मोदी, अनंत अंबानी और आरिफ़ गुज्जर
मोदी, अनंत अंबानी और आरिफ़ गुज्जर
रवि अरोड़ा
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के जामनगर स्थित वन्तारा पशु बचाव एवं संरक्षण केंद्र का उद्घाटन करके आए हैं। इस अवसर पर उन्होंने वन्य पशुओं को अपने हाथों से खाना खिलाया और सिंह शावकों को बोतल से दूध भी पिलाया। वन्तारा को मुकेश अंबानी की जामनगर रिफाइनरी की भूमि पर विकसित किया गया है। मोदी जी के पशु प्रेम पर उनका पूरा भक्त समाज ‘ वारी जाऊं ‘ की मुद्रा में आ गया तो टीवी चैनल्स और समाचार पत्रों ने भी इसे देश के सबसे बड़े इवेंट जैसा प्रचार प्रसार दिया । पता नहीं यह मोदी जी के प्रति आसक्ति है अथवा पशुओं के प्रति प्रेम , या फिर मुकेश अंबानी का प्रभाव, कि देश के तमाम कथित बड़े लोगों ने भी सोशल मीडिया पर वन्तारा के कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए । वन्तारा पर बलिहारी जाने की एक से बढ़ कर एक पोस्ट करने वालों में हर वह आदमी शामिल था जो सत्ता के इर्द गिर्द रहना ही जीवन का उद्देश्य समझता है। सद्गुरू जग्गी वासुदेव, बड़े उद्योगपति आनंद महेंद्रा, सचिन तेंदुलकर, विराट कोहली, शाहरूख खान, दीपिका पादुकोण, रणवीर सिंह और करीना कपूर जैसे लोगों ने तो ‘ जब शेर से मिला बब्बर शेर ‘ सरीखी भाट परंपरा की पोस्ट भी साझा की । यकीनन मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी ने वन्तारा विकसित कर एक महत्वपूर्ण कार्य किया है। अपने बाप के पैसे को उड़ाने की बजाय उन्होंने वन्य पशुओं के बचाव एवं संरक्षण पर खर्चा किया और 43 किस्म के दो हजार से अधिक जानवरों को न केवल घर अपितु सभी किस्म के इलाज और सुविधाओं से सुसज्जित अस्पताल भी मुहैया कराया, जो यकीनन दुर्लभ है । मगर यहीं यह सवाल भी उठता है कि क्या यह सब नियम कानूनों के तहत हुआ है अथवा यह भी नियमों व कानून का कदम कदम पर मजाक बनाने वाली ‘ गुजरात लॉबी ‘ की एक और कहानी है ?
हम सभी जानते हैं कि हमारे देश में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 कितना सख्त है। इसके तहत मनुष्यों की तरह पशु पक्षियों को भी अनेक अधिकार दिए गए हैं। नियमों के तहत केवल 15 किस्म के पशु पक्षियों को ही हम पाल सकते हैं और शेष वन्य पशु पक्षियों की श्रेणी में आते हैं। इसी एक्ट की श्रेणी एक एवं दो में शामिल शेर, तेंदुआ, भालू, और गैंडा आदि को तो छूने अथवा भोजन कराना भी प्रतिबंधित है । धारा 2 (16 ) ( ख) के तहत बंदी बनाना तो खैर प्रतिबंधित है ही पालना भी कानूनन अपराध है। एक्ट की धारा 51 के तहत उल्लंघन करने पर आरोपी को पहली बार तीन साल और दूसरी बार पकड़े जाने पर सात साल की सजा का प्रावधान है । बेशक यह कानून वन्य जीवों के संरक्षण के लिए ही बनाए गए हैं और इसी एक्ट के तहत सालाना हजारों लोग जेल भी भेजे जाते हैं । जंगली जानवरों को पालने की तो बात छोड़िए कछुआ तक अपने घर के ऐक्वेरियम में रखने पर न जाने कितनी गिरफ्तारियां होती हैं। कई बार तो सच्चे पशु पक्षी प्रेमी भी इसकी जद में आ जाते हैं। अमेठी का आरिफ़ गुज्जर आज तक लोगों की स्मृतियों में है जिसे पुलिस ने एक सारस को पालने के कथित अपराध में गिरफ्तार कर लिया था । जबकि हकीकत यह थी कि यह सारस आरिफ़ को अपने खेत में घायल अवस्था में मिला था और कई दिन तक उसका इलाज करने और भोजन उपलब्ध कराने के कारण सारस को आरिफ़ से इतनी मोहब्बत हो गई थी कि वह सदा उसके साथ साथ ही रहने लगा था । वन विभाग ने इस सारस को जब्त कर कानपुर के चिड़िया घर में भेज दिया तो आरिफ़ के वियोग में उसने खाना पीना छोड़ दिया मगर इससे भी आरिफ़ का मुकदमा खत्म नहीं हुआ ।
मुझे नहीं मालूम कि गुजरात सरकार द्वारा रिफाइनरी के लिए दी गई 7500 एकड़ भूमि में से 3000 एकड़ में यह जंगल बनाना कितना नियमों के तहत है अथवा कितना इसके विपरीत ? मैं यह भी नहीं जानता कि मोदी जी द्वारा वन्य जीवों को कुछ खिलाना अथवा शावकों को दूध पिलाना अपराध की श्रेणी में आता है कि नहीं ? मुझे यह भी नहीं मालूम कि वन्य जीव के पैदा होने से लेकर मृत्यु तक जो अधिकार दिए गए हैं, उसका कितना पालन वन्तारा में हो रहा है । मुझे तो खुशी है कि देश के बड़े लोगों का पशुओं के प्रति यूं प्यार उमड़ रहा है। मुझे तो बस केवल एक बात का रंज है कि जानवरों के प्रति अपना प्यार जताने का अधिकार आम आदमियों को भी इसी प्रकार क्यों न मिले । क्यों उसे तोता अथवा कछुआ जैसे जीव पालने पर भी प्रताड़ित न होना पड़ता है। चलिए और कुछ नहीं तो कम से कम यह तो हो हमारी यह व्यवस्था आरिफ़ गुज्जर जैसे लोगों के प्रति सदाशयता बरते, जिनका पशु प्रेम किसी मोदी अथवा अंबानी से रत्ती भर भी कम नहीं है ।