भक्त और भगवान के बीच पसरा दान पात्र

रवि अरोड़ा
बात काफी पुरानी है मगर बेहद रोचक है । कई साल पहले नगर के एक प्रसिद्ध गुरुद्वारे में शाम की अरदास के बाद बाबा जी की बीड़ यानी गुरु ग्रंथ साहेब को रात्रि विश्राम के लिए उनके शयन कक्ष में भजन कीर्तन के साथ ले जाया जा रहा था। नगर का एक विख्यात सिख श्रद्धालु जो नियमित रूप से माथा टेकने गुरुद्वारे आता था, उस दिन भी गुरुद्वारे पहुंचा मगर लेट हो गया था । बाबा जी को सिर पर रख कर गुरुद्वारे के पाठी, प्रबंध कमेटी के सदस्य और कुछ अन्य श्रद्धालु शयन के लिए ले जा रहे थे । श्रद्धालु ने जैसे तैसे अपनी श्रद्धा का इजहार किया । श्रद्धालु का यह भी नियम था कि वह प्रतिदिन गुरुद्वारे की गुल्लक में कुछ रुपए डालता था मगर आज तो गुरु के दर्शन ही गुरुद्वारे के बाहर हुए और वहां गुल्लक भला कहां से आती ? इस पर उस श्रद्धालु ने बाबा जी पर चंवर झुला रहे गुरुद्वारे के प्रधान के हाथ में ही बीस का नोट थमा दिया । इस पर झल्लाया प्रधान बोला कि जाओ और गोलक में डाल कर आओ। श्रद्धालु ने प्रति उत्तर में जो कहा वह आज भी नगर की सिख बिरादरी में किसी चुटकुले सा हंसी का बायस है। श्रद्धालु बोला कि गोलक में डालूं या आपको दूं, बात तो एक ही है। पैसे जाने तो आपकी जेब में ही हैं।

इतना पुराना किस्सा आज सुनाए जाने की वजह पूछी जा सकती है। दरअसल सुबह हाथ में खबर थी कि केदारनाथ मंदिर में सवा अरब रुपए का सोना पीतल बन गया और मन में उपकार फिल्म का गाना बज उठा- कसमें वादे ..देते हैं भगवान को धोखा इंसा को क्या छोड़ेंगे । हालांकि बाद में तहकीकात की तो पता चला कि सोना सवा अरब का नहीं मात्र 14 करोड़ का था मगर 14 करोड़ भी क्या कम होते हैं ? आम मंदिरों में तो यह सब होता ही है मगर देश के सबसे विख्यात तीर्थ स्थल पर ऐसा हुआ ? वह तीर्थ स्थल जिसमें प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद मोदी जी भी छह बार जा चुके हैं ? कमाल की बात है कि हेराफेरी का आरोप लगाने वाले लोग भी मंदिर के पुरोहित हैं और अब जो इन खबरों का खण्डन कर रहे हैं, वे भी मंदिर समिति के ही सदस्य हैं। मंदिर परिसर में सोने का कोई घोटाला हुआ है अथवा नहीं, यह तो जांच का विषय है ( हालांकि कोई जांच वांच नहीं होगी यह हम सबको पता है ) । अपना विषय तो यह है कि ऐसी खबरों पर हम अविश्वास से क्यों नहीं भरते ? हमें क्यों नहीं लगता कि यह खबर झूठी भी हो सकती है, मंदिर में भला ऐसा कैसे हो सकता है ? क्या इसकी वजह यह तो नहीं है कि देश के छोटे बड़े धार्मिक स्थलों में चोरी की खबरें लगभग रोज ही हमें मिलती हैं और अनेक बार धार्मिक स्थल की प्रबंध कमेटी ही चोरी के पीछे होती है ? धर्म के नाम पर दुकानें चल रही हैं और इन लोगों के लिया हम ग्राहक से अधिक कुछ नहीं हैं । गुरुद्वारे का जो किस्सा मैने सुनाया, इससे मिलते जुलते अनेकों किस्से आपके पास भी होंगे । सबको पता है कि धार्मिक स्थलों की कमेटी के चुनावों में पानी की तरह पैसा बहाया जाता है । क्या इसकी मुख्य वजह भक्त और भगवान के बीच रखी बड़ी सी गुल्लक अथवा दान पात्र ही नहीं है ? पूजा स्थलों के पास लाखों करोड़ रुपए मृत पड़े हैं जबकि अपने भक्तों के सुख दुख पर उन्हें खर्च किया जा सकता है मगर ऐसा करना तो दूर गुल्लकों का आकार और बड़ा होता जा रहा है। वही गुल्लक जिसे नमस्कार हमें पहले करना होता है और अपने इष्ट को बाद में। पता नहीं आप क्या सोचते हैं मगर मुझे लगता है कि इस गुल्लक को किनारे किए बिना भक्त का भगवान से जुड़ाव टेड़ी खीर है ।

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