बोतल के जिन्न की वापसी की जुगत !

बोतल के जिन्न की वापसी की जुगत !
रवि अरोड़ा
मेरा बचपन कविनगर में बीता। आज जहां चौधरी भवन, आपका भवन, जैन मंदिर, आर्य समाज मंदिर और लाइंस क्लब द्वारा संचालित आंखों का अस्पताल है, यह सारी भूमि पहले इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट और बाद में जीडीए की मलकीयत थी । जिन दिनों कविनगर बसाया गया , उसी समय एक खास सोच के कुछ प्रभावी लोगों और एक बाबा ने मिलकर यहां की कई बीघा जमीन घेर कर एक मंदिर बना दिया गया । देखदेखी लगभग दस एकड़ इस जमीन पर और संप्रदायों के भी मंदिर बन गए । मंदिर की नजीर देकर कुछ जमीन का बकायदा एलॉटमेंट करा लिया गया तो बाकी धार्मिक स्थलों के बाबत किसी को कोई खबर नहीं है। इसी कॉलोनी में कई अन्य मन्दिर व गुरुद्वारे भी इसी तर्ज पर बना दिए गए । कविनगर के ही स्वयंभू शिव मंदिर की भी कुछ ऐसी ही कहानी है और एक प्रभावी नेता की पहल पर यहां रातों रात शिवलिंग निकाल कर लगभग एक एकड़ सरकारी भूमि पर मंदिर बना दिया गया । कई साल बाद जब शहर में दंगा हुआ तो एक अन्य प्रभावी नेता ने इसी कॉलोनी के ई ब्लॉक में दशकों पुरानी एक मजार, जिसकी भूमि जीडीए ने रिक्त छोड़ रखी थी, को तुड़वा कर एक भव्य मंदिर बनवा दिया । साल 1995 में आरडीसी रहने आया तो वहां भी जीडीए की बेशकीमती व्यावसायिक जमीन पर कब्जा कर एक शानदार मंदिर मेरे देखते ही देखते बन गया । यहां मैंने सिर्फ उन धार्मिक स्थलों के निर्माण संबंधी उदाहरण दिए हैं जिनके जन्म का मैं गवाह हूं। पूरे शहर, प्रदेश अथवा देश भर की बात करने योग्य आंकड़े तो शायद उस ईश्वर के पास भी नहीं होंगे , जिसके नाम पर जमीनों पर अवैध कब्जे न जाने कब से होते आए हैं। अन्यथा न लें तो कहना गलत न होगा कि धार्मिक स्थलों के नाम पर खुराफात करना हमारा आज का नहीं वरन् सदियों पुराना शगल है। मगर अब तो इस शगल की पराकाष्ठा ही हो गई है । अपने इस राष्ट्रीय शगल का जिक्र आज इसलिए कि अखबार में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का नाराज़गी भरा वह बयान पढ़ रहा हूं , जिसमें वे कह रहे हैं कि हिंदुओं का नेता बनने के लिए कुछ लोग रोज नए मंदिर का मुद्दा उठा रहे हैं, जो स्वीकार्य नहीं है। भागवत जी के बयान का स्वागत करने के बावजूद उसने यह सवाल तो किया ही जाना चाहिए कि भागवत जी आखिर बोतल से जिन्न बाहर निकाला ही किसने था ?
आजकल देश में मंदिर मस्जिद विवादों की बाढ़ सी आ गई है। सर्वोच्च्य न्यायालय द्वारा अयोध्या के राम मंदिर का विवाद समाप्त कराते ही काशी की ज्ञान वापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद का विवाद जोरशोर से उठा दिया गया । अब इस मामले में कोई अदालती फैसला आता इससे पहले ही दिल्ली के कुतुब मीनार, कर्नाटक के मंगलौर की जुम्मा मस्जिद, जौनपुर की अटाला मस्जिद, बदायूं की शम्सी और फतेहपुर सीकरी की जामा मस्जिद जैसे नए मुद्दे उठा दिए गए । दावा किया गया कि इन तमाम मस्जिदों के नीचे पुराने मंदिर दबे हुए हैं। और तो और अजमेर शरीफ की विश्वप्रसिद्ध दरगाह पर भी ऐसा दावा कर दिया गया । ये मामले तो वे हैं जो अदालत के द्वार तक पहुंच चुके हैं वरना तमाम मामलों का जिक्र करें तो फेयरिस्त न जाने कितनी लंबी होगी। जाहिर है कि रोज रोज नए मामले उठाए जाने से कुपित होकर ही मोहन भागवत ने इतना तीखा बयान दिया होगा । बेशक भागवत जी हिंदुओं की सबसे प्रभावी संस्था आरएसएस के सर्वोच्च्य नेता हैं मगर फिर भी भागवत जी का कद हिंदुओं में वैसा तो नहीं है जैसा ईसाइयत में पोप का होता है। देश में उनकी बातों को गंभीरता से अवश्य लिया भी जाता है मगर अपने समाज की इस प्रवृति का क्या करें कि नेताओं की जहर बुझी बातें तो उस पर असरकारी होती हैं मगर शांति ,सद्भावना और आपसी भाईचारे की बातें लोग एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देते हैं। क्या यह वही वक्त नहीं है जब धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक नेताओं को समझ आ जाना चाहिए कि आप लोग आग लगा तो सकते हैं मगर उसे बुझाना आपके वश में नहीं है ? बोतल से जिन्न तो आप बाहर निकाल सकते हैं मगर उसे दोबारा वापिस बोतल डालना आपके बूते में नहीं है। अब यदि जिन्न साम्प्रदायिकता का हो तो उसे वापिस बोतल में कैद करना आसान भी कहां होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED POST

भक्तों का मार्ग दर्शक मंडल

भक्तों का मार्ग दर्शक मंडलभगवान अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं। हमारे मोदी जी भी लेते हैं। भगवान विपरीत परिस्थित…

भारत पाक युद्ध के नायक प्रतिनायक

रवि अरोड़ाशुक्र है कि युद्ध विराम हो गया । इतिहास गवाह है कि युद्ध किसी मसले का हल नहीं वरन्…

खलनायक की तलाश

खलनायक की तलाशरवि अरोड़ापहलगाम में हुए आतंकी हमले से मन बेहद व्यथित है। गुस्सा, क्षोभ और बदले की भावना रगों…

माचिस थामे हाथ

माचिस थामे हाथरवि अरोड़ामुर्शिदाबाद में हुई हिंसा और आगजनी से मन व्यथित है। तीन हत्याएं हुईं और कई सौ घर…