भगवा वर्दी

रवि अरोड़ा

टीवी पर गुरबानी चल रही थी । चूँकि घर में माता-पिता समेत कई धार्मिक लोग हैं सो आवाज़ भी ऊँची थी । गुरु नानक देव का शबद कोई रागी गा रहा था- रे मन एसो कर सन्यासा । बन के सधन सभै कर समझाहू मन ही माहि उदासा । शबद में गुरु नानक अपने भक्तों को समझा रहे थे कि सन्यास कैसा होना चाहिए । उनके अनुसार सबका हित सोचने वाला, निरपेक्ष , कम खाने वाला , कम सोने वाला , दयावान , शालीन , संतोषी और बाहरी चोले के स्थान पर आंतरिक पहनावे पर ध्यान देने वाला ही सन्यासी है । थोड़ी बहुत गुरबानी मेरी समझ में भी आ ही जाती है सो पूरा शबद ग़ौर से सुना और उसकी कसौटी पर आसपास के माहौल को परखने की कोशिश करने लगा । अंग्रेज़ी का मुहावरा है ‘ द डेविल लिवस इन द डिटेल ‘ । यानि विस्तार में जाओ तो ग़लत पर नज़र पड़ ही जाती है । मैं भी विस्तार में गया तो हैरानी ही हुई कि आज बेशक मुल्क में करोड़ों भगवा धारी घूम रहे हों मगर नानक के नज़रिए से तो शायद एक भी सन्यासी ना होगा । अब तो भगवा वाले मौज काट रहे हैं और गृहस्थ से अधिक मोह-माया में रमें हैं । भगवा वर्दी पहने लोग मंत्री-मुख्यमंत्री बने हुए हैं । दर्जनों एमपी एमएलए हो गए । कई अपने गिरोह चला रहे हैं तो सैंकड़ों जेलों से अपने मठ संचालित कर रहे हैं । धर्म के नाम पर लोगों को ठगने वाले भगवा चोले वालों की गिरफ़्तारी की ख़बरें भी आए दिन अख़बारों में छपती हैं । कई आतंकवादी वारदातों में लिप्त पाए गए तो कई खुलेआम हथियार लेकर लम्बी लम्बी गाड़ियों में घूमते हैं और पाँच सितारा होटलों में ठहरते हैं । कई हज़ारों करोड़ के मालिक हैं तो कई व्यापारी ही बन गए हैं । एसे में आज के दौर के सन्यासियों को लेकर मन नानक से क्षमा माँगने को ही आतुर हो उठा ।

देश में भगवाधारी कितने हैं इसकी सही सही संख्या तो कोई नहीं बता सकता मगर ये हैं करोड़ों में , इसमें कोई संदेह नहीं । धार्मिक नगरों हरिद्वार , प्रयाग , काशी , मथुरा , अयोध्या व वृन्दावन जैसी जगहों पर जाओ तो लगता है कि देश में सन्यासी अधिक हैं और गृहस्थ कम । लगभग सभी सन्यासी भीख माँगते नज़र आते हैं । या यूँ कहिये कि अच्छी आमदनी के चक्कर में भिखारियों ने भी भगवा वर्दी धारण कर ली है । ज़ाहिर है कि अनेक अपराधी भी होंगे जिन्होंने पुलिस को चकमा देने को यह यूनिफ़ोर्म पहन ली है । घर से भागे और पलायन वादी लोग भी बड़ी संख्या में इस जमात में शामिल हो गए होंगे । कम लागत में अच्छी कमाई और ख़ासी हैसियत का इससे अच्छा कोई और रोज़गार देश में शायद हो भी नहीं सकता । बाल और दाढ़ी-मूँछ बढाने ,खड़ाऊँ पहनने, कमंडल थाम लेने और भगवा धारण करते ही कोई भी इस लायक हो सकता है कि लोग बाग़ उसके पाँव छुएँ और खाने-पीने का मुफ़्त में जुगाड़ करें ।

इस देश में वर्दी की अपनी महिमा है । खादी पहनते ही कोई आदमी नेता बन कर ख़ास हो जाता है तो ख़ाकी पहनते ही पुलिस बन कर ख़ौफ़ का कारण । फ़ौज की वर्दी की भी अपनी महिमा है मगर यह सब वर्दियाँ ज़्यादा पुरानी नहीं हैं । इस लिहाज़ से भगवा सब पर भारी है । मनीषियों ने हज़ारों साल पहले इसका चयन किया था । सूर्योदय और सूर्यास्त के इस रंग को अपनाने के अनेक कारण मनीषियों ने गिनाए । बताया गया कि भगवा रंग संयम , आत्म नियंत्रण और संकल्प का प्रतीक है । इसे मोक्ष के मार्ग पर चलने को कृतसंकल्प होने के प्रतीक के रूप में भी विकसित किया गया और हज़ारों साल तक ऋषि-मुनियों ने अपने वैराग्य , ज्ञान , तपस्या , त्याग और परमार्थ से इसकी एसी साख समाज में विकसित की कि भगवावस्त्र धारी को देखते ही आम हिंदुस्तानी के हाथ आज भी उसके चरणों की ओर झुक जाते हैं । मगर समाज में अपनी गहरी जड़ों के बावजूद अब इस चोले की साख भी ख़तरे में है । पहनने वालों की हरकतों से चोलों की साख गिर जाती है , खद्दर को इसके सबसे बड़े उदाहरण के रूप में पिछले सत्तर सालों में हमने देखा है । भगवा की प्रतिष्ठा भी नीचे आ रही है । यूँ भी यह दौर एसा है जब सभी संस्थाओं का क्षय हो रहा है तो एसे में भगवा वस्त्र भी कब तक अपनी प्रतिष्ठा बचा कर रख पाएगा ? इसे भी अपनी नज़रों से गिराने के अतिरिक्त समाज तो शायद और कुछ नहीं कर सकता मगर राजनीति ज़रूर कुछ कर सकती है । लेकिन वह एसा करे क्यों ? वही तो है जो इसकी प्रतिष्ठा का सर्वाधिक लाभ ले रही है । उसे तो हर उस जगह नाक रगड़नी है जहाँ वोटर हो । तो आइए हम भी एक और वर्दी के पतन के गवाह बनें ।

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