बड़ा मजाकिया कौन !

बड़ा मजाकिया कौन !
रवि अरोड़ा
कुणाल कामरा दो टके का स्टैंडअप कॉमेडियन है। सच बात तो यह है कि वह किसी भी सिरे से कॉमेडियन ही नहीं है । मंच पर खड़े होकर किसी को भी गाली बक देना भला कबसे कॉमेडी हो गया ? चलिए माना कि आज के दौर में यही कॉमेडी होती है तो फिर हम अपने नेताओं को क्या कहेंगे ? ये तो कुणाल कामरा से भी बड़ी बड़ी गाली एक दूसरे को सुबह शाम देते हैं ? सड़क पर , रैलियों में और यहां तक कि संसद में भी , तो क्या अपने नेताओं को भी हम कॉमेडियन मानें ? कामरा ने इशारे इशारे में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को गद्दार कहा तो इतना हंगामा हो गया । कामरा के खिलाफ अनगिनत एफआईआर दर्ज हो गईं और हैबिटेट क्लब के उस हॉल में भी तोड़फोड़ कर दी गई जिसमें कामरा का वह कार्यक्रम शूट हुआ था । मगर हमारे नेता तो इससे भी बड़ी बड़ी उपाधि एक दूसरे को देते हैं, इनका क्या किया जाए ? क्या संसद में भी तोड़फोड़ की जाए ? नरेंद्र मोदी विपक्ष की बड़ी नेता सोनिया गांधी को चुनावी रैली में जर्सी गाय कहते थे । संसद में उन्हें कांग्रेस की विधवा बताते हैं और शशि थरूर की बीवी को पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड ठहराते हैं, उसे किस क्षेणी में रखा जाएगा ? पिछले ग्यारह साल से पप्पू पप्पू कह कर राहुल गांधी का जीना हराम किया हुआ है उसका क्या ? उधर, राहुल गांधी भी मोदी को अपनी चुनावी सभाओं में और यहां तक कि संसद में भी कभी चोर , कभी जेबकतरा तो कभी पनौती ठहराते रहे हैं, उसे क्या कहा जाएगा ? योगी आदित्यनाथ राहुल गांधी को नमूना कहें और लालू यादव बिहार की सड़कों की तुलना हेमा मालिनी के गालों से करें तब भी क्या इसे अपमान कह सकते हैं ?
चलिए आपस में ये नेता लोग जो मर्जी करें मगर जनता के साथ ऐसी कॉमेडी क्यों करते हैं ? कामरा ने एक नेता का अपमान किया तो हंगामा बरपा दिया और यहां जो तमाम नेता जनता के विश्वास का सुबह शाम अपमान करते हैं, उसका क्या ? कदम कदम पर जो हमसे झूठ बोला जाता है, वह हमारे विश्वास के अपमान से कम है क्या ? आजादी के बाद कौन सा ऐसा बड़ा नेता हुआ है, जिसने जनता के साथ यह हरकत न की हो ? कौन सी ऐसी पार्टी है जिसने जनता के विश्वास को गाली न दी हो ? इंदिरा गांधी गरीबी हटाओ कहते कहते अपनी पार्टी के नेताओं की ही गरीबी हटाने में लगी रहीं। वीपी सिंह दिल्ली की गद्दी पाने को अपनी रैलियों में जेब से एक पर्ची निकाल कर दिखाते थे कि इसमें उन लोगों के नाम हैं, जिन्होंने बोफोर्स के सौदे में पैसा खाया , चालीस साल होने को आए, आज तक तो वह नाम जनता को पता नहीं चले । डंकल प्रस्तावों पर विपक्ष ने इतना हंगामा किया कि सरकार को नानी याद आ गई । इतने झूठ बोले कि आज ये नेता अगर दोहरा दें तो जनता जूतों से खातिरदारी करे , मगर तब तो जनता के विश्वास से खुल कर खेला गया । केजरीवाल कागज दिखाते थे कि ये शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार का काला चिट्ठा है और उन्हें जेल जाने से अब कोई नहीं बचा सकेगा , मगर आज तक तो कोई भ्रष्टाचार साबित नहीं हुआ । सत्ता पाने से पहले मोदी काला धन काला धन का राग अलापते थे और दावा करते थे कि विदेशों में कांग्रेसी नेताओं और उनके गुर्गों का इतना पैसा जमा है कि हर भारतीय के हिस्से में पंद्रह पंद्रह लाख आ जाएगा । अब ग्यारह साल से वे सत्ता में हैं और अब तक ग्यारह रुपए भी बरामद नहीं हुए । किसानों की दोगुनी आय, हर साल दो करोड़ नौकरियां, अच्छे दिन, स्मार्ट सिटी और न जाने किस किस तरीके से जनता के विश्वास का अपमान किया गया मगर इसके विरोध में तो आज तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई, कोई तोड़फोड़ नहीं हुई । इससे बड़ा मज़ाक क्या होगा कि बाद में सभी वादों को जुमला करार दे कर अपना पल्ला भी झाड़ लिया गया ? राहुल गांधी राफेल सौदे को लेकर इतनी बार चोर चोर चिल्लाए मगर जनता को छलने का दोष उन पर आज तक नहीं लगा । फिर अब सारा दोष इस बेचारे कुणाल कामरा का कैसे हो गया ? यहां जो हर बड़े नेता में एक नहीं कई कई कुणाल कामरा छुपे बैठे हैं, उनके गिरेबान भी कभी पकड़े जाएंगे क्या ? किसी को गद्दार कह देना बड़ा अपराध माना जाए या एक सौ चालीस करोड़ लोगों के विश्वास के साथ सचमुच की गद्दारी करने को तरजीह दी जाए ? सवाल माैजू है मगर जिनसे जवाब की अपेक्षा है वे सभी तो अब चार धाम और कांवड़ यात्रा की तैयारियों में मशगूल हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED POST

भक्तों का मार्ग दर्शक मंडल

भक्तों का मार्ग दर्शक मंडलभगवान अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं। हमारे मोदी जी भी लेते हैं। भगवान विपरीत परिस्थित…

भारत पाक युद्ध के नायक प्रतिनायक

रवि अरोड़ाशुक्र है कि युद्ध विराम हो गया । इतिहास गवाह है कि युद्ध किसी मसले का हल नहीं वरन्…

खलनायक की तलाश

खलनायक की तलाशरवि अरोड़ापहलगाम में हुए आतंकी हमले से मन बेहद व्यथित है। गुस्सा, क्षोभ और बदले की भावना रगों…

माचिस थामे हाथ

माचिस थामे हाथरवि अरोड़ामुर्शिदाबाद में हुई हिंसा और आगजनी से मन व्यथित है। तीन हत्याएं हुईं और कई सौ घर…