बाज़ार का नया मकड़जाल

रवि अरोड़ा
वैसे तो रोज़ ही यह देखता हूँ मगर आज ग़ौर किया तो पाया कि मेरे घर पर आने वाले तमाम अख़बारों में पहले पेज से लेकर आख़िरी पेज तक इम्यूनिटी बढ़ाने वाली दवाओं के विज्ञापन भरे पड़े हैं । पुरानी कम्पनियाँ तो प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाले उत्पाद बेच ही रही हैं , बाज़ार में दर्जनों नए खिलाड़ी भी आ गए हैं । हर कोई कोरोना से बचाव को अपना प्रोडक्ट बेहतर बता रहा है । हालाँकि बाबा राम देव की तरह किसी भी कम्पनी ने सीधे सीधे कोरोना के इलाज का दावा तो अभी तक नहीं किया मगर सबका आशय यही है कि हमारी दवा लेते रहोगे तो कोरोना नहीं होगा । अख़बारों से अधिक वेब साइट्स पर इम्यूनिटी बूस्टर दवाओं का मायाजाल फैला हुआ है । कोई अपनी दवा में तुलसी का अर्क बेच रहा है तो कोई गिलोय अथवा अश्वगंधा । पिछले तीन महीने में ही एसी दवाओं की बिक्री दस गुना बढ़ गई है । अब इसमें तो कोई दो राय नहीं कि इस महामारी के इलाज में एलोपैथी अभी तक कारगर साबित नहीं हुई है और यही वजह है कि लोगों का आयुर्वेद के प्रति विश्वास बढ़ा है । मगर आयुर्वेद भी तो कोरोना के इलाज की बात नहीं करता । वह तो इंसान की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने की बात करता है मगर क्या वाक़ई यह अंतिम सत्य है कि प्रतिरोधक शक्ति बढ़ा कर कोरोना से बचा जा सकता है ?
इंसान की प्रतिरोधक शक्ति को लेकर दुनिया भर में तमाम थ्योरी हैं । कोरोना और भारत के संदर्भ में भी अनेक रिसर्च सामने आई हैं । इनके मुताबिक़ रातों रात इम्यूनिटी नहीं बढ़ती और केवल खान पीन से भी इसे नहीं बढ़ाया जा सकता । जीवन शैली और मानसिक अवस्था की भी इसमें बड़ी भूमिका है । एक सर्वे कहता है कि जेनेटिकली भारतीय मजबूत इम्यूनिटी वाले होते ही हैं । धूल और प्रदूषण से भरा वातावरण और साफ़ सफ़ाई जैसी चीज़ों पर ध्यान न देने के कारण हम लोग तमाम तरह की बीमारियों के वायरस और बैक्टीरिया के बीच ही जीते हैं । हमारे जीन में केआईआर 2 डी 25 भी बहुतायत में होता है जो हमें बीमारियों के प्रति मजबूत प्रतिरोधक शक्ति प्रदान करता है । यह भी सर्वमान्य सत्य है कि गोरों के मुक़ाबले भारतीयों की इम्यूनिटी अधिक मजबूत है । हाल ही में चीन में हुए एक सर्वे में तो तो यह भी बताया गया कि शांत स्वभाव होने के कारण हम भारतीयों के मस्तिष्क की भी रोग प्रतिरोधक शक्ति अधिक होती है । यह भी पाया गया कि इम्यूनिटी का मांसाहार से कोई लेना देना है और शाकाहारी व्यक्ति की इम्यूनिटी भी बेहतर हो सकती है । हालाँकि एक सर्वे में यह भी कहा गया कि इंसान की इम्यूनिटी पुराने वायरस और बैक्टीरिया के प्रति ही है और इस नए वायरस के सामने किसी भी क़िस्म की इम्यूनिटी का कोई फ़ायदा नहीं । जो भी व्यक्ति कोरोना की जद में आएगा उसे यह रोग होगा ही । इसके लिए यह उदाहरण भी दिया गया कि मज़बूत इम्यूनिटी के बावजूद दुनिया भर में टीबी और अस्थमा जैसी अनेक बीमारियाँ भारतीयों को ही अधिक होती हैं ।
अब इन कथित आयुर्वेदिक दवाओं की बात करें जो हमें डरा डरा कर बेची जा रही हैं । चिकित्सकों का कहना है कि बिना परामर्श के एसी दवाएँ ख़तरनाक साबित हो सकती हैं । यूँ भी इन दवाओं में जिन चीज़ों का प्रयोग हो रहा है वह तो सदा से ही हमारी रसोई घर का हिस्सा रही हैं । चिकित्सक कहते हैं कि मौसमी फल व सब्ज़ी तथा दादी-नानी के नुस्ख़ों वाली रसोई और पाक शैली के होते हमें किसी और प्रपंच की ज़रूरत ही नहीं । अब आप भी हो गए न मेरी तरह कनफ़्यूज कि क्या करें और क्या न करें ? आपकी आप जाने मगर मैंने तो तय किया है कि इन दवाओं पर तो पैसे ख़राब नहीं करूँगा । हाँ आयुष विभाग और चिकित्सक जिन हल्दी, लहसुन, काली मिर्च, तुलसी, दाल चीनी और नीबू आदि की सलाह देते हैं उनका इस्तेमाल जारी रखूँगा मगर यह तय है कि इन्हें लेकर भी पगलाऊँगा नहीं । जितनी ज़रूरत है उतना ही लूँगा । आख़िर में तो कोरोना से मुझे ये सब चीज़ें नहीं वरन मास्क, सामाजिक दूरी और साफ़ सफ़ाई ही बचाएगी ।

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