बिन बुलाया मेहमान

रवि अरोड़ा

रात में घर की छत पर टहल रहा था । चाँद की रौशनी में आसपास के कई घरों की पानी की काली टंकियाँ चमक रही थीं और लगभग हर हर टंकी के पास एक-दो छोटे-बड़े पौधे नज़र आ रहे थे । ग़ौर से देखा तो पता चला कि पीपल है । बड़ी हैरानी हुई कि इतनी ऊँचाई पर पीपल उगा कैसे ? वह भी एसी जगह जहाँ ना मिट्टी है और न ही खाद-पानी ? आख़िर पीपल का बीज आया कहाँ से और बस ज़रा सी नमी में रोपित कैसे हो गया ? तभी याद आया दिल्ली पंजाबी बाग़ शमशान घाट के बाहर बनी तीस फ़ुट ऊँची भगवान शिव की मूर्ति के पास भी तो मैंने एक बार यह दृश्य देखा था । वहाँ तो पीपल का पौधा पत्थर की दरारों में ही पनपा हुआ था । आख़िर एसे क्यों होता है कि घर की दीवारों में , मुँडेरों पर और यहाँ तक कि कंकरीट की छतों पर भी पीपल और कभी कभी बरगद अथवा गुलेर के पौधे उग आते हैं ? कोई अन्य पौधा अथवा फूल एसे क्यों नहीं उगता ? क्या ये पौधे कुछ ढीठ क़िस्म के हैं अथवा इन अनचाहे पौधों के माध्यम से प्रकृति ही हमें कोई संदेश दे रही है ?

ख़यालों में चूँकि पीपल था सो कई जगह फ़ोन घुमा दिया और पीपल की पूरी जन्मपत्री ही बनाने बैठ गया । पता चला कि पीपल तो युगों से हमारा ही है । भागवत में भगवान कृष्ण कहते हैं कि वृक्षों में मैं अश्वत्थ यानि पीपल हूँ । स्कंध पुराण में कहा गया कि पीपल के मूल

में विष्णु , तने में केशव , शाखाओं में नारायण , पत्तों में श्रीहरि और फलों में देवता निवास करते हैं । गीता में पीपल को साक्षात शरीर ही माना गया । अनेक अन्य हिंदू धर्म ग्रन्थों में भी इसे देव वृक्ष कहा गया ।कहीं कहीं इस पर ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनो का वास बताया गया । आयुर्वेद इसके गुणों का बखान करते नहीं थकता और एक दर्जन से अधिक बीमारियों के इलाज में पीपल की पत्तियों , छाल , लकड़ी और फलों की बात करता है । इसके महत्व से हम युगों से परिचित हैं और मोहन जोदाड़ो की खुदाई में मिले सिक्कों पर भी यह नज़र आता है । हालाँकि मान्यता तो यह भी है कि यह पेड़ चौबीस घंटे ऑक्सीजन देता है मगर वैज्ञानिक इसे नहीं मानते । वैसे पीपल के क़ायल वैज्ञानिक भी है और इसे सर्वाधिक ऑक्सीजन देने वाले पेड़ और रात में भी कार्बन डाईअक्साइड अवशोषित करने वाले वृक्ष के रूप में तो इसे स्वीकार करते ही हैं । उनके अनुसार पेड़ों की पत्तियाँ ही ऑक्सीजन छोड़ती हैं और अधिक पत्तियों वाला होने के कारण यह सर्वाधिक ऑक्सीजन उत्पन्न करने वाले पेड़ों में से एक है । इस मामले में बरगद , गूलर और तुलसी भी इससे पीछे हैं । विडम्बना देखिए कि तुलसी को तो हम ससम्मान अपने घरों में ले आए और उसे पूजने भी लगे मगर पीपल को भूल गए ।

सयाने बताते हैं पीपल को हमसे दूर करने में अंधविश्वाओं का बहुत बड़ा हाथ रहा है । कह दिया गया कि विष्णु के कहने पर लक्ष्मी की बहन दरिद्र ने पीपल को अपना निवास बना लिया था। कहीं कह दिया गया कि पीपल पर शनिदेव का वास है । यही वजह है कि अस्थियों की मटकी को पीपल पर टाँगने की परम्परा शुरू हो गई । घर में पीपल को हम अशुभ मानने लगे और इससे दूर भागने लगे मगर अब यह क्या हो रहा है , हम पीपल को जितना अपने से दूर कर रहे हैं , वह उतना ही हमारे नज़दीक क्यों आ रहा है ? क्या प्रकृति इसके माध्यम से हमें कुछ कह रही है ? क्या सुपर इंटेलीजेंस जो यूँ तो स्त्री-पुरुषों की संख्या में संतुलन रखती है मगर अकाल अथवा किसी बड़ी प्राकृतिक विपदा के बाद प्रभावित क्षेत्र में आबादी बढ़ाने को स्त्रियों की जन्म दर बढ़ा देती है , वह कुछ कह रही है ? क्या यह संदेश शुद्ध ऑक्सीजन की होती कमी अथवा बढ़ते प्रदूषण को लेकर है ? क्या यही कारण तो नहीं कि पीपल बिन बुलाए मेहमान सा हमारे घरों में घुस रहा है ? यदि आपके घर में भी पीपल उग आया है तो उससे नाराज़ होने की बजाय इसबार यह राज़ उससे पूछ लीजिएगा । पूछिएगा ज़रूर ।

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