मरवा दिया आपने मोदी जी
रवि अरोड़ा
मेरी किसी ग़लती पर माँ जब भी नाराज़ होती हैं तो मुझे कहती हैं- तुझमें जोश है , होश नहीं है । बेहद बूढ़ी हो चुकी मेरी माँ को देश-दुनिया की कोई ख़बर नहीं रहती वरना यही बात वह मोदी जी के बारे में भी कहतीं । यह भी हो सकता है कि कहते समय उनकी तल्ख़ी कुछ ज्यादा ही अधिक होती । मेरी माँ ही क्या आज करोड़ों लोग कुछ एसा ही सोच रहे हैं । एसा हो भी क्यों नहीं , मोदी जी के तमाम बड़े फ़ैसले यही तो साबित करते हैं कि कुछ भी नया करने से पहले वे आगे-पीछे नहीं देखते । अब कोरोना संकट को ही देख लीजिये । इस महामारी से निपटने को उन्होंने लॉक़डाउन का जो तीर चला वह बेशक कोरोना के लिए तुक्का साबित हुआ मगर ग़रीब आदमी के जीवन पर तो ब्रहमास्त्र बन कर ही गिरा । करोड़ों लोग सड़क पर आ गए , सैंकड़ों लोग सरकारी बेवक़ूफ़ी से मर गए और कोरोना बीमारी है कि दिन प्रतिदिन और विकराल रूप धारण करती जा रही है ।
कोरोना से निपटने को दुनिया के अनेक देशों ने लॉक़डाउन का सहारा लिया । देखा देखी मोदी जी भी आनन फ़ानन टीवी पर अवतरित हुए और उन्होंने 24 मार्च को इक्कीस दिनी लॉक़डाउन की घोषणा कर दी । उनका दावा था कि महाभारत का युद्ध 18 दिन में जीता गया और कोरोना के ख़िलाफ़ यह लड़ाई 21 में हम जीत लेंगे । लॉक़डाउन से पहले न राज्य सरकारों को विश्वास में लिया गया और न ही अर्थशास्त्रियों से विचार विमर्श किया गया । अब सत्ता के शीर्ष पर मोदी जी ने जो सिंहासन अपने लिए तैयार किया है वहाँ तक सलाहकारों की आवाज़ तो जाती ही नहीं । नतीजा उन्हें शायद किसी ने बताया ही नहीं कि कोरोना से तो पता नहीं जीतोगे अथवा नहीं मगर देश की अर्थव्यवस्था ज़रूर चौपट कर बैठोगे । किसी ने नहीं पूछा कि जिस देश की आधी आबादी के पास अगले दिन के राशन की व्यवस्था नहीं है , उनका क्या होगा ? करोड़ों लोग जो दूर दराज़ के शहरों में छोटे मोटे काम करते हैं वे कहीं सड़क पर तो नहीं आ जाएँगे ? मोदी जी को किसी ने नहीं बताया कि जिस देश में बीस करोड़ लोग झुग्गियाँ में रहते हैं और तमाम शहरों में सघन घनत्व वाली आबादियाँ हैं , वहाँ लॉक़ डाउन कैसे सम्भव है ? नतीजा वही हुआ जो होना था । लॉकडाउन फ़ेल हो गया और झेंप मिटाने को एक के बाद चार लॉक़डाउन लगाने पड़े मगर कोरोना फिर भी क़ाबू नहीं आया । कोरोना संकट से पार पाने के लिए प्रधानमंत्री ने जो नेशनल टास्क फ़ोर्स गठित की थी उसी के दो वैज्ञानिक सदस्यों ने भी स्वीकार कर लिया है कि लॉक़डाउन फ़्लॉप रहे । फ़ोर्स के सदस्य अब दबी ज़ुबान में यह भी कह रहे हैं कि लॉक़ डाउन बढ़ाते समय हमसे राय नहीं की गई । खिसियाई सरकार अब लॉक़डाउन सफल होने के दावे तो कर रही है मगर इस बात का कोई जवाब उसके पास नहीं कि तमाम देशों में मरीज़ों की संख्या घटने पर लॉक़डाउन में छूट दी गई मगर भारत में मरीज़ों की संख्या डेड लाख के क़रीब पहुँचने पर एसा क्यों किया जा रहा है ? मज़दूरों के मामले में निर्णय लेने में सवा महीना क्यों लगा , इसका भी जवाब नहीं दिया जा रहा ।
लॉक़डाउन जैसा कुछ पहली बार नहीं हुआ है । नोटबंदी और जीएसटी भी लॉक़डाउन ही थे । बेशक मोदी जी ज़बरदस्त राजनीतिज्ञ हैं और जनता की तोपों का मुँह कभी पाकिस्तान कभी मुस्लिमों तो कभी कांग्रेस-नेहरु की ओर मोड़ देने में सक्षम हैं । फ़िलवक़्त भी नेपाल और चीन की हरकतें उन्हें कुछ एसा ही अवसर प्रदान कर रही हैं मगर लगता नहीं कि मोदी जी ख़ाली पेटों को इस बार फिर से बहला पाएँगे । उस आम आदमी से तो शायद वे अब आँख भी न मिलायेंगे जो कहता फिर रहा है- मरवा दिया आपने मोदी जी ।