प्रजा इतिहास रचती है
रवि अरोड़ा
लगभग पैंतीस साल पहले भारतीय जन नाट्य संघ की ओर से नाटकों का अपना स्क्रिप्ट बैंक शुरू करने का काम मुझे सौंपा गया । लेखक अजित पुष्कर जी का जो पहला नाटक मैंने छापा उसका शीर्षक था- प्रजा इतिहास रचती है । इस पुस्तक की ख़ास बात यह थी कि इसका कवर पेज डिजाइन किया जाने माने भौतिक शास्त्री अमिताभ पाण्डे ने । कवर पेज पर कोई तस्वीर अथवा पेंटिंग न होकर विश्व प्रसिद्ध नाटककार और कवि बर्तोल ब्रेख्त की एक मशहूर कविता छापी गई । कारण यह था कि नाटक का शीर्षक कविता के विचार से हूबहू मिलता जुलता था । यह कविता बाद में, पहले उस प्रजा की बात कर लें जो आजकल पुनः एक इतिहास रच रही है ।
दो तिहाई दुनिया आजकल अपने घरों में क़ैद है । जितने लोग हैं उनकी उतनी ही कहानियाँ हैं । सुख के दुःख के तमाम अफ़साने हैं । उनके लिए सुखद होंगे जो अपनों के बीच हैं और उनके इर्दगिर्द तमाम संसाधन हैं । ज़ाहिर है दुःख उनके ही हिस्से आया है जो सुबह कमाते हैं और शाम को खाते हैं । वे भी ग़मज़दा हैं जो इस वक़्त अपनों से दूर हैं । भारत जैसे मुल्क जिसकी एक तिहाई आबादी रोज़गार के लिए अपने घरों से दूर बड़े अथवा मझोले शहरों में खटती है , उनकी त्रासदी सबसे घातक है । प्रवासी मज़दूर तो दो वक़्त की रोटी की जंग लड़ रहे हैं । बेशक कोरोना से देश के डाक्टर और तमाम मेडिकल टीम लड़ रही है मगर इन श्रमिकों की रोटी की लड़ाई भी किसी से कम है क्या ? विजय के बाद भूख से बिलबिलाते पेट भी क्या किसी मेडिकल किट जितना महत्व पायेंगे ?
कोरोना से हम जीतेंगे , अवश्य जीतेंगे । मगर यह जीत हमसे क़ुर्बानियाँ भी जम कर लेगी । कमोवेश ले भी रही है । उधर, दुनिया भर में इस युद्ध के नायक और खलनायक तय किये जा रहे हैं । हमारे यहाँ तो यह काम कुछ ज़्यादा ही तेज़ी से हो रहा है । ऊँची कुर्सियों पर बैठ सही अथवा ग़लत फ़ैसले लेने वाले चेहरों को अभी से चमकाया जा रहा है । हम मान कर ही चल रहे हैं कि जीते तो इसकी वजह से और यदि हारे तो उसकी वजह फ़लाँ फ़लाँ होंगे । उनकी कहीं बात नहीं हो रही जिनकी क़ुर्बानी ली जा रही है । माहौल ही कुछ एसा है उनका नाम लेना भी इस युद्ध को कमज़ोर करना मान लिया जाएगा । अब ठीक ही तो है । दुनिया के तमाम युद्ध राजा ही तो जीतते हैं । तलवार से अथवा भूख से मरे कहाँ याद किये जाते हैं ? अब हम भी कौन से अनोखे हैं । हम भी कहाँ ज़िक्र करेंगे उन लोगों को जिनकी बलि से ही हमारे जयघोष शुरू हुए हैं । चलिए छोड़िये यह बात । ब्रेख़्त की वह कविता पढ़िये-
किसने बनवाया था
थेबस सात दरवाज़ों वाला
किताबों में तुम पाओगे नाम
राजा महाराजाओं का
क्या राजा ने ढोये थे पत्थर ?
और बेबीलोन कितनी बार हुआ धूलधूसरित
किसने बनवाया उसे इतनी बार ?
स्वर्ण नगरी लीमा के किस मकान में
रहते होंगे कारीगर मजूर ?
उस शाम जब चीन की दीवार बन पूरी हुई
कहाँ गया होगा कारीगर पत्थर चिनने वाला ? महान रोम भरा पड़ा है विजय द्वारों से
किसने बनाया उन्हें ?
कैसर ने किस पर विजय पाई
युवा एलेक्जेंडर ने भारत को जीता
क्या वह अकेला ही आया था ?
सीज़र ने दबोचा गॉल लोगों को
कोई उसका रसोईया था या नहीं ?
हरेक पन्ने पर लिखी है विजय
पर खाना कौन बनाता था
विजयी योद्धाओं के लिए ?
हर दस साल में एक महापुरुष
कौन चुकाता है इनके बिल ?
बहुत सारी रिपोर्ट हैं
और बहुत सारे हैं सवाल ।