बाबा नाम केवलम

रवि अरोड़ा

सामने चिल्ला रहा टीवी बलात्कारी बाबा गुरमीत राम रहीम की धज्जियाँ उड़ा रहा है । हाथ में पकड़ा हुआ अख़बार पंचकुला के ख़ौफ़नाक मंज़र की तस्वीरों से बार बार मेरी चाय का स्वाद कसैला कर रहा है । ध्यान हटाने को फ़ोन उठाता हूँ मगर वहाँ भी यही सब कुछ । सोशल मीडिया बाबा मीडिया ही बना पड़ा है । पिछले तीन रोज़ से दिन की शुरुआत कुछ एसे ही हो रही है । जिसे देखो वही बाबा की पोल खोलने पर उतारू है । बाबा के तमाम अपराध , ख़ुराफ़ातें और राजनीतिक गठजोड़ के क़िस्से दूसरों को बढ़ चढ़ कर बताने को हर कोई बेताब है । एसे पेश किया जा रहा है कि जैसे यह सब कुछ बाबा छुप छुपा कर अंजाम दे रहा था और उसका अब भंडाफोड़ हुआ है । कुछ जुझारू क़लमवीर राम रहीम के अतिरिक्त अन्य बाबाओं को भी लपेट रहे हैं। तो क्या अब हम मान लें कि देश में बाबागिरी का धंधा चौपट हो गया है ? क्या अब इन तमाम बाबाओं के दिन लद गए ? क्या अब और कोई बाबा बलात्कारी सामने नहीं आएगा ? क्या देश की सवा सौ करोड़ जनता को ईश्वर के इन बिचौलियों से मुक्ति मिल गई ? क्या सचमुच एसा होने जा रहा है ?

हमारे धर्म ने भी बड़ा लम्बा सफ़र तय कर लिया है । पहले निराकार प्रभु फ़िर प्रकृति , बाद में कुछ इष्ट देव , इसके बाद इष्ट की मूर्तियाँ और अब पिछले कुछ दशकों में ज़िंदा मूर्तियाँ यानि बाबा लोग । पता नहीं अब अगला पड़ाव क्या हो ? ख़ास बात यह है कि अब कोई भी बाबा ईश्वर की आराधना का मार्ग नहीं बताता वरन गुरु की महिमा का ही बखान करता है । धर्म ग्रंथों और पीर फ़क़ीरों की भी वही वाणी भक्तों को रटाई जाती है जिसने गुरु को ही ईश्वर का रूप बताया गया है । अब गुरु तो वह ख़ुद हैं ही सो साक्षात ईश्वर कहलाते हैं वे अब । अब जब ईश्वर हैं तो अपना अलग धर्म ही चला देते हैं । जिनमे इतनी कूवत नहीं वे अपना सम्प्रदाय अथवा समूह बना लेते हैं । हर समूह के अपने अपने नियम अपने अपने क़ानून क़ायदे । औरतों के लिए तो कुछ ख़ास ही नियम । शोरूम में भक्ति और सेवा और गोदाम में शक्ति और मेवा । पब्लिक भी बावली हुई जा रही है । उसे भी धर्म-वर्म से कुछ लेना देना नहीं । उसे तो बस अपनी समस्याओं से तुरंत निजात चाहिए । धर्म के चक्कर में पड़े तो वह कर्मों का चक्कर बता देगा । बाबा जी इंस्टेंट समाधान करते हैं । रेलवे स्टेशन पर रखी वज़न नापने वाली मशीन जैसे । सिक्का डालो , टिकिट बाहर । पब्लिक को देख कर नेता खिंचे चले आते हैं और नेताओं को देखकर धनपशु । इन दोनो को देखकर पुनः पब्लिक । एसा चक्का जिसका छोर कोई ढूँढ नहीं सकता । हर जाति का अपना अलग बाबा । हर गाँव शहर का अपना बाबा । सयाने कहते हैं कि पब्लिक को दुःख ही ना हो तो बाबाओं की दुकान ख़ाली हो जाए मगर एसा हो भी कैसे ? इसके लिए तो काम करना पड़ेगा । लोगों को पढ़ाना पड़ेगा । रोज़गार देना होगा , रोटी , कपड़ा , मकान और सस्ता इलाज देना पड़ेगा । अब इन सब चक्करों में कौन पड़े । इससे अच्छा बाबा जी को ही सीधा पकड़ लो ।

गुरु नानक कहते थे-सुनते पुनीत कहते पवित्र , सतग़ुर रेहा भरपूरे …मगर अब दुनिया बदल रही है । गुरु लोग गुरु घंटाल हो गए हैं । इन्हें सुन कर कोई पुनीत नहीं हो रहा । इनकी बात करके कोई पवित्र नहीं हो सकता । राम रहीम की गिरफ़्तारी पर आप बेशक ख़ुश हो लें मगर इस ख़ुशी का कोई ख़ास मतलब नहीं है । देश में बाबाओं की फ़ौज तो आज भी दिन दूनी रात चौगुनी की दर से बढ़ रही है । पंजाब में जितने गाँव नहीं हैं उनसे अधिक तो बाबाओं के डेरे हैं । पंजाब ही क्यों , पूरे देश का यही हाल है । आज के दौर में जब हर शय उत्पाद है एक प्रोडक्ट है तो साधू-संतों और पीर फ़क़ीरों के देश में बाबागिरी का प्रोडक्ट ना चले , एसा कैसे हो सकता है । तभी तो कहते हैं – बाबा नाम केवलम ।

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