा देंगे । उसके बाद भी क्या आपको लगता है कि हमारी हया कहीं घास चरने नहीं गई । बेशक अब कोई कहे कि जस राजा तस प्रजा मगर मुझे तो लगता है कि राजा प्रजा दोनो एक ही हैं । चलिए आप मौसेरे भाई कह लीजिए।

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