बिका बिका सा आदमी

रवि अरोड़ा
आज सुबह एक पुराने मित्र का फ़ोन आया और उसने पूछा कि क्या मैं किसी कार सेल-परचेज डीलर को जानता हूँ । इससे पहले कि मैं कुछ पूछता, वह स्वयं ही मन हल्का करने की गरज से अपनी समस्याओं का पिटारा खोलता चला गया । उसने बताया कि वर्क फ़्रोम होम के कारण उसे आजकल केवल आधी सेलरी ही मिल रही है । यूँ तो सरकार ने अगले महीने तक घर की ईएमआई जमा कराने की छूट दी हुई है मगर सितम्बर माह से तो किश्त भरनी ही पड़ेगी । बच्चों के स्कूल की फ़ीस लॉक़डाउन के बाद से नहीं दी मगर अब स्कूल से भी फ़ोन आ रहे हैं । यार दोस्तों की देखा-दिखाई पिछले साल होंडा सिटी कार एक निजी बैंक से फ़ाईनेंस करवाई थी , जिसकी तीन किश्तें टूटी हुई हैं। बैंक का हर चौथे दिन फ़ोन आ जाता है और कई चिट्ठियाँ भी वे भेज चुके हैं। इसलिए कार की किश्त से जान छुड़ाने को कार बेचना चाहता हूँ । मकान, बच्चों की फ़ीस और राशन तो ज़रूरी है मगर कार के बिना तो काम जैसे तैसे चल ही जाएगा । मित्र की समस्या उसकी अकेले की नहीं है यह मैं जानता हूँ । देश की लगभग पच्चीस करोड़ मध्यवर्गीय आबादी इसी से मिलती जुलती समस्याओं से आजकल जूझ रही है । कहीं आवश्यकता और कहीं कहीं झूठी शान को किश्तों पर ख़रीदी गई कारें ही इस कोरोना संकट में सबसे पहले साथ छोड़ रही हैं । मरता क्या न करता वाली स्थिति में बहुतायत में लोग बाग़ अपनी कार बेचने को डीलरों के यहाँ फ़ोन कर रहे हैं । हालात का जायज़ा लेने को मैंने भी आज कई कार डीलरों को फ़ोन किया और पाया कि हालात उम्मीद से अधिक ख़राब हैं । इस महामारी ने मध्यवर्ग को एसा तोड़ा है कि वह न तो किसी से कह पा रहा है और न ही अधिक दिनो तक अपने हालात छुपाने की स्थिति में है ।
मेरे शहर में लगभग चालीस कार डीलर हैं और अकेले राज नगर डिस्ट्रिक्ट सेंटर में बारह डीलर बैठे हैं जो पुरानी कारें बेचते ख़रीदते हैं । ये डीलर बताते है कि आजकल पुरानी कारें ख़रीदने वाले कम और बेचने वाले उससे कई गुना अधिक आ रहे हैं । दस साल से पुरानी कारें एनसीआर से बाहर बिकती थीं मगर कोरोना की वजह से बाहर से ग्राहक भी नहीं आ रहा, यह भी एक वजह है कि कारों के दाम आधे हो गए हैं । यूँ भी बिकवाली के दौर में ख़रीदारी भला कौन करेगा ? हर डीलर प्रत्येक महीने ने पंद्रह से बीस कारें बेच लेता था मगर अब बाज़ार आधा भी नहीं रहा । जो कारें बिक रही हैं उनकी क़ीमत भी डेड दो लाख से अधिक नहीं होती । लग्ज़री कारों को तो कोई पूछ ही नहीं रहा । मजबूरी में विक्रेता औने पौने दाम पर भी अपनी गाड़ी बेचने को राज़ी हो रहे हैं । एक डीलर ने बताया कि हाल ही में उसने 2017 मोडल की फ़ोर्चूनर कार का सौदा 15 लाख में कराया जबकि इससे पहले उसकी क़ीमत 27 लाख से कम न होती । एक डीलर बोला कि पहले पुरानी गाड़ियाँ टूर ट्रैव्लिंग वाले भी बहुतायत में ले कर टैक्सियों में चलाते थे । स्कूलों में भी बच्चों को लाने ले जाने हेतु पुरानी कारें ख़रीदी जाती थीं । नई कार ख़रीदने की हैसियत न रखने वाले लोग भी पुरानी कार ख़रीद कर अपनी मूँछें ऊँची कर लेते थे मगर अब राशन के भी लाले हैं तो सब कुछ बंद है और पुरानी कारों को कोई पूछ ही नहीं रहा । कार डीलर यूँ भी दुःखी हैं कि उन्होंने ब्याज पर पैसा लेकर जो गाड़ियाँ ख़रीदीं वे कारें खड़े खड़े ही आधी क़ीमत की हो गईं । फ़ाईनेंसरों का दबाव अलग से नींद उड़ाये हुए है ।
पुरानी कारों का सूरते हाल सिर्फ़ कारों का नहीं वरन यह उस मध्य वर्ग का भी है जो जो कभी अपनी तकलीफ़ किसी से कह नहीं पाता । यह तो एक बैरोमीटर है जो उस बीच के आदमी की कथा कहता है जो लोकलाज और झूठी शान में ही अपना पूरा जीवन काट देता है । यह देश का वही आदमी है जिसके नाम पर हम देश को सवा सौ करोड़ लोगों का बाज़ार कहते फिरते हैं । बेशक कोरोना संकट का यह दौर अस्थाई है और हालात बदलते ही चींटी की तरह दिन रात खटने वाला यह मध्यवर्गीय आदमी फिर खड़ा हो जाएगा तथा यक़ीनन अपने पुराने दिन भी पा लेगा मगर उसका मन फिर पता नहीं कभी जुड़ेगा कि नहीं । दरअसल अब जो उसकी कार बिक रही है यह केवल कार नहीं है । उसके सम्मान, सफलता और शिनाख्त की भी द्योतक थी । कहीं एसा न हो कि कार बिकने पर वह स्वयं को भी बिका बिका सा महसूस करे ।

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