बचो इन तीन पत्ती वालों से

रवि अरोड़ा
इन तीन पत्ती वालों ने आजकल जीना हराम किया हुआ है। जब भी इंटरनेट खोलो, कहीं न कहीं से तीन पत्ती का विज्ञापन अवतरित हो ही जाता है। यू ट्यूब पर तो हर दो तीन मिनट के बाद कोई न कोई मशहूर फिल्मी सितारा स्क्रीन पर आकर तीन पत्ती खेलने के इतने फायदे गिनाता है कि जुए से दूर रहने वाला आदमी शर्मिंदा ही हो उठे। केवल तीन पत्ती ही क्यों रम्मी जैसे खेलों के नाम पर भी ऑन लाईन जुआ खिलाने वाली पचासों वेब साइट्स पैदा हो गई हैं। अब देश में कितने फीसदी लोग प्रतिदिन इनका शिकार हो रहे हैं, यह तो नहीं पता मगर ऑन लाईन गेमिंग कंपनियां जिस प्रकार हजारों करोड़ों रुपयों का अपना सालाना टर्न ओवर इनकम टैक्स विभाग को दिखा रही हैं, उससे साफ पता चल रहा है कि कैसे वर्तमान कानूनों में सुराख करके पूरी युवा पीढ़ी को खराब किया जा रहा है। क्या विडंबना है कि पार्क के किसी कोने में सौ पचास रुपए के साथ ताश खेलने पर तो पुलिस आईपीसी की धारा 178 के तहत उठा कर बंद कर देती है मगर यदि थाने में बैठ कर भी कोई ऑन लाईन जुआ खेले तो पुलिस उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
देश का कानून हर सिरे से छिदा हुआ है इसमें तो कोई दो राय नहीं मगर पब्लिक गैंबलिंग एक्ट 1867 में तो सुराख ही सुराख हैं। अव्वल तो यह केंद्र नही राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आता है अतः कहीं एक नियम है तो कहीं दूसरा । आजादी के 75 साल भी हम यह तय नहीं कर सके कि लॉटरी खेलना सामाजिक अपराध है भी अथवा नहीं। यही कारण है कि एक दर्जन राज्यों में आज भी लॉटरी खिलाई जाती है। किसी राज्य में कैसिनो खुल सकते हैं और किसी में नहीं। कहीं जमीन पर खोलने का अधिकार है तो कहीं केवल पानी पर । सट्टा तो हमारे यहां आदि काल से ही खेला जा रहा है और आज भी शहर शहर सट्टे के बुकी पुलिस के संरक्षण में मालामाल हो रहे हैं। कायदे से उनपर गैंगस्टर एक्ट लगना चाहिए और सख़्त धारा 3 / 4 के तहत चालान होना चाहिए मगर पुलिस आईपीसी की जमानती धारा 13 के तहत चालान कर उन्हे सत्ता खिलाने का जैसे लाइसेंस ही दे देती है। बेशक पहले क्रिकेट को केंद्र में रख कर नकद सट्टा खिलाया जाता था मगर अब तो सट्टा चलाने वाले बाकायदा ऑन लाईन आईडी बना कर देते हैं और ऑन लाईन ही भुगतान स्वीकार करते हैं।
इसे दुर्भाग्य नहीं तो और क्या कहेंगे कि हमारे कानून बनाने वाले आज तक यह ही तय नहीं कर पाए कि कौन सा खेल गेम ऑफ चांस है और कौन सा खेल गेम ऑफ स्किल ? कोई राज्य कौशल आधारित खेल को जुआ मानता है तो कोई संभावना आधारित खेल को । इसी का फायदा उठा कर अब ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन, द रम्मी फेडरेशन और फेडरेशन ऑफ इंडिया फेंटेसी स्पोर्ट्स जैसी संस्थाएं नियमों कानूनों को अपने हिसाब से परिभाषित करवा रही हैं। नतीजा करोड़ों लोग ऑन लाईन जुआ खेल कर बर्बाद हो रहे हैं और आत्महत्याओं के मामलों में इज़ाफा कर रहे हैं । यह भी समझ से परे है कि हमारे लोग भी इतने भोले क्यों हैं। जब कैसिनो में आपके सामने पत्ते फेंटे जाने के बावजूद भी खिलाड़ी को अंतत हारना जी होता है तब भला ऑन लाइन गेम में कोई कैसे जीत सकता है ? यहां तो सॉफ्ट वेयर ही कंपनी ने अपने मुनाफे के लिए बनाया हुआ है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED POST

जो न हो सो कम

रवि अरोड़ाराजनीति में प्रहसन का दौर है। अपने मुल्क में ही नहीं पड़ोसी मुल्क में भी यही आलम है ।…

निठारी कांड का शर्मनाक अंत

रवि अरोड़ा29 दिसंबर 2006 की सुबह ग्यारह बजे मैं हिंदुस्तान अखबार के कार्यालय में अपने संवाददाताओं की नियमित बैठक ले…

भूखे पेट ही होगा भजन

रवि अरोड़ालीजिए अब आपकी झोली में एक और तीर्थ स्थान आ गया है। पिथौरागढ़ के जोलिंग कोंग में मोदी जी…

गंगा में तैरते हुए सवाल

रवि अरोड़ासुबह का वक्त था और मैं परिजनों समेत प्रयाग राज संगम पर एक बोट में सवार था । आसपास…