महामानव से कुछ सीखो ऋषि सुनक जी

रवि अरोड़ा
पता नहीं कैसी दुनिया है वो और पता नहीं कैसे लोग हैं। पुलिस ने प्रधान मंत्री का न केवल चालान कर दिया बल्कि पचास पाउंड का जुर्माना भी लगा दिया। वह भी इतनी सी बात पर कि प्रधानमंत्री ने चलती कार में पल भर को सीट बेल्ट हटा दी थी ? हद है, सरासर हद है। पता नहीं कैसा लोकतंत्र है ये ब्रिटेन और कैसे ही उसके प्रधानमंत्री हैं ऋषि सुनक ? लोकतंत्र में भला ऐसा भी होता है क्या ? हमारे यहां तो किसी पार्षद तक का चालान पुलिस नहीं कर सकती। पार्षद तो छोड़िए, सत्तारूढ़ दल का झंडा लगी गाड़ी को भी हाथ नहीं दे सकता कोई । वर्दी उतरवा दूंगा, जानता नहीं मैं कौन हूं जैसे ब्रह्म वाक्य कहने की भी जरूरत नहीं। नेता जी की कार आती देख कर पुलिस खुद ब खुद न केवल रास्ता दे देती है अपितु फालतू के यातायात से रास्ता खाली भी करवा देती है। सबसे हैरानकुन बात तो यह हुई कि स्वस्थ लोकतंत्र की परंपरा से खिलवाड़ करते हुए ऋषि सुनक ने अपनी गलती के लिए मुआफ़ी भी मांग ली । समझ नही आ रहा कि सीट बेल्ट न बांधने पर भी जब ऐसा करना पड़ा तो किसी बड़े मामले में क्या होता ?
प्रधानमंत्री का चालान कटने और उनके मुआफी मांगने की खबर जब से ब्रिटेन से आई है तब से मन बहुत विचलित है। क्या लोकतंत्र की सामान्य परिभाषा भी नहीं जानता वह देश जिसके शासन में कभी सूरज भी नहीं डूबता था ? हालांकि शुरुआती दौर में हम भी इतने ही असंस्कारी थे और कभी पुलिस अफसर किरण बेदी ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कार को नो पार्किंग जोन में खड़े होने पर क्रेन से उठवा दिया था, मगर बाद में हमें अपनी भूल का अहसास हो गया और अब ऐसी कोई मूर्खता करने की भी हम नहीं सोचते। हमें समझ में आ गया कि ये नेता नहीं राजा हैं और पूर्णत समर्थ हैं। बाबा तुलसीदास सैंकड़ों साल पहले यूं ही नहीं तागीद कर गए थे कि समरथ को नहीं दोष गुसाईं।
वैसे यह खयाली पुलाव है मगर फिर भी सोचता हूं कि यदि ब्रिटेन में नोटबंदी जैसी कोई मूर्खता होती और वहां भी सौ से अधिक लोग लाइन में लग कर मर जाते अथवा अचानक जीएसटी जैसी कोई चीज थोप पर महीनों के लिए काम धंधे बंद करा दिए जाते या फिर किसानों जैसे किसी धरने में सात सौ से अधिक लोग हलाक होते या बिना तैयारी के लॉकडाउन जैसी कोई आफत जनता के सिर पर थोपी होती तब क्या होता ? तब क्या वहां के प्रधानमंत्री की सात पुश्तों तक को मुआफी मांगनी पड़ती अथवा कोई सजा भुगतनी पड़ती ? शुक्र है कि हम ब्रिटेन जैसे बचकाने नहीं हैं और हमारे नेताओं को किसी भी बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देनी पड़ती। हमारा पूरा सिस्टम एक ही अलिखित संविधान पर चलता है और वह ये है कि कोई मरे कोई जीए, सुथरा घोल पताशे पीए।
अखबार बताते हैं कि फलां देश का प्रधानमंत्री साइकिल पर चलता है और फलां मुल्क का राष्ट्रपति अथवा प्रधानमंत्री इतने छोटे घर में रहता है। महंगाई पर काबू न पा सकने पर फलां देश के प्रधानमंत्री ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और फलां फलां को खुद उसकी पार्टी ने हटा दिया । एक जांच के सिलसिले में अमेरिका की जांच एजेंसी एफबीआई ने अपने ही राष्ट्रपति जो बाइडन के घर छापा मार दिया। अमेरिका के ही पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप और ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री ऋषि सुनक जैसे लोग निजी हैसियत में भी बहुत पैसे वाले हैं मगर अक्सर एक ही नीले सूट में दिखाई देते हैं। रशिया के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के पास भी शायद काले रंग का एक ही सूट है, जो हर जगह वे पहने दिखते हैं। हालांकि रशिया में तो लोकतंत्र भी नहीं है मगर फिर भी न जाने क्यों वहां के राष्ट्रपति को बार बार नए कपड़े पहनना जनता का अपमान लगता है ? तमाम अन्य मुल्कों की भी इसी तरह की कहानियां हैं। पता नहीं क्यों सारी दुनिया इतनी पिछड़ी हुई है और लोकतंत्र के रंग ढंग हमसे नहीं सीखती ? लगता है कि अपने विश्व गुरू बनने की कोशिशों को हमें और तेज करना होगा ताकि पूरी दुनिया का मार्ग दर्शन करते हुए उसे असली लोकतंत्र की एबीसीडी हम सिखा सकें। मित्रों, हौसला मत टूटने देना अपने महामानव का ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED POST

पैरोल, बेशर्मी और मौज

रवि अरोड़ानेता लोगों को अक्सर यह कहते सुना जाता है कि राजनीति में व्यक्ति की चमड़ी मोटी होनी चाहिए ।…

जो कृष्ण नहीं वह कौरव है

रवि अरोड़ाकम से कम मुझे तो अब पक्का यकीन हो चला है कि महाभारत वेदव्यास की कोरी कल्पना थी और…

पुष्प वर्षा के असली हकदार

रवि अरोड़ाचारों ओर बाढ़ जैसे हालात हैं और हर बार की तरह इस बार भी सिख कौम सेवा में जुटी…

शुक्रिया सीमा हैदर

रवि अरोड़ाप्रिय सीमा हैदर भाभी,खुश रहो। कृपया भाभी शब्द को अन्यथा मत लेना । तुम गरीब की जोरू हो इस…