बुड़बक का धन और गुणवान
रवि अरोड़ा
किस्सा आंखों देखा नहीं वरन मौके पर मौजूद एक दोस्त की जुबानी है। शहर में लगभग डेढ़ दर्जन सेठ लोगों की एक मित्र मंडली सुबह सुबह एक साथ सैर पर निकलती है। अधिकांश सेठ शेयर मार्केट के भी बड़े खिलाड़ी हैं मगर शेयरों की बात करते करते ही आज सुबह दो सेठ आपस में लड़ पड़े और बाकायदा गुत्थमगुत्था भी हो गए । हालांकि सेठों की परंपरा के अनुरूप अधिकांश भक्तमंडली के सदस्य हैं मगर फिर भी एक दो सेठ बागी किस्म के भी हैं। इन्हीं में से एक बागी सेठ आज पूरा बागी हो गया । दरअसल उसके पास अडानी एंटरप्राइज के काफी शेयर हैं और हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद इन शेयरों के दाम एक चौथाई रह गए और सेठ जी करोड़ों के नीचे आ गए । भक्त सेठ से यह गलती हो गई कि उसने कह दिया कि तुम्हे भी देख कर इन्वेस्ट करना चाहिए था । बस फिर क्या था बागी सेठ मां बहन के संबोधनों पर उतर आया । उसका एक ही तर्क था कि मैंने पैसा अडानी पर नहीं वरन तुम्हारे नेता नरेंद्र मोदी पर लगाया था । तुम्हारा नेता जब उसे दुनिया भर में ले लेकर घूमा और हवाई अड्डे, रेलवे, माइनिंग और बंदरगाह समेत सब कुछ उसके हवाले कर रहा था तो मुझे कोई आकाशवाणी होती कि सब कुछ हवा हवाई है ? बागी सेठ का तर्क था कि मैं तो इसी भुलेखे में रहा कि अडानी प्रधानमंत्री का दोस्त है और पहले की तरह आगे भी इसकी गुड्डी आसमान में रहेगी । उधर, देखना मुझे चाहिए था या नरेन्द्र मोदी को ? बागी के इस सवाल से भक्त सेठ भी तिलमिलाया हुआ था ।
चूंकि बागी सेठ से अपने भी अच्छे संबंध हैं अतः हालचाल जानने को मैंने उन्हें फोन कर डाला । मेरे सामने भी उन्होंने वही सब तर्क दोहराए । बकौल उनके विदेश में प्रधानमंत्री जिस होटल में ठहरते, गौतम अडानी भी उसी में ठहरता था । दोनो एक ही जहाज में घूमते थे और जिस जिस देश में प्रधान मंत्री गए वहीं अडानी ने साथ जाकर व्यापारिक सौदे किए । देश के भी तमाम क्षेत्रों में भी टाटा, बिरला और अंबानी जैसों धुरंधरों को छोड़कर अडानी को ही आगे बढ़ाया जा रहा था । साल 2013 में मोदी जी को प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करते समय अडानी की नेट वर्थ 51 हजार करोड़ थी मगर उनके प्रधान मंत्री बनने तक ही उनके इस परम मित्र की वर्थ सवा लाख करोड़ हो गई । साल 2019 में यह बढ़ कर दो लाख करोड़ हो गई और 2021 में आठ लाख करोड़ तक पहुंच गई । ताजा घटनाक्रम होने से पहले उनकी वर्थ बीस लाख करोड़ को भी पार कर गई और जिस अडानी को 2014 से पहले कोई जानता भी नहीं था, वह दुनिया का तीसरा बड़ा रईस बन गया । चौंकाने वाली बात यह भी थी कि कोरोना काल में जब दुनिया के सभी दस बडे़ रईस अपनी सम्पत्ति का बड़ा हिस्सा खो रहे थे उस समय भी अडानी की वर्थ कुलांचें भर रही थी। दुनिया की सभी कंपनियां खरामा खरामा चल रही थीं मगर अडानी ने आठ साल में ही अपनी वर्थ 49 गुना बढ़ा ली। बकौल सेठ हम इन्वेस्टर हैं और हमें तेज दौड़ने वाले घोड़े पर ही पैसा लगाना पड़ता है मगर घोड़े की हारी बीमारी देखना हमारा नहीं सरकार का काम होता है। सेठ अडानी का अर्थशास्त्र और मोदी जी का राजनीति शास्त्र बांच रहा था और मैं चुपचाप सुन रहा था । अपना पूरा दुखड़ा रोने के बाद सेठ ने मुझसे भी पूछ डाला कि बताओ अडानी की कम्पनी में इन्वेस्ट करके मैंने क्या गलती की ? बकौल उसके हम लोग तो सरकार व सेबी, ईडी जैसे उसके विभागों पर भरोसा करके चलते हैं। हमें कैसे पता चलता कि प्रधानमंत्री का खासम खास धोखाधड़ी कर रहा है और हमारा खाया पिया सब वापिस निकाल लिया जायेगा ? पैसे गंवाने से अधिक सेठ को इस बात का दुख था कि प्रधानमंत्री अब क्यों मुंह में दही जमा कर बैठे हैं और कुछ बोलते क्यों नहीं ? सेठ की दारुण गाथा सुन कर इच्छा हुई कि उसे मश्हूर बिहारी कहावत सुना दूं मगर कह नहीं पाया । चलिए आप ही सुन लीजिए- बुड़बक के धन में गुणवान का हिस्सा ।