बुरी बला तो नहीं था कुट्टू का आटा
रवि अरोड़ा
इन दिनों देश भर में नवरात्रि के त्यौहार की धूम है। यही वे दिन हैं जब मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए करोड़ों लोग उपवास रखते हैं। कोई एक दिन का व्रती है तो कोई दो दिन का । अनेक श्रद्धालु तो पूरे नौ दिन उपवास रखते हैं। कोई केवल फलाहार करता है तो कोई एक समय भोजन करता है। कोई नमक नहीं खाता तो कोई केवल सेंधा नमक का प्रयोग करता है। व्रती एक दिन का हो या पूरे नौ दिन का । अमीर हो अथवा गरीब मगर इस अवसर पर सबकी जरूरत बन जाता है कुट्टू का आटा। यह आटा क्या है ? कैसे बनता है ? क्यों उपवास में हम गेंहू, जौ, चना और मक्का जैसे अनाज की बजाय कुट्टू का आटा खाते हैं ? क्या फायदे और नुकसान हैं इसके , आमतौर पर हम लोग नहीं जानते मगर एक दूसरे की देखादेखी हर घर में व्रत के दौरान कुट्टू की रोटियां, हलवा, पकौड़ियां, पूरियां और अन्य पकवान इन दिनों बन रहे हैं। मगर व्रत के इसी रंग में भंग डालने को इस बार भी ऐसी ख़बरें सामने आ रही हैं कि फलां शहर में मिलावटी कुट्टू के आटे से इतने लोग अस्पताल पहुंच गए और फलां शहर में इतने लोग गंभीर रूप से बीमार हो गए । लेकिन मजाल है कि हमारे उत्साह पर इसका कोई असर होता हो । इस तरह की खबरें तो जैसे हम भूल जाने के लिए ही पढ़ते अथवा देखते हैं। चलिए हमारी तो मजबूरी है, विवशता है मगर वह सरकारी अमला इन दिनों कहां जाकर सो जाता है जिसकी जिम्मेदारी ही है हमें मिलावटखोरों से बचाना ? उधर, उत्तर प्रदेश सरकार भी एक ओर तो खाने को दूषित करने वालों की नकेल कसने को ढाबों और रेस्टोरेंट वालों को आदेश देती है कि उसके मालिक और मैनेजर के नाम का बोर्ड, सीसीटीवी कैमरे और मास्क आदि का इस्तेमाल किया जाए मगर त्यौहार के सीजन में जहरीला आटा खिला कर सैंकड़ों लोगों को अस्पताल पहुंचाने वालों के खिलाफ क्यों कुछ नहीं करती ?
कहने को तो देश में खाद्य सुरक्षा एवम मानक अधिनियम 2006 जैसा कड़ा कानून है और इसमें मिलावटखोरों के लिए सजा और भारी जुर्माने दोनों का भी प्रावधान है मगर मजाल है कि इसके तहत कभी किसी को सजा मिलती हो। बाजार में बिकने वाली खाने पीने की चीजों पर नजर रखने को केंद्र सरकार ने खाद्य सुरक्षा एवम मानक प्राधिकरण यानी एफएसएसएआई का भी गठन किया हुआ है मगर यह प्राधिकरण लाइसेंस बांटने के अलावा कुछ और भी कुछ करता है , यह किसी ने नहीं देखा । जानकारी हो कि मिलावटखोरी की शिकायत के एक मामले में केन्द्र सरकार सर्वोच्य न्यायालय में हलफनामा भी दे चुकी है कि मिलावट को लेकर देश का कानून बेहद सख़्त और पर्याप्त है मगर इस कानून का भय समाज में कहीं दिखता हो ,ऐसा दावा भी कोई नहीं कर सकता । हालात की इसी बेबसी का नतीजा है कि नवरात्रि के दिनों में मिलावटी और एक्सपायर हो चुके कुट्टू का आटा खाकर बीमार होने वालों की खबरों से अखबार भरे पड़े हैं।
कुट्टू के आटे के खरीदार जानते हैं कि बाज़ार में गेंहू आदि के आटे से चार गुना अधिक महंगा मिलता है कुट्टू का आटा। कहना न होगा कि इसमें मिलावट का यही असली कारण भी है। यह भी एक तथ्य है कि यह आटा छह महीने से अधिक पुराना हो जाए तो इसमें फंगल लग जाती है मगर नवरात्रि के दौरान बच गए आटे को महंगा होने के कारण दुकानदार फेंकते नहीं और अगले नवरात्रि तक के लिए संभाल लेते हैं। यही पुराना और खराब आटा जब व्रती के पेट में जाता है तो उसे फूड पॉयजनिंग हो जाती है।
जानकार बताते हैं कि बक व्हीट नामक वह फल जिसे पीस कर कुट्टू का आटा बनाया जाता है, बेशक आज देश के सभी पहाड़ी राज्यों में उगाया जाता है मगर मगर मूलतः है तो यह चीन से आया पौधा ही । भारत में इसकी खेती का इतिहास भी बहुत पुराना नहीं है । फिर क्यों हम दीवाने हो रहे हैं इसके ? जब यह आटा नहीं था , तब क्या उपवास आदि नहीं रखे जाते थे ? आज भी सिंगाड़े के आटे जैसे विकल्प मौजूद हैं तब भी क्यों मिलावटी कुट्टू खाकर हम अपनी जान खतरे में डाल रहे हैं ? क्षमा करें मेरे कहने का आशय कतई नहीं है कि कुट्टू का आटा कोई बुरी बला है। बेहद पौष्टिक इस आटे के बारे में ऐसी बात तो कही ही नहीं जा सकती मगर ऐसे माहौल में जब इस आटे से रोजाना सैंकड़ों लोग गंभीर रूप से बीमार हो रहे हों और सरकारों के कानों पर जूं भी न रेंग रही हो तो इस आटे का त्याग करने के अलावा और कोई सलाह दी भी जाए तो भला कैसे ?