माया महा ठगनी

रवि अरोड़ा

अख़बार में पढ़ा कि कभी रेनबैक्सी ग्रुप के मालिक रहे मलविंदर सिंह ने राधा स्वामी सत्संग ब्यास वाले गुरुजी गुरिन्दर सिंह ढिल्लन पर जान से मारने की धमकी देने का मुकदमा दर्ज कराया है । मुक़दमे में मलविंदर सिंह ने अपने सगे भाई शिविंदर सिंह और बाबा के कुछ नज़दीकियों को भी नामज़द किया है । ख़बर पढ़ कर बड़ी हैरानी हुई । रेनबैक्सी ग़्रुप के पूर्व प्रमोटर और रेलीगेयर व फ़ोर्टिस जैसी हेल्थकेयर कम्पनी के कर्ताधर्ता इन भाईयों के तो राधा स्वामी डेरा प्रमुख से बहुत अच्छे सम्बंध थे । ये दोनो भाई बाबा गुरिन्दर के भांजे ही तो हैं , फिर एसा क्या हुआ जो नौबत यहाँ तक आ गई ? साल भर पहले मैं जब ब्यास गया था तब तक दोनो भाइयों का डेरे में ज़बरदस्त जलवा था । छोटे भाई शिविंदर सिंह तो डेरे में बाबा के बाद नम्बर दो की स्थिति में थे , फिर अचानक ये सब क्या हो गया ? तहक़ीक़ात करने बैठा तो फिर वही कहानी निकली जिसे पाँच सौ साल पहले कबीर ने बता दिया था- माया महा ठगनी हम जानी , तिरगुन फाँस लिए कर डोले बोले मधुर बानी ।

बुज़ुर्गों ने कभी बताया था कि रेनबैक्सी ग़्रुप के मालिक सरदार मोहन सिंह के सगे समधी थे डेरा ब्यास के तत्कालीन प्रमुख बाबा चरण सिंह । उनकी बेटी निम्मी से मोहन सिंह के बेटे परविंदर सिंह का विवाह हुआ था । अपनी मृत्यु से पहले बाबा चरण सिंह गद्दी अपने दामाद परविंदर सिंह को देना चाहते थे मगर अपने दोनो बेटों मलविंदर और शिविंदर की कम उम्र और बढ़ते व्यापार के चलते उन्होंने इससे इंकार कर दिया था । इस पर बाबा ने अपने भांजे गुरिन्दर सिंह को गद्दी सौंप दी । बाबा गुरिन्दर सिंह और दोनो भाईयों मलविंदर व शिविंदर में भी मामा भांजे से अधिक गुरु शिष्य के सम्बंध रहे । अख़बारों से पता चला कि अपनी कम्पनी रेनबैक्सी को वर्ष 2008 में एक जापानी कम्पनी के हाथों साढ़े नौ हज़ार करोड़ रुपये में बेचने के बाद दोनो भाइयों ने सन 2009-2011 में बाबा गुरिन्दर सिंह की कम्पनी को सत्ताईस सौ करोड़ रुपये दे दिए और बाबा ने वह सारी रक़म रीयल एस्टेट में लगाई , जहाँ मंदी आने पर सारा पैसा डूब गया । बचा पैसा भाइयों ने रेलीगेयर और फ़ोर्टिस हेल्थ केयर में लगाया और वहाँ भी पैसा बर्बाद हो गया । दस साल पहले जो भाई भारत के 92 नम्बर के रईस थे और उनके पास साढ़े नौ हज़ार करोड़ रुपये नक़द थे, अब सड़क पर हैं और एक दूसरे से सरेआम मार पिटाई कर रहे हैं । चलिए ये तो व्यापारी और दुनियावी लोग हैं और झगड़े-मनमुटाव दुनियादारी तथा घाटा-नफ़ा व्यापार का हिस्सा है मगर बाबा को क्या हुआ , वो क्यों ‘ दुकानदार ‘ बन बैठे ? क्या मोह माया का सारा ज्ञान भक्तों के लिए हैं और बाबा स्वयं उससे मुक्त हैं ?

जानकार बताते हैं कि बाबा की संस्था राधा स्वामी सत्संग ब्यास के देश भर में पाँच हज़ार आश्रम हैं । अकेले विदेशों में एक हज़ार आश्रम हैं और 92 देशों में उनका संघटन है । उनके भक्तों की संख्या पाँच करोड़ से अधिक और आर्थिक साम्राज्य पचास हज़ार करोड़ से अधिक का बताया जाता है । किसी भी शहर में चले जाओ मरून रंग की ईंटों पर सफ़ेद जाली वाली चारदिवारी आप को ज़रूर कहीं न कहीं दिख जाएगी । हिसाब लगाने बैठता हूँ तो ये तमाम लाखों एकड़ ज़मीन अरबों रुपयों की दिखाई पड़ती हैं । फिर एसा क्या हुआ जो बाबा और ज़मीनें ख़रीदने निकल पड़े और न केवल अपने बल्कि अपने भक्तों के भी पैसे डुबो दिए ? बाबा को प्रवचन करते मैं कई बार सुन चुका हूँ । हालाँकि उनका ज़ोर नाम जपने और गुरु भक्ति पर रहता है मगर गुरु ग्रंथ साहिब को उद्धरित करते हुए मोह माया की भी निंदा करते हैं और संग्रह के भी ख़िलाफ़ नज़र आते हैं । अपने भक्तों को सेवा के लिए जीवन समर्पित करने की सीख देते हुए स्वयं बाबा जी अब अपना लंबा चौड़ा आर्थिक साम्राज्य खड़ा कर कौन सी सेवा कर रहे हैं ? मुआफ़ करना बाबा जी बात कुछ हज़म नहीं हो रही । सच बताइये , क्या आप भी अन्य आधुनिक बाबाओं जैसे ही हैं ?

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