मनु शर्माओं की दुनिया
रवि अरोड़ा
लगभग आठ-दस पुरानी बात है । एक ख़बर के सिलसिले में मैं डासना ज़िला अधीक्षक के कमरे में बैठा था । वहाँ झक सफ़ेद खद्दरधारी एक नेता जी पहले से बैठे थे । जेल अधीक्षक से बातचीत का सिलसिला जब शुरू हुआ तो वे नेता जी भी बीच बीच में अपना अनुभव बताते रहे । चलते समय परिचय हुआ तो पता चला कि वे विधायक हैं और एक संगीन अपराध के चलते यहाँ जेल में बंद हैं । वीआइपी क़ैदियों की आवभगत जेल में होती ही है , इस लिए एमएलए को जेल अधीक्षक के साथ चाय-नाश्ता करते देख कर ज़रा भी आश्चर्य नहीं हुआ । यूँ भी देश भर की चौदह सौ जेलों में जो अस्पताल बने हैं वे क़ैदियों से अधिक इन वीवीआइपियों के आराम करने के ही तो काम आते हैं । आम क़ैदियों के परिजन बेशक पूरा दिन धक्के खाकर अपने आदमी से मुलाक़ात करें मगर ख़ास आदमियों के लिए एयर कंडीशनर लगी बैठक तो हर जगह होती ही है । ख़ास क़ैदी के लिए जेलों में क्या क्या सुविधाएँ मिलती हैं , इसपर चर्चा फिर कभी मगर आज की बात तो मुझे मनु शर्मा पर करनी है । वही मनु शर्मा जो जेसिका लाल हत्याकांड में तिहाड़ जेल में बंद था और केवल सत्रह साल की सज़ा के बाद ही उसे रिहा कर दिया गया । बताया गया कि अच्छे चाल चलन के कारण उसे रिहा किया गया है ।
जेल में मनु शर्मा को क्या क्या सुविधाएँ मिलती थीं , यह तो मुझे नहीं पता मगर इतना ज़रूर अख़बारों से पता चला है कि उम्र क़ैद पाये इस वीआईपी क़ैदी ने जब चाहा उसे परोल मिला और जब चाहा तब फ़रलो हासिल की । अव्वल तो 30 अप्रैल 1999 को हुई जेसिका की हत्या में उसे निचली अदालत ने बरी कर दिया था मगर मीडिया में ज़बर्दस्त तरीक़े से उछलने पर हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए उसे उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई जो कल वक़्त से पहले ही ख़त्म हो गई । यहाँ यह बता देना भी ज़रूरी है कि पिछले सवा साल से मनु शर्मा को ओपन जेल का सुख भी हासिल हो रहा था ।
मनु की रिहाई से बहुत से लोग हैरान होंगे मगर मुझे लगता है कि इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है । जब पूरा सिस्टम ही मनु शर्माओ का है तो यह रिहाई भला क्यों न होती । मनु के पिता विनोद शर्मा बहुत बड़े व्यवसाई हैं और कांग्रेस के बड़े नेता रह चुके हैं । राज्य सभा सदस्य रहे और हरियाणा व पंजाब दोनो राज्यों से विधायक चुने जा चुके हैं । मनु का भाई टीवी चैनल चलाता है और बड़े बड़े लोग इस परिवार का पानी भरते हैं । एतिहासिक रूप से दिल्ली सरकार का गृहमंत्री मनु की रिहाई की संस्तुति करता है और उपराज्यपाल उसे तुरंत स्वीकार भी कर लेता है । ख़ास बात यह कि मनु को जेल भिजवाने में बड़ी भूमिका अदा करने वाली जेसिका की बहन सबरीना लाल भी इसका विरोध नहीं करती तो भला इस रिहाई में हैरानी जैसा कुछ बचा ही क्या ?
हाँ यदि कोई हैरान होना ही चाहता है तो उसके लिये यह जानकारी उपलब्ध है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार देश में साढ़े चार लाख क़ैदी जेलों में बंद हैं और उनमे से 68 फ़ीसदी अंडर ट्रायल हैं । पच्चीस फ़ीसदी से अधिक छोटे मोटे अपराधों में बंद हैं और वर्षों से उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई । इन क़ैदियों में 75 फ़ीसदी एसे हैं जिन्हें एक साल से अधिक वहाँ हो गया है जबकि सज़ा होती तो अब तक छूट भी गये होते । ब्यूरो के अनुसार देश की जेलों में 55 फ़ीसदी क़ैदी दलित , मुस्लिम और आदिवासी हैं । ब्यूरो के अनुसार इनकी संख्या अधिक होने का कारण उनका अधिक संख्या में अपराधी होना नहीं है अपितु ज़मानत के पैसों और पैरवी के ख़र्च का इंतज़ाम न होने के कारण ये लोग जेलों में क़ैद हैं । उत्तर प्रदेश की 71 जेलों में जहाँ एक लाख से अधिक क़ैदी हैं वहाँ एसे ग़रीब क़ैदियों की संख्या सर्वाधिक है । लगभग एक हज़ार बच्चे भी सलाखों के पीछे हैं क्योंकि उनकी माँ वहाँ क़ैदी है । अनुभवी लोग कहते हैं कि न्याय ख़रीदा जाता है । मुझे उनकी बात पर यक़ीन नहीं होता क्योंकि न्याय तो होता ही अमीरों के लिये है । ग़रीब की क्या मजाल जो उसका नाम भी ले ।