महामारी और छाया महामारी
रवि अरोड़ा
बहुत दिनो बाद एक वक़ील मित्र का आज फ़ोन आया । बातचीत में उन्होंने एक एसी बात बताई कि उसकी तस्दीक़ में ही सारा दिन निकल गया । वक़ील मित्र ने बताया कि लॉकडाउन के चलते घरेलू हिंसा के मामलों में ढाई गुना बढ़ोत्तरी हुई है और सौ में से सत्तर मामले आजकल वकीलों के पास एसे ही आ रहे हैं । इस बात की पुष्टि के लिए कई अन्य वकीलों को फ़ोन किया तो पता चला कि वाक़ई एसा ही है । हालाँकि यह तो मैं भी समझ रहा था कि लॉकडाउन के चलते लगभग पाँच महीने तक चौबीसों घंटे एक साथ रह कर अधिकांश पति-पत्नी ज़रूर लड़ पड़े होंगे मगर बात कोर्ट-कचहरी तक पहुँच रही होगी , एसी उम्मीद नहीं थी । सरकारी आँकड़े खंगाले तो पता चला कि लॉकडाउन से पहले भी अदालतों में पच्चीस-तीस फ़ीसदी मामले विवाह और घरेलू हिंसा से जुड़े ही होते थे मगर अब यह आँकड़ा सत्तर फ़ीसदी तक पहुँच गया है । अकेले मेरे शहर में नहीं वरन पूरे देश और दुनिया का भी यही सूरते हाल है । स्वयं संयुक्त राष्ट्र के अध्यक्ष ने माना है कि पिछड़े और विकासशील देशों में ही नहीं विकसित देशों में भी कोरोना संकट के दौरान घरेलू हिंसा के मामले दो गुना बढ़े हैं । चीन में तो यह आँकड़ा तीन गुना तक पहुँच गया है ।
पाँच साल पहले देश में एक सर्वे हुआ था और उसमें पाया गया था कि देश में तेतीस फ़ीसदी महिलाओं का उत्पीड़न होता है मगर केवल 14 फ़ीसदी मामले ही सामने आते हैं । बलात्कार के अधिकांश मामले तो लोकलाज के कारण छुपा ही लिये जाते हैं । यह सर्वे देश में घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2015 के बाद का है । यानि इस अधिनियम का भी विशेष लाभ महिलाओं को नहीं मिला । इससे उलट ख़ुराफ़ाती क़िस्म की महिलाओं द्वारा इस अधिनियम की आढ़ लेकर अपने पति और ससुरलियों के उत्पीड़न के भी मामले बहुतायत में सामने आ रहे हैं । शीर्ष अदालत के आदेश पर अब दहेज हेतु उत्पीड़न की सीधी रिपोर्ट पुलिस नहीं लिखती और मामले को एक जाँच से गुज़रना होता है । अतः मामले को संगीन बनाने के लिये दहेज हेतु उत्पीड़न की धारा 498 में हत्या के प्रयास की धारा 307 और बलात्कार की धारा 376 और जोड़ी जा रही है । पुलिस के पास लॉकडाउन में एसे मामले बहुतायत में पहुँचे हैं । पति और ससुरलियों द्वारा मारपीट के लिये सभी 37 धाराओं, गुज़ारा भत्ते के लिये धारा 125 और तलाक़ के लिए सेक्शन 13 व 13 बी के मामले तो लगभग हर वक़ील के चेंबर में आजकल रोज़ाना पहुँच रहे हैं ।
अभी तक कोरोना संकट को स्वास्थ्य और आर्थिक संकट की नज़र से ही देखा जा रहा मगर अब धीरे धीरे इसके और पहलू भी सामने आ रहे हैं । काम धंधे बंद होने, नौकरी छुटने अथवा कम तनख़्वाह मिलने और घर से काम करने के कारण अधिकांश परिवारों में अशांति है । संयुक्त परिवारों के बिखरने और काम काज के लिये अपने घरों से दूर बसे उन पति-पत्नी की हालत सर्वाधिक ख़स्ता है जहाँ पहले से ही खटपट रहती थी । घर के काम काज मे पतियों की टोकाटाक़ी, घर पर ही शराब के सेवन, ख़र्चों में कटौती और सामाजिक दायरे में उठ-बैठ ख़त्म होने से तो विवाद हो ही रहे हैं नई मुसीबत यह है कि स्मार्ट फ़ोनो के चलते पति-पत्नी के विवाहेत्तर सम्बंधों का भी ख़ुलासा हो रहा है । हर बात पर शक करने वाले पति-पत्नी तिल का ताड़ भी बना रहे हैं । पता नहीं आपको यह शब्द कितना उचित लगे मगर संयुक्त संयुक्त राष्ट्र के महिला विंग की अध्यक्षा की यह परिभाषा मुझे पूरी तरह सटीक जान पड़ती है कि इस महामारी की एक शेडो पेंडेंमिक यानि छाया महामारी भी है जो उन घरों में भी पहुँच चुकी है जहाँ कोरोना वायरस भी अभी नहीं पहुँचा ।