मुबारक हुई ईद ए गुलाबी

मुबारक हुई ईद ए गुलाबी
रवि अरोड़ा
दो दिन से उत्तराखंड के चंबा में था। न जाने क्या सोच कर होली के दिन और वह भी सुबह के वक्त वहां से अपने शहर लौटने का निर्णय लिया। हालांकि यह आशंका भी थी कि होली के हुड़दंग के चलते पता नहीं कब तक पहुंचेंगे। मगर यह क्या ! सारा रास्ता सुनसान था और हुड़दंग तो क्या होली खेलने वाले भी बहुत कम दिखे। रंगी पुती युवाओं की जो थोड़ी बहुत टोलियां मिलीं भी तो उनमें वह उत्साह नजर नहीं आया , जिसके लिए होली जानी जाती है । रास्ते में अनेक शहर आए, मंदिर मस्जिद आए मगर कहीं कोई छोटी मोटी खुराफात होती भी नजर नहीं आई । उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से, जहां साम्प्रदायिकता का जहर सर्वाधिक उगला जाता है, होली के दिन गुजरते हुए किसी का मन आशंकित हो तो गलत भी क्या है। मगर सब कुछ सामान्य सा था । हमारी संस्कृति के सबसे बड़े त्योहारों में से एक होली को लेकर लोगों में इस कदर उदासीनता की कम से कम मुझे तो कतई उम्मीद नहीं थी। लोगों का होली से इस कदर दूरी बना लेने का कारण कहीं हमारी आज की राजनीति तो नहीं, जिसने होली के इर्द गिर्द आशंकाओं की इतनी मोटी परत लपेट दी थी कि लोग बाग घरों से ही नहीं निकले ? जो निकले उन्होंने भी वैसा कुछ नहीं किया जैसा करने के लिए पिछले कई दिनों से नेताओं और सोशल मीडिया के छद्म रण बांकुरों द्वारा उन्हें उकसाया जा रहा था ।
मेरी पैदाइश के बाद से अब तक ग्यारह बार होली और जुम्मा एक साथ पड़े हैं। कम से ऐसे सात मौके तो मेरे होश संभालने के बाद भी आए मगर ऐसी आशंकाएं कभी भी हवाओं में नहीं दिखीं, जैसी इस बार दरपेश हुईं । कभी मस्जिदों को तिरपाल से ढकने का मामला तो कभी किसी पुलिस अधिकारी का भड़काऊ बयान, कभी किसी सांसद की ‘ ऊपर पहुंचा दूंगा ‘ जैसी धमकी तो कभी औरंगजेब और उसकी मजार को चर्चाओं के केंद्र में लाकर माहौल बिगाड़ने की कोशिशें की गईं मगर विघ्न संतोषियों की एक भी चाल कामयाब नहीं हुई । अलबत्ता भय का वातावरण बनाने का असर यह हुआ कि होली का उत्साह ही हवा हो गया । ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की गई कि जैसे देश का मुस्लिम होली का विरोधी है और अपने ऊपर रंग पड़ते ही कुपित हो जाता है । यहां तक कहा गया कि जुम्मे की नमाज़ से होली में बाधा उत्पन्न होने का खतरा है वगैरह वगैरह। मगर हुआ क्या ? विरोध की कोई खबर सुनना तो दूर ऐसी खबरें ही सामने आईं कि नमाज पढ़ कर मस्जिद से लौटते रोजेदारों पर हिंदुओं ने पुष्प वर्षा की । अपनी बात करूं तो हर बार की तरह इस बार भी मेरे अधिकांश मुस्लिम दोस्तों ने होली की शुभकामनाएं मुझे भेजीं । अनेक मुस्लिम मित्रों ने तो होली खेलते हुई अपनी तस्वीरें भी साझा कीं।
सच बताऊं तो मुझे पूरी उम्मीद थी कि होली शांति पूर्ण तरीके से गुजर जाएगी। कोई जितना मर्जी बड़ा जहरीला नेता हो और सिर से पांव तक सांप्रदायिकता के रंग में रंगा हो मगर अपने दामन पर दंगे के दाग से तो वह भी बचना चाहेगा । पार्टी जितनी मर्जी सांप्रदायिक हो और अपनी भेड़ों को बाड़े में बंद रखने के लिए जितना मर्जी कौतुक करे मगर शासन चलाने के लिए कुछ कायदे कानून तो उन्हें भी मानने पड़ते हैं। प्रशासनिक हों अथवा पुलिस अधिकारी जितने मर्जी सत्ता के पिछलग्गू हों, मगर नौकरी तो उन्हें भी करनी है। सत्ता का कृपा पात्र बनने के लिए चाहे जितनी मर्जी बकवास करें अथवा हवा में गदा लहराएं मगर अशांति का पक्षधर कहलाने का जोखिम तो वे भी नहीं उठा सकते । रहा सवाल जनता जनार्दन का तो, उसने कब चाहा है कि अशांति हो । इस मुल्क की यही तो खूबसूरती है कि हिंदू हों या मुस्लिम, ईसाई हों अथवा सिख, सभी एक दूसरे के त्यौहारों में बढ़ चढ़ कर सदियों से हिस्सा ले रहे हैं। खुराफाती वर्ग जितना मर्जी झूठा इतिहास सोशल मीडिया के मार्फत लोगों के दिमाग में ठूसने की कोशिश करे मगर इस सत्य से मुंह चुराना लगभग असंभव है कि एक आध अपवाद को छोड़ कर तमाम मुस्लिम और मुगल शासकों के महलों में होली और दीपावली मनाए जाने के तथ्यों से इतिहास भरा पड़ा है। कितना सुखद आश्चर्य है कि मध्य हो अथवा आधुनिक काल, फिल्मी गीत हों अथवा लोकगीत होली से संबंधित जो जो रचना हमारी स्मृतियों में हैं, अधिकांश के रचयिता मुस्लिम ही हैं। होली पर नज़ीर अकबराबादी, अमीर खुसरो, बहादुर शाह जफर, रसखान, नवाब वाजिद अली शाह और मीर तकी मीर के कलाम क्या कभी भुलाए जा सकेंगे ? इस पावन त्यौहार को ‘ ईद ए गुलाबी ‘ और ‘ आब ए पाशी ‘ जैसे शब्द देने वाले बादशाह बेशक वक्त के साथ कहीं गुम हो गए , मगर उनकी दी रवायतें आसानी से कहीं जाने वाली हैं क्या ? हजारों सालों से जो समाज सुबह शाम सर्वे भवन्तु सुखिनः जपता हो, उससे कैसे ये मंद बुद्धि लोग किसी का दिल दुखाने की उम्मीद कर सकते हैं ? क्या ही अच्छा है कि होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस और गुरुपर्व जैसे अवसर हर महीने दो महीने में यह साबित करने आते ही रहते हैं कि यह मुल्क मोहब्बत के आटे से गूंथा है और इतना आसान नहीं है इसे जहरीला बनाना।

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